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जलवायु एवं जलवायु प्रदेश

सामान्य परिचय:

  • किसी विशाल क्षेत्र में लम्बे समयावधि (सामान्यतः 35 वर्ष) में मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं के औसत को ‘जलवायु’ कहते हैं।
  • एक ओर जहां जलवायु के आवश्यक तत्वों में तापमान, वायुमण्डलीय दाब, पवन, आर्द्रता तथा वर्षण इत्यादि हैं, तो वहीं दूसरी ओर अक्षांश अथवा विषुवत् वृत्त से दूरी, समुद्र तल से ऊँचाई, महाद्वीपीयता अथवा समुद्र से दूरी, प्रचलित पवनों का स्वरूप, मेघाच्छादन, समुद्री धाराएं, पर्वत-मालाओं की स्थिति, भूमि की ढाल एवं अभिमुखता तथा मिट्टी की प्रकृति और वनस्पति आवरण इत्यादि जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक भी हैं।
  • सामान्य तौर पर विश्व की जलवायु को तीन प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जाता है-उष्ण कटिबंधीय जलवायु, मध्य अक्षांशीय जलवायु तथा ध्रुवीय एवं उच्च अक्षांशीय जलवायु। विभिन्न भूगोलविदों ने जलवायु के तीन प्रमुख वर्गों को विभिन्न आधारों पर द्वितीय एवं तृतीय श्रेणियों के अनेक जलवायु प्रकारों में वर्गीकृत किया है।
  • उपरोक्त वर्गीकरण जलवायु की आदर्श स्थिति को व्यक्त करता है, किन्तु विभिन्न महाद्वीपों पर क्षेत्रीय परिस्थितियों के प्रभावी होने के फलस्वरूप पूर्णरूप से इसका पालन नहीं हो पाता। अतः विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न आधारों पर इन जलवायु प्रदेशों को कई उप- वर्गों में विभाजित किया है। कोपेन के द्वारा दिये गए जलवायु वर्गीकरण को इनमें सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है।

 

 

कोपेन के जलवायु वर्गीकरण की पद्धति

          कोपेन के अनुसार, वनस्पति वितरण व जलवायु में एक घनिष्ठ संबंध है। उन्होंने आनुभाविक पद्धति का सबसे ज्यादा उपयोग किया, जिसके अनुसार तापमान व वर्षण के कुछ मानकों का चयन करते हुए उनका वनस्पति के वितरण से संबंध स्थापित किया और इन मानकों का उपयोग जलवायु के वर्गीकरण के लिए किया।

समूह

लक्षण

A.  उष्ण कटिबंधीय जलवायु

वर्ष भर औसत तापमान 180C से ज्यादा

B. शुष्क जलवायु

वर्षण की तुलना में वाष्पीकरण अधिक

C. समशीतोष्ण आर्द्र जलवायq

ठंडे महीनों का औसत तापमान -30C से ज्यादा लेकिन 180C से कम

D. शीतोष्ण जलवायु

वर्ष के सर्वाधिक ठंडे महीने का औसत तापमान -30C से नीचे तथा उष्णतम माह का तापमान 100C से अधिक होता है।

E. ध्रुवीय जलवायु

सभी माह में औसत तापमान 100C से कम

 

नोट: कुछ स्रोतों में जलवायु का छठा प्रकार भी दिया गया है जिसमें उच्च भूमि-ऊँचाई के कारण शीत क्षेत्र शामिल है। इस प्रकार की जलवायु विश्व के ऊँचे पर्वतों पर पाई जाती है।

  • जर्मल वनस्पति विज्ञानी ब्लादिमीर कोपेन ने कैण्डोल द्वारा प्रस्तुत विश्व के पांच वनस्पति मंडलों को विश्व की जलवायु के विभाजन का आधार बनाया।
  • कोपेन ने जलवायु समूह एवं प्रकारों की पहचान करने के लिए बड़े तथा छोटे अक्षरों का प्रयोग प्रारंभ किया। जिनमें से चार तापमान पर और एक वर्षण पर आधारित है।
  • बड़े अक्षर A,  C, D तथा E आर्द्र जलवायु तथा B शुष्क जलवायु को निरूपित करता है। जलवायु समूहों को तापमान तथा वर्षा की मौसमी आवश्यकताओं के आधार पर कई उपभागों में बांटा गया। A, C तथा D जलवायु वर्गों में पर्याप्त तापमान तथा वर्षा होती है जो वनस्पति के लिए अनुकूल है।
  • बड़े अक्षर 'W' तथा 'S' का प्रयोग शुष्क जलवायु के उपक्षेत्रों के लिए किया गया है। वर्षा एवं तापमान के अनुसार ऋतु के आधार पर उपरोक्त जलवायु प्रदेशों को उप-प्रदेशों में विभाजित किया गया है। इन्हें अंग्रेजी के छोटे अक्षरों द्वारा दर्शाया गया है-

f - आर्द्र (वर्ष भर वर्षा)

m - मानसूनी जलवायु

w - शुष्क शीत ऋतु

s - शुष्क ग्रीष्म ऋतु

  • अंग्रेजी के छोटे अक्षरों के लिए a, b तथा c का प्रयोग किया गया है जिसमें-

a - उष्ण ग्रीष्मकाल, उष्णतम माह का औसत तापमान 220C से अधिक।

b - सर्द ग्रीष्मकाल, उष्णतम माह का औसत तापमान 220C से कम रहता है।

c - सर्द लघु ग्रीष्म काल, चार माह से कम अवधि के लिए तापमान 100C से ऊपर।

k - औसत वार्षिक तापमान 180C से कम।

h - औसत वार्षिक तापमान 180C से अधिक।

समूह

प्रकार

कूट अक्षर

लक्षण

A.  उष्ण ग्रीष्मकाल

उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु

Af

वर्ष भर अधिक वर्षा क्षेत्र

उष्ण कटिबंधीय मानसूनी जलवायु

Am

मानसूनी जलवायु, लघु शुष्क ऋतु

उष्ण कटिबंधीय आर्द्र व शुष्क जलवायु

Aw

शीतकाल की शुष्क ऋतु

 

 

 

 

B- शुष्क जलवायु

उष्ण कटिबंधीय स्टेपी जलवायु

BSh

निम्न अक्षांशीय अर्द्ध-शुष्क व शुष्क क्षेत्र

उष्ण कटिबंधीय मरूस्थलीय जलवायु

BWh

निम्न अक्षांशीय अर्द्ध-शुष्क व शुष्क क्षेत्र

मध्य अक्षांशीय स्टेपी जलवायु

BSk

मध्य अक्षांशीय अर्द्ध शुष्क या शुष्क क्षेत्र

मध्य अक्षांशीय शीत मरूस्थलीय जलवायु

BWk

मध्य अक्षांक्षीय शुष्क क्षेत्र

 

 

 

 

C-समशीतोष्ण आर्द्र  जलवायु

पश्चिमी यूरोप तुल्य जलवायु

Cf

वर्ष भर वर्षा क्षेत्र

भूमध्यसागरीय जलवायु

Cs

ग्रीष्म काल शुष्क

चीन तुल्य जलवायु

Cw

शीतकाल शुष्क

 

 

 

 

D- शीतोष्ण जलवायु

शीतार्द्र  जलवायु

Df

कोई शुष्क ऋतु नहीं

शीत शीतार्द्र  जलवायु

Dw

शीतकाल शुष्क दीर्घ सर्द

 

 

 

 

E- ध्रुवीय जलवायु

टुंड्रा जलवायु

ET

कोई ग्रीष्म ऋतु नहीं

ध्रुवीय हिमटोपी

EF

सदैव हिमाच्छादित क्षेत्र

कोपेन के जलवायु वर्गीकरण को आधार बनाकर विश्व को विभिन्न जलवायु प्रदेशों में विभाजित किया गया है-

उष्ण कटिबंधीय जलवायु प्रदेश

  • उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलायु कर्क तथा मकर रेखा के बीच पाई जाती है।
  • यहां पूरे वर्ष सूर्य के ऊध्र्वस्थ तथा अन्तर उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की उपस्थिति के कारण यहां जलवायु उष्ण एवं आर्द्र रहती है।

विषुवतरेखीय जलवायु प्रदेश

  • विषुवत रेखा (00 अक्षांश) के दोनों तरफ लगभग 50 से 100 अक्षांश तक इसका विस्तार पाया जाता है, लेकिन वायुदाब की पेटियों के विस्थापन (गर्मी में उत्तर की ओर तथा शीत ऋतु में दक्षिण की ओर) के कारण कभी-कभी इसका विस्तार लगभग से 150 से 250 अक्षांश तक भी हो जाता है।
  • इस जलवायु प्रदेश में सूर्य की किरणों के लम्बवत् पड़ने के कारण पूरे वर्ष उच्च एवं लगभग समान तापमान बना रहता है, जिसके कारण वर्ष भर अत्यधिक वर्षा होने के साथ-साथ ‘निम्न वायुदाब पेटी’ का भी विकास होता है। यहां, दिन एवं रात की अवधि में अन्तर भी बहुत कम होता है।
  • इस जलवायु प्रदेश में ‘संवहनीय वर्षा’ होती है, जो ‘तड़ित-झंझा’ के साथ औसतन 200 सेमी. तक पूरे वर्ष होती रहती है।
  • पूरे वर्ष उच्च तापमान, वर्षा व आर्द्रता के कारण यहां सदाबहार वन का विकास होता है, जिसकी सघनता, जैवभार व जैव विविधता सर्वाधिक होती है। यहां वृक्षों का विकास संस्तरों के रूप में होता है। एबोनी, महोगनी, सिनकोना, रबड़, बांस आदि यहां के प्रमुख वृक्ष हैं।
  • इस जलवायु प्रदेश के अन्तर्गत प्रमुखतः दक्षिण अमेरिका का अमेजन बेसिन क्षेत्र (सर्वाधिक विस्तार) अफ्रीका महाद्वीप का कान्गो बेसिन क्षेत्र व दक्षिण-पूर्व एशिया के द्वीप शामिल किये जाते हैं।

उष्ण कटिबंधीय मानसूनी जलवायु प्रदेश

  • इसका विस्तार भूमध्य रेखा के दोनों ओर पूर्वी किनारों पर 50 से 300 अक्षांशों के मध्य पाया जाता है। यह जलवायु प्रदेश ‘व्यापारिक हवाओं’ की पेटी में आता है। इस प्रदेश में हवाएं सामान्यतः 6 माह के लिए ‘स्थल से समुद्र की ओर’ तथा 6 माह के लिये ‘समुद्र से स्थल’ की ओर बहती हैं।
  • संसार के प्रमुख मानसूनी प्रदेश भारत, पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश, थाईलैंड, दक्षिणी चीन, फिलीपींस द्वीप समूह (एशिया में) तथा क्वींसलैंड के तटीय भाग (आस्ट्रेलिया) एवं दक्षिणी न्यू गिनी हैं।
  • उत्तर अमेरिका में मध्य अमेरिका, मेक्सिको तथा वेस्टइंडीज, दक्षिण अमेरिका में ब्राजील के तटीय क्षेत्र तथा उच्च प्रदेश एवं अफ्रीका में इथियोपिया आदि में भी मानसूनी जलवायु पाई जाती है।
  • मानसूनी जलवायु की विशेषता उष्ण तथा आर्द्र ग्रीष्मकाल तथा शुष्क एवं शीतल शीतकाल है।
  • मानसूनी जलवायु प्रदेश में तापमान पूरे वर्ष ऋतु अनुसार बदलता रहता है। उत्तरायण एवं दक्षिणायन की स्थिति के कारण ग्रीष्म एवं शीत ऋतु का आगमन होता है। फलतः यहां तीन प्रकार की ऋतुएं पाई जाती हैं-

(i) ग्रीष्म ऋत

(ii) शीत ऋतु

(iii) वर्षा ऋतु

  • मानसूनी जलवायु प्रदेशों में वर्षा चक्रवाती, पर्वतीय एवं संवहनीय तीनों प्रकार की होती है।
  • मानसूनी क्षेत्रों में वर्षा शरद काल में चक्रवातों से प्रभावित होती है। इन चक्रवातों के आने पर वर्षा अधिक होती है।
  • वर्षा की मात्रा स्थानीय उच्चावन पर निर्भर करती है। सामान्यतः पर्वतों के पवनाभिमुख ढालों पर तथा तटीय क्षेत्रों में वर्षा अधिक होती है।
  • मानसूनी वनों में मानव की सुगमता के कारण ही इसका आर्थिक दृष्टि से दोहन किया जा रहा है।
  • मानसूनी प्रदेशों में कृषि का काफी विकास हुआ है। इन क्षेत्रों में खाद्यान्न, कपास, गन्ना, चाय तथा कहवा उगाया जाता है।
  • उच्च तापमान तथा समुचित वर्षा इन क्षेत्रों में वनस्पतियों के उगने में सहायक होती है। इन वनों में पाये जाने वाले वृक्ष आमतौर पर पर्णपाती होते हैं।

 

वर्षा की मात्रा

 

उष्ण कटिबंधीय प्राकृतिक वनस्पति

 

वनस्पति

250 सेमी. से अधिक वर्षा

सदाबहार वन

महोगनी, एबोनी

200-250 सेमी.

अर्द्ध-सदाबहार वन

मिश्रित वनस्पति प्रदेश

150-200 सेमी.

आर्द्र पर्णपाती वन

→ 

टीका, साल

100-150 सेमी.

शुष्क पर्णपाती वन

मिश्रित वनस्पति प्रदेश

60-100 सेमी.

कंटीले वन

बबूल, नीम

40-60 सेमी.

सवाना वनस्पति

भारत में कंटीले वनस्पति प्रदेश में वृक्ष या घास निकलते हैं, उन्हें ‘सवाना वनस्पति’ कहते हैं। यह विश्व की सवाना वनस्पति से भिन्न है।

40 सेमी. से कम

मरूस्थलीय वनस्पति

कैक्टस, एकेसिया

सवाना तुल्य जलवायु प्रदेश

  • इसका विस्तार दोनों गोलार्धों में लगभग 50 से 100  अक्षांशों से लेकर 150 से 200 अक्षांशों के बीच महाद्वीपों के मध्य भाग (मरूस्थल एवं मानसूनी जलवायु प्रदेशों के बीच) में पाया जाता है। इसे ‘सूडान तल्य जलवायु’ भी कहते हैं।
  • विषुवतरेखीय जलवायु प्रदेश की तरह यहां भी पूरे वर्ष उच्च तापमान बना रहता है, लेनिक ग्रीष्मकाल की अपेक्षा शीतकाल में सूर्य की किरणें कुछ तिरछी हो जाती है, जिसके कारण कुछ कम ऊष्मा की प्राप्ति होती है। इस प्रकार तापमान में भिन्नता की दृष्टि से यहां पर तीन प्रकार के मौसम का विकास हुआ है-

(i) शुष्क-शीत मौसम

(ii) शुष्क-उष्ण मौसम

(iii) आर्द्र-उष्ण मौसम

  • विषुवतरेखीय जलवायु प्रदेश की तुलना में कम तापमान होने के कारण वर्षा भी तुलनात्मक रूप  से कम होती है। यहां वर्षा प्रायः संवहनीय होती है, और अधिकांश वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है। परिणामस्वरूप वृहद् घस स्थल के साथ-साथ छोटे व वृक्ष भी मिलते हैं। उदाहरण के तौर पर अफ्रीका का सवाना घास स्थल, जिसमें मोटी घासें प्रमुखता से मिलती हैं।
  • यह जलवायु अफ्रीका में विषुवतरेखीय जलवायु के उत्तर एवं दक्षिण, दक्षिणी मध्य ब्राजील, पराग्वे, वेनेजुएला, कोलंबिया, गुयाना एवं उत्तरीय आस्ट्रेलिया में पाई जाती है।

मरूस्थलीय जलवायु प्रदेश

  • मरूस्थलीय जलवायु प्रदेश भूमध्य रेखा के दोनों तरफ 150 से 300 अक्षांश के बीच महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर पाई जाती है।

   इसके अन्तर्गत निम्नलिखित मरूस्थलों को शामिल किया जाता है-

      •  
    • एशिया का ‘थार मरूस्थल’;
    • दक्षिण अमेरिका का ‘अटाकामा मरूस्थल’;
    • उत्तर अमेरिका के ‘पश्चिमी मरूस्थल’ (सोनोरान एवं मोजेब);
    • आस्ट्रेलिया के पश्चिमी मरूस्थल;
    • अफ्रीका के ‘सहारा’ एवं ‘कालाहारी’ मरूस्थल आदि।
  • इस जलवायु प्रदेश में वर्ष भर शुष्कता रहती है एवं औसत वार्षिक वर्षा लगभग 25 सेमी. या इससे कम होती है, जिसके निम्नलिखित कारण हैं-
      •  
    • मध्य अक्षांशों के चक्रवातों का यहां तक न आना।
    • यह प्रदेश विषुवत रेखा से इतना दूर है कि 'ITCZ' का प्रभाव यहां तक नहीं हो पाता है।
    • पूर्वी तट से दूरी के कारण हवाएं यहां पहुंचने से पहले ही अपनी नमी को रास्ते में ही वर्षा के रूप में त्याग देती हैं।
    • प्रतिचक्रवाती दशाओं के कारण वायु नीचे बैठ जाती है, जो वर्षा के लिए प्रतिकूल स्थिति पैदा करती है।
  • मरूस्थलीय प्रदेशों में जल की कमी एवं शुष्कता के कारण वनस्पतियों के विकास के लिए प्रतिकूल दशाएं उत्पन्न होती हैं। वाष्पोत्सर्जन की क्रिया से बचने के लिए कहीं-कहीं पर कंटीली झाड़ियों का विकास हो जाता है। इस प्रदेश की वनस्पतियों की जड़ें पानी की तलाश में अधिक गहराई तक चली जाती हैं।
  • इन प्रदेशों में दैनिक एवं वार्षिक तापांतर दोनों अधिक होते हैं।

भूमध्यसागरीय या रूम-सागरीय जलवायु प्रदेश

  • भूमध्यसागर या रूमसागर के आस-पास विकसित होने के कारण ही इसका नाम ‘भूमध्यसागरीय जलवायु प्रदेश’ रखा गया है।
  • इस जलवायु प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु शुष्क रहती है, जबकि शीत ऋतु में अधिकांश वर्षा होती है।
  • इस जलवायु प्रदेश का विस्तार भूमध्य रेखा के दोनों ओर लगभग 300 से 400 अक्षांश के मध्य महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में पाया जाता है।
  • ग्रीष्मकाल में उत्तरायण की स्थिति के कारण वायुदाब की सभी पेटियां ‘उत्तर की ओर’ खिसक जाती हैं, जिसके कारण इन जलवायु प्रदेशों में ‘उपोष्ण-कटिबंधीय उच्च वायुदाब’ का विस्तार हो जाता है और इसकी वनज से प्रतिचक्रवाती दशाएं एवं व्यापारिक पवनों की उपस्थिति होती है। शीतकाल में जब दक्षिणायन की स्थिति होती हे तो वायुदाब की पेटियां ‘दक्षिण की ओर’ खिसक जाती हैं, जिसके कारण इन क्षेत्रों में पछुआ पवनों का प्रभाव हो जाता है, जिसके साथ मध्य अक्षांशों में उत्पन्न चक्रवातों का भी आगमन होता है जिससे वर्षा भी होती है।
  • इस जलवायु के अन्तर्गत फ्रांस, दक्षिण इटली, यूनान, पश्चिमी तुर्की, सीरिया, पश्चिमी इजराइल, अल्जीरिया तथा उत्तर अमेरिका का कैलिफोर्निया, दक्षिण अमेरिका के चिली एवं दक्षिणी आस्ट्रेलिया के प्रदेश शामिल हैं।
  • भूमध्यसागरीय जलवायु प्रदेश अपने रसीले फलों के लिए विश्वविख्यात है, जिनमें नींबू, संतरा, जैतून, अंजीर, अंगूर आदि प्रमुखता से पाये जाने वाले फलीय वृक्ष हैं।

स्टेपी तुल्य जलवायु प्रदेश

  • यह जलवायु प्रदेश पछुआ हवाओं वाली पेटी में स्थित है, लेकिन अपनी आंतरिक स्थिति के कारण वर्षा की पर्याप्त मात्रा प्राप्त नहीं कर पाता है। अतः यहां प्रायः वृक्ष रहित घास के मैदान पाये जाते हैं।
  • इस जलवायु प्रदेश के ग्रीष्म ऋतु एवं शीत ऋतु के तापमानों में अत्यधिक अंतर पाया जाता है, जो इसके स्थलीय प्रभाव के कारण होता है।
  • वार्षिक वर्षा का अधिकांश भाग ग्रीष्म काल में प्राप्त होता है। उत्तरी गोलार्द्ध में सागर से अधिक दूरी होने के कारण वर्षा की मात्रा कम होती जाती है, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में सागरीय प्रभाव के कारण उत्तर की तुलना में वार्षिक वर्षा का औसत अधिक होता है।
  • यहां वर्षा की विशेषताओं में कम वर्षा, वर्षा की अनिश्चितता आदि सभी क्षेत्रों में पाई जाती है। वर्षा बेहद कम लेकिन प्रायः मूसलाधार एवं संवहनीय प्रकार की होती है।
  • ग्रीष्म ऋतु में तापमान की अधिकता तथा शीत ऋतु में तापमान की न्यूनता एवं वर्षा की कमी के कारण इन प्रदेशों में वृक्षों का सामान्यतः अभाव पाया जाता है। यहां की जलवायु घास के लिए अधिक उपयुक्त है। अतः यहां सर्वत्र घास के मैदान पाये जाते हैं।

विश्व के प्रमुख घास के मैदान

उष्ण कटिबंधीय घास-स्थल

शीतोष्ण कटिबंधीय घास-स्थल

  • सवाना - अफ्रीका
  • पंपास - उरूग्वे, अर्जेंटीना व ब्राजील
  • कंपोस - ब्राजील
  • प्रेयरी - उत्तरी अमेरिका
  • लानोस - वेनेजुएला
  • वेल्ड - दक्षिण अफ्रीका

 

  • स्टेपी - मध्य एशिया एवं पूर्वी यूरोप

 

  • पुस्ताज - हंगरी

 

  • डाउंस - आस्ट्रेलिया

 

  • केंटरबरी - न्यूजीलैंड

चीन तुल्य जलवायु प्रदेश

  • इसका विस्तार दोनों गोलार्धों में, महाद्वीपों के पूर्वी भागों में लगभग 250 से 400 अक्षांशों के बीच पाया जाता है। इसे ‘आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु प्रदेश’ भी कहते हैं।
  • ग्रीष्मकाल में स्थलीय भागों में निम्न वायुदाब तथा महासागरीय भागों में उच्च वायुदाब की स्थिति उत्पन्न होती है, जिसके कारण हवाएं समुद्र/महासागर से स्थल की ओर बहने लगती है, जिससे मानसून का आगमन होता है।
  • उच्च वायुदाब की स्थिति दक्षिणी-पश्चिमी तथा उत्तरी-मध्य प्रशांत महासागर में और अटलांटिक महासागर में एजोर्स द्वीप के पास बनती है। इन सागरीय हवाओं के साथ-साथ उष्ण कटिबंधीय चक्रवात भी आते हैं, जिससे वर्षा भी होती है। इन चक्रवातों को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे-
      •  
    • जापान एवं चीन में ‘टाइफून’
    • यूएसए में ‘हरिकेन’
    • आस्ट्रेलिया में विली-विली आदि।
  • शीतकाल में स्थिति उलट जाती है अर्थात स्थलीय भागों पर उच्च वायुदाब, जबकि महासागरीय भागों पर निम्न वायुदाब की स्थिति रहती है फलतः हवाएं स्थल से जल/समुद्र की ओर बहती हैं।
  • वर्षा ग्रीष्मकाल में ‘संवहनीय प्रकार’ की होती है, जो बादलों की गरज एवं बिजली की कड़क के साथ होती है, जबकि शीतकाल शुष्क रहता है।
  • सामान्यतः यहां चैड़ी एवं नुकीली पत्ती वाले मिश्रित वन पाये जाते हैं, जो पर्णपाती वनों में साइप्रस, ऐश आदि वृक्ष पाये जाते हैं, जबकि मिश्रित वनों में ‘ओक’, ‘चेस्टनट’ तथा ‘पाइन’ प्रमुख रूप से पाये जाते हैं।

ब्रिटिश तुल्य जलवायु प्रदेश या पश्चिमी यूरोपियन तुल्य जलवायु प्रदेश

  • यह दोनों गोलार्धों में 400 से 650 अक्षांशों के बीच, महाद्वीपों के पश्चिमी किनारे पर पाया जाता है। इस जलवायु प्रदेश के तापमान पर सागरीय जलधाराओं और प्रचलित पछुआ हवाओं का पर्याप्त प्रभाव रहता है।
  • गर्मी का मौसम अधिक गर्म नहीं हो पाता है अर्थात अधिकतम गर्मी भी सामान्य सर्द जैसे रहती है।
  • आर्द्रता एवं मेघाच्छादन के कारण रात के तापमान में अधिक गिरावट नहीं हो पाती है।
  • सर्दियां सामान्य होती हैं तथा गर्म जलधाराओं के कारण तापमान की धनात्मक विसंगति पाई जाती है अर्थात जितना कम तापमान रहना चाहिए, उससे अधिक रहता है।
  • इस जलवायु प्रदेश में पछुआ पवनों का वर्ष भर प्रवाह होता है। सागर की ओर से आने के कारण ही ये हवाएं वर्षा करती हैं। वर्षा मुख्यतः पश्चिम से आने वाले शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों द्वारा होती है।
  • इस जलवायु प्रदेश में यद्यपि वर्षा का वितरण पूरे वर्ष समान रूप से होता है, फिर भी शीतकाल में ग्रीष्मकाल की अपेक्षा कुछ अधिक वर्षा होती है, किन्तु कोई भी माह शुष्क नहीं रहता है।
  • इस जलवायु प्रदेश में वर्ष भर वर्षा होने के कारण घनी वनस्पतियां उत्पन्न होती हैं, इसी कारण इस जलवायु प्रदेश में वनों का सघन आवरण पाया जाता है। जिनमें डगलस, फर, स्प्रूस, हेमलाक तथा सिडार जैसे वृक्ष पाये जाते हैं।
  • इस जलवायु का विस्तार उत्तर-पश्चिमी यूरोप द्वीप समूह, पश्चिमी नॉर्वे, डेनमार्क, उत्तर-पश्चिमी जर्मनी, पश्चिम फ्रांस, कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया, वांशिंगटन, न्यूजीलैंड, तस्मानिया आदि क्षेत्रों में पाया जाता है।

साइबेरियन तुल्य जलवायु प्रदेश या टैगा जलवायु प्रदेश

  • ‘टैगा’ रूसी शब्द है, जिसका अर्थ है-‘उप-आर्कटिक क्षेत्रों में पाया जाने वाला कोणधारी सदाबहार वन’। यह 500 से 650 उत्तरी गोलार्द्ध के अक्षांशों में पाया जाता है।
  • इस जलवायु प्रदेश में अलास्का (संयुक्त राज्य अमेरिका) से कनाडा होते हुए पूर्व में हडसन की खाड़ी, स्कैण्डिनेविया प्रायद्वीप से साइबेरिया होते हुए पूर्व में बेरिंग सागर तक के भाग को शामिल किया जाता है।
  • यहां लम्बी अवधि वाला शीतकाल होता है तथा लघु अवधि वाला ‘सर्द ग्रीष्मकाल’ होता है। ग्रीष्मकाल साधारण गर्म होता है और तापमान 100C तक पाया जाता है। यह टैगा जलवायु प्रदेश की उत्तरी सीमा का निर्धारण करता है।
  • विश्व का सबसे ठंडा स्थान ‘बर्खोयांस्क’ (रूस) इसी प्रदेश में स्थित है।
  • यहां वार्षिक तापांतर अधिक एवं औसत वार्षिक वर्षा अत्यंत कम तथा शीत ऋतु में अत्यधिक हिमपात होता है।
  • टैगा जलवायु प्रदेश ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटी में आता है। यहां वायु का सतह पर अपसरण होने से प्रतिचक्रवाती दशाएं बनी रहती हैं।
  • टैगा जलवायु प्रदेश में ‘कोणधारी वृक्ष’ या ‘शंकुधारी वृक्ष’ सर्वप्रमुख रूप से पाये जाते हैं, जिनकी लकड़ियां सर्वाधिक कोमल होती हैं, जिनमें ‘पाइन’, ‘फर’, ‘स्प्रूस’ तथा ‘लार्च’ प्रमुख हैं।

लारेंसियन तुल्य जलवायु प्रदेश

  • यह महाद्वीपों के पूर्वी किनारों पर मुख्य रूप से उत्तरी गोलार्द्ध में 450 से 650 अक्षांशों के बीच पाया जाता है।
  • इस जलवायु प्रदेश में पूर्वी कनाडा के क्यूबेक, ओंटेरियो, संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूइंग्लैण्ड प्रदेश (मेसाचुसेट्स तथा न्यूहैम्पशायर), एशिया में मंचूरिया (चीन), कोरिया, होकैडो (उत्तरी जापान), तथा अर्जेंटीना के दक्षिणी भागों को सम्मिलित किया जाता है।
  • ‘वर्षा’ सामान्यतः पूरे वर्ष होती रहती है, परन्तु ग्रीष्मकाल में शीतकाल की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है जो ‘संवहनीय वर्षा’ के रूप में होती है तथा सर्दियों में वर्षा ‘चक्रवातीय’ होती है।
  • आर्द्र तटीय भागों में कोणधारी वन तथा आंतरिक एवं कम आर्द्र वाले भागों में ‘प्रेयरी’ घास के मैदान पाये जाते हैं। यहां के वृक्षों में चीड़, स्प्रूस, हेमलाक आदि प्रमुख हैं, जिनका उपयोग लकड़ी एवं कागज उद्योग के लिये लुग्दी बनाने के लिए अधिक किया जाता है।

टुंड्रा जलवायु प्रदेश

  • ‘टुंड्रा’ फिनिश भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ होता है-‘बंजर भूमि’ अर्थात न्यूनतम वनस्पति वाली ‘ध्रुवीय या आर्कटिक जलवायु’ को ‘टुंड्रा जलवायु’ कहते हैं। यहां का मुख्य लक्षण स्थायी तुषार की विद्यमानता है।
  • इस जलवायु प्रदेश में सामान्यतः सूर्य के प्रकाश का अभाव रहता है तथा दैनिक तापांतर न्यूनतम रहता है। इसका अक्षांशीय विस्तार 650 से 900 के मध्य रहता है। अत्यधिक सर्द वातावरण होने के कारण यहां वनस्पतियों की वृद्धि एवं विकास के लिए प्रतिकूल स्थिति बनी रहती है। इस प्रकार न्यूनतम पारिस्थितिकीय उत्पादकता के कारण यह बंजर प्रदेश बना रहता है। ऐसी स्थिति में यहां केवल ‘काई’ तथा ‘मास’ प्रमुख वनस्पति के रूप में मिलते हैं।
  • यहां पर 7 से 8 माह तक धरातलीय सतह हिमाच्छादित रहती है एवं वर्ष भर निम्न तापमान रहता है, औसतन वार्षिक तापमान 120C रहता है।
  • उत्तरी ध्रुव से आने वाली ठंडी हवाओं को ‘पुर्गा’ कहते हैं।
  • यूरोप में नॉर्वे, फिनलैंड तथा रूस का उत्तरी भाग, एशिया में साइबेरिया का उत्तरी भाग, कनाडा व अलास्का में टुंड्रा जलवायु पाई जाती है।

हिमटोपी जलवायु प्रदेश

  • वर्ष भर शून्य से कम तापमान वाला यह जलवायु प्रदेशा ग्रीनलैंड अंटार्कटिक के आंतरिक भागों अर्थात ध्रुवों पर पाया जाता है।
  • यहां वर्षा बेहद कम एवं हिम/तुषार के रूप में होती है।
  • तुषार एवं हिम के दबाव के कारण हिम की परतें टूट जाती हैं। हिम परतों के ये टुकड़े आर्कटिक एवं अंटार्कटिक जल में हिम शैल के रूप में तैरने लगते हैं। अंटार्कटिक में 790 दक्षिण अक्षांश पर ‘प्लेट्यू स्टेशन’ पर भी यह जलवायु पाई जाती है।
  • यहां ग्रीष्म ऋतु नहीं होती बल्कि वर्ष भर यह प्रदेश हिमाच्छादित रहता है।

नोट: कैण्डोल ने विश्व की वनस्पतियों को पांच मंडलों में विभाजित किया-

      •  
    • मेगाथर्मल मंडल: इसके अन्तर्गत ऐसे पौधे आते हैं जो वर्ष भर उच्च तापमान और उच्च आर्द्रता (वर्षा) पर निर्भर होते हैं।
    • जेरोफाइटिक (मरूद्भिदी) मंडल: इसके अन्तर्गत ऐसे पौधे आते हैं जो गर्म और शुष्क दशाओं में उग सकें। ऐसे क्षेत्रों में वर्षा वाष्पीकरण की दर से कम होती है। ऐसे पौधों में लम्बी, जड़ें, मोटी छाल, मोमदार एवं छोटे आकार की पत्तियां तथा कांटे इत्यादि होते हैं।
    • मेसोथर्मल मंडल: इसके अन्तर्गत ऐसे पौधे आते हैं जो सामान्यतः तापमान एवं वर्षा के साथ अनुकूलित होते हैं।
    • माइक्रोथर्मल मंडल: इसके अन्तर्गत ऐसे पौधे आते हैं जहां पर न्यूनतम तापमान 100C तथा अधिकतम तापमान 220C से कम रहता है।
    • हेकिस्टोथर्मल मंडल: इसके अन्तर्गत ऐसे पौधे आते हैं जो टुण्ड्रा प्रदेश में उग सकें।

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