विश्व: कृषि
(World : Agriculture)
विश्व के धरातल पर सभी देशों में कृषि के अन्तर्गत भूमि समान नहीं है । अनुमानतः विश्व के लगभग 4 लाख वर्ग किमी क्षेत्र पर खेती की जाती है । पुनश्च संसार की जनसंख्या का 40 प्रतिशत और दक्षिणी एशिया की जनसंख्या का 53 प्रतिशत कृषि तथा सम्बन्धित व्यवसाय में लगा है (FAO : 2012) । कृषि-भूमि का एक-तिहाई मानसून एशिया के देशों में पाया जाता है । रूस एवं स्वतन्त्र राज्यों के राष्ट्रकुल सहित यूरोप के 30 % क्षेत्रफल; उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका के 10 % भाग पर; आस्ट्रेलिया के 6% भाग पर और दक्षिणी अमेरिका के 18% भाग पर खेती की जाती है ।
यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि विश्व का अधिकांश कृषि-उत्पादन विश्व के विशेष उपजाऊ लगभग 11.00 % भू-भाग (FAO-2012 ) से ही प्राप्त किया जाता है और कृषि भूमि का लगभग 75% विश्व के 15 देशों में पाया जाता है, जहाँ सम्पूर्ण विश्व की 55% जनसंख्या निवास करती है । वर्तमान में विश्व जनसंख्या का 40% कृषि व पशुपालन पर निर्भर है । विकसित देशों में यह प्रतिशत 5 से 10 के बीच एवं विकासशील देशों में 25 से 82% के बीच है । विश्व में कृषि जनसंख्या घनत्व (Agriculture Population Density) सबसे अधिक मालदीव में 8,200 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी तथा सबसे कम आस्ट्रेलिया एवं कनाडा में 2 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है । विश्व में कृषि भू-जोतों (Agricultural Holding) का औसत आकार सबसे बड़ा आस्ट्रेलिया में (3,589 हैक्टेअर ) है । इसी प्रकार विश्व में प्रति 1000 व्यक्तियों पर सबसे अधिक कृषि भूमि आस्ट्रेलिया में तथा सबसे कम सिंगापुर में है ।
कृषि के अन्तर्गत फसलों को खाद्यान्न, नगदी या व्यावसायिक फसलों में बाँटा जा सकता है ।
देश प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
चीन दक्षिणी व मध्य चीन में सीक्यांग, यांग्टिसी नदियों की
घाटी व डेल्टा तथा जेचवान क्षेत्र ।
भारत पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश,
केरल, पंजाब , छत्तीसगढ़ ।
इण्डोनेशिया जावा, बोर्नियो, सेलेबीज, सुमात्रा ।
बांग्लादेश खुलना, जैसोर, ढाका, मैमनसिंह, नारायणगंज ।
अन्तर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, मनीला तथा भारत में राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक चावल की कृषि में शोधरत हैं । संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2004 को अंतर्राष्ट्रीय चावल वर्ष के रूप में मनाया । इसका उद्देश्य दुनिया को भूख-मुक्त बनाने के लिए चावल की उत्पादकता व उत्पादन में वृद्धि करना था ।
(2) गेहूँ (Wheat)-गेहूँ क्षेत्रफल एवं उत्पादन दोनों ही दृष्टि से संसार की दूसरी खाद्यान्न फसल है । इस फसल में अनुकूलनशीलता की सीमा बहुत अधिक है । शीत कटिबन्धों से लेकर उष्ण कटिबन्ध तक गेहूं की कृषि की जाती है । शीत कटिबन्धों में यह ग्रीष्मकाल में बसन्तकालीन गेहूँ के रूप में उगाया जाता है तथा उष्ण कटिबन्ध में यह शीतकाल में शीतकालीन गेहूँ के रूप में उगाया जाता है । विश्व के किसी-न-किसी क्षेत्र में गेहूं की बुवाई और कटाई वर्ष भर चलती रहती है ।
उत्पादक देश गेहूँ उत्पादक क्षेत्र
चीन उत्तरी भाग में विशाल मैदान, वी-हो घाटी, यांग्टीसी,
सीक्यांग, मीकांग नदियों की घाटियाँ ।
रूस साइबेरिया के स्टेपीज प्रदेश, * कैस्पियन सागर, काले सागर को मध्य भाग तथा पूर्व के
क्षेत्र में।
संयुक्त राज्य अमेरिका बसन्तकालीन पेटी में प्रेयरीज अमेरिका के उत्तरी भाग में डेकोटा , मोण्टाना और मिनेसोटा तथा शीतकालीन पेटी में कन्सास, ओकलाहोमा नेब्रास्का , इसके अलावा
कैलिफोर्निया प्रमुख गेहूँ क्षेत्र हैं।
अर्जेण्टीना अर्जेण्टीना में पम्पास के मैदानी क्षेत्र गेहूँ केप्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं । पम्पास के पश्चिमी
भाग में विस्तृत अर्द्धचन्द्राकार गेहूँ । की पेटी है ।
कनाडा यहाँ पर प्रेरीज घास के मैदानों में सकेचवान, अलबर्टा, मानीटोबा, विनिपेग प्रमुख क्षेत्र हैं
(3) मक्का (Mulu) मक्का का जन्म स्थान मैक्सिको माना जाता है । यह एक उपोष्ण कटिबंध का पौधा है, जिसमें सभी धान्य फसलों की अपेक्षा स्टार्च की मात्रा सर्वाधिक होती है । यह एक उभयलिंगाश्रयी (Monoecious) पौधा है, जिसके प्रोटीन को जेन (Zein) कहते हैं । विश्व में इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्र अधोलिखित हैं।
देश प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
संयुक्त राज्य अमेरिका "मक्का पेटी" इसका विस्तार 'मध्य अमेरिका' ओहियो से
मध्य नेब्रास्का तक तथा दक्षिण में इलिनायरा से उत्तर
में दक्षिणी विस्कॉन्सिन एवं मिनीसोटा तक है ।
चीन उत्तरी मैदानी भाग ।
ब्राजील मिनास जिरास, साओ पोलो, रायोग्रांडे |
मेक्सिको दक्षिणी क्षेत्र ।
दक्षिणी अफ्रीका त्रिभुज क्षेत्र (Maize Tritiyle) में दक्षिणी ट्रान्सवाल और ओरेंज फ्री स्टेट ।
(4)चाय (Tea) – चाय का जन्मस्थान चीन को माना जाता है । यह उष्ण कटिबन्धीय बागानी फसल (Plantation crop) है जिसकी कृषि मानसूनी जलवायु वाले देशों में सबसे अधिक होती है । भारत विश्व में चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है और यहाँ विश्व उत्पादन का 27 प्रतिशत उत्पादन और विश्व व्यापार का 9.0 प्रतिशत व्यापार होता है जबकि U.S.A. चाय का सबसे बड़ा आयातक राष्ट्र है । विश्व में चाय के मुख्य उत्पादक क्षेत्र अधोलिखित है । यथा-
देश प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
भारत असोम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, दार्जिलिंग
सी०टी०सी० चाय का विश्व में सबसे बड़ा केन्द्र है ।
चीन यांग्टिसी की निचली घाटी, जेचवान बेसिन, सीक्यांग घाटी ।
श्रीलंका मध्य दक्षिणी पठारी भाग में कैंडी बेसिन
कीनिया या केन्या करीचो और लीमरू क्षेत्र
तुर्की काला सागर का पूर्वी तटीय क्षेत्र
(5) कहवा (Coffee) – कहवा एक हरी झाड़ी का बीज है । इसे भूनकर, पीसकर, पाउडर के रूप में तैयार कर उससे पेय पदार्थ तैयार किया जाता है । कहवा का उत्पत्ति स्थल इथियोपिया के केल्फा प्रदेश को माना जाता है । यह एक उष्ण कटिबन्धीय पौधा है । अधिक आर्द्रता, ढलानदार भूमि तथा 15 से 28°C तापमान वाले क्षेत्रों में इसकी कृषि अधिक होती है । कहवा की तीन मुख्य किस्में हैं कॉफिया लाइबेरिया, कॉफिया अरेबिका तथा कॉफिया रोवस्टा । इसमें सबसे उच्चकोटि का कहवा अरेबिका होता है । ब्राजील में रियो-डि जेनेरियो का पृष्ठ प्रदेश, कोलम्बिया तथा इंडोनेशिया के जावा द्वीप में इसे उगाने की आदर्श भौगोलिक दशाएँ पायी जाती है । जमैका का ब्लू माउंटेन विश्व में सर्वोच्च कोटि का कहवा उत्पादक क्षेत्र है ।
भारत में रोबेस्टा प्रकार का कहवा सर्वाधिक क्षेत्रफल पर उगाया जाता है । विश्व का 4% कहवा उत्पादित कर भारत संसार का पांचवाँ सर्वाधिक कहवा उत्पादक राष्ट्र है । ब्राजील व वियतनाम विश्व के कहवे के क्रमशः सबसे बड़े निर्यातक हैं जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका सबसे बड़ा आयातक देश है ।
विश्व में कहवा पैदा करने वाले मुख्य देश पश्चिमी द्वीपसमूह (जमैका, हैटी, क्यूबा); मध्य अमेरिका (एल-सेल्वाडोर, कोस्टारिका); दक्षिणी अमेरिका (वेनेजुएला, कोलम्बिया, ब्राजील, एण्डीज के पठार); एशिया (दक्षिणी भारत, श्रीलंका, इण्डोनेशिया) ; और अफ्रीका (कीनिया, तंजानिया, युगाण्डा, इथियोपिया) ध्यातव्य है कि श्रीलंका में कॉफी की कृषि पर्ण किट्ट (Leaf Just) रोग के कारण बन्द कर दी गई । ज्ञातव्य है कि मोका बन्दरगाह यमन में स्थित है; अतः उस बन्दरगाह से निर्यात होने वाली का कॉफी की संज्ञा है-' माको कॉफी । अर्थात् ‘मोका' कॉफी यमन में उगाई जाती है ।
(6) केकेओ- नामक वृक्ष उष्ण कटिबंधीय वनों में पाए जाते है जिनके फलों के बीजों को कोको कहते है इस वृक्ष का उत्पत्ति केंद्र लैटिन अमेरिका का उष्ण कटिबंधीय भाग माना जाता है क्रिडलो (द. अमेरिका) एवं फोरेस्टो (अफ्रीका) कोको के दो प्रकार हैं । विश्व में इसका सर्वाधिक उत्पादन आइवरी कोस्ट (अफ्रीका) में होता है । तत्पश्चात घाना, इण्डोनेशिया एवं नाइजीरिया (2013) क्रमशः सर्वाधिक उत्पादक राष्ट्र हैं ।
(7) गन्ना (Sugarcane) – विश्व में कुल चीनी (शक्कर) उत्पादन का लगभग 60 से 70 प्रतिशत भाग गन्ने से प्राप्त किया जाता है । गन्ना एक उष्ण कटिबन्धीय पौधा है । इसकी जन्मभूमि भारत को माना जाता है । इसकी कृषि का विस्तार उष्ण और उपोष्ण दोनों ही क्षेत्रों में है । संसार में गन्ना उत्पादन एवं क्षेत्रफल में क्रमशः ब्राजील एवं भारत का प्रथम स्थान है जबकि उत्पादकता की दृष्टि से प्रथम स्थान पेरू का है ।
भारत विश्व में ब्राजील के बाद चीनी उत्पादन करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है, जबकि चीनी खपत में विश्व में पहला स्थान है । देश में चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश का प्रथम स्थान है । यूरोप के देशों को गन्ने का ज्ञान अरबों ने कराया था । भारत के अलावा ब्राजील, चीन, क्यूबा, हवाई द्वीप, जावा द्वीप, फिजी, मॉरीशस आदि में भी गन्ने का पर्याप्त उत्पादन होता है
(8) चुकन्दर (Sugar-beet) – चुकन्दर शीत कटिबन्धीय पौधा है । विश्व में उत्पादित होने वाली चीनी की 30 से 40 प्रतिशत मात्रा चुकन्दर से प्राप्त होती है । सर्वप्रथम जर्मनी में चुकन्दर से चीनी बनाने की प्रक्रिया सन् 1779 में विकसित की गई । विश्व में चुकन्दर की कृषि का विस्तार समशीतोष्ण कटिबन्ध में अधिक है । इसकी कृषि को मुख्यतः 'यूरोपीय कृषि' की संज्ञा प्रदान की जाती है ।
देश प्रमुख उत्पादक क्षेत्र
रूस पश्चिमी साइबेरिया क्षेत्र ।
जर्मनी उत्तर का मैदानी भाग/दक्षिण में बावेरिया का पठारी भाग।
फ्रांस फ्लैण्डर्स प्रदेश एवं पेरिस बेसिन।
संयुक्त राज्य विस्कांसिन, आयोवा, नेब्रास्का,
अमेरिका फ्लोरिडा, यूटाहा और कैलिफोर्निया
पोलैण्ड प्राजनान प्रान्त
(9) कपास (Cotton) कपास मालवेसी कुल का सदस्य हैं । यह एक उष्ण कटिबन्धीय पौधा है । इसकी कृषि 40° उत्तरी अक्षांश से 30° दक्षिणी अक्षांशों के बीच अधिक होती है । लम्बे रेशे वाली कपास का रेशा 4 से 6 सेमी लम्बा, मध्यम रेशे की लम्बाई 2 से 4 सेमी तथा छोटे रेशे की लम्बाई 2 सेमी से कम होती है । संसार में मुख्यतः इसकी दो प्रजातियाँ पायी जाती हैं । प्रथम को देशी कपास (Old World Cotton) अर्थात् गासिपियम । अरबोरियम एवं गा; हरबेरियम के नाम से तथा दूसरा अमेरिकन कपास (New World Cotton) अर्थात् गा, हिरसुटम एवं बारवेडेन्स के नाम से जाना जाता है । देशी कपास का जन्म स्थान भारत व इण्डोचाइना और अमेरिकन कपास का मैक्सिको व दक्षिणी अमेरिका का माना जाता है । अमेरिकन कपास के रेशे लम्बे, रूई चमकीला तथा उपज देशी कपास से अधिक मिलता है । विश्व में मध्यम रेशे वाली कपास की कृषि सबसे अधिक होता है ।
ज्ञातव्य है कि कपास को सफेद सोना (White Gold) की उपमा दी गई है।
रबड़ (Rubber) – रबड़ एक प्रमुख बागाती फसल (Plantation crop) है । रबड़ के पौधों के रस (Latex) अथवा गोंद से बना रबड़ प्राकृतिक रबड़ कहलाता है । रबड़ विषुवत्रेखीय जलवायु का पौधा है । इसका मूल स्थान दक्षिणी अमेरिका में अमेजन की घाटी को माना जाता है । विश्व में ब्राजील का पारा किस्म का रबड़ सबसे उत्तम माना जाता है । 2013 - 14 के अनुसार देश में रबड़ की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1206 किग्रा० थी जो विश्व में सर्वाधिक है । ध्यातव्य है कि FAO : 2013 के अनुसार भारत विश्व में प्राकृतिक रबड़ का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक एवं दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है ।
कृषि के प्रकार
(1) निर्वाहक कृषि (Subsistence Agri -culture) – खेती करने वाले परिवार की मात्र निर्वाह भर की फसलें उगाने वाली कृषि को जीविका कृषि का नाम दिया जाता है । इस प्रकार की कृषि आर्द्र -उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में की जाती है । अमेजन नदी की घाटी, सहारा के दक्षिण मध्य, पश्चिमी और पूर्वी अफ्रीका, दक्षिण-पूर्वी एशिया भारत, चीन के क्षेत्रों में की जाती है । यह कृषि स्थानान्तरणशील अथवा स्थानबद्ध दोनों प्रकार की हो सकती है । विशेष रूप से जब तक कृषि का मुख्य उद्देश्य उत्पादन का किसी उत्पादक विशेष की निजी आवश्यकताओं की पूर्ति तक ही सीमित रहता है तब तक हर प्रकार की कृषि जीविका कृषि के अन्तर्गत ही आती है । इस प्रकार की कृषि में तीव्रगति से बढ़ती जनसंख्या के भोजन की आपूर्ति के लिए खाद्य फसलों की प्रमुखता रहती है । | स्थानान्तरण कृषि (Shifting Agricul ture) में किसान अपना निवास तथा कृषि क्षेत्र निरन्तर परिवर्तित करता रहता है ।
(2) विस्तृत खेती (Extensive farming) विस्तृत आकार वाली जोतों के बड़े-बड़े खेतों पर यांत्रिक विधियों से की जाने वाली कृषि को विस्तृत कृषि के अन्तर्गत शामिल किया जाता है । इस प्रकार की कृषि में श्रमिकों का उपयोग कम होता है ।
किन्तु प्रति व्यक्ति उत्पादन की मात्रा अधिक होती है । इसी प्रकार यद्यपि प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम होता है किन्तु कुल उत्पादन काफी अधिक होता है । इस प्रकार की खेती प्रेयरी के मैदान तथा आस्ट्रेलिया में की जाती है ।
(3) बागाती कृषि (Plantation Agricul - ture) — इस प्रकार की खेती बागानों तथा कृषि फार्मों पर की जाती है । बागीचे विशिष्ट फसल को पैदा करते हैं । जैसे— केला, रबड़, चाय, कॉफी तथा कोको आदि । इस प्रकार की कृषि के चार प्रमुख क्षेत्र हैं-
(i) उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र–अमेजन व कांगो बेसिन, दक्षिण-पूर्वी एशिया;
(ii) लैटिन अमेरिका;
(iii) मध्य अफ्रीका व गिनी तट;
(iv) दक्षिणी और दक्षिणी-पूर्वी एशिया
इस प्रकार की कृषि में निम्न विशेषताएँ पायी जाती हैं
इस प्रकार की कृषि के उत्पादों का अधिकांश उपभोग समशीतोष्ण कटिबन्ध के देशों में किया जाता है अतः इनके उत्पादों का निर्यात कर दिया जाता है
बागन में ही कार्यालय, माल तैयार करने, सुखाने तथा श्रमिकों के निवास आदि पाए जाते हैं ।
आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक तरीके समशीतोष्ण देशों या यूरोपवासियों ने बताए एवं पूंजी सुलभ की । उदाहरणार्थ, मलेशिया में रबड़ के बागात अंग्रेजों ने, ब्राजील में कॉफी पुर्तगालियों ने, मध्य अमेरिका में केले के बगीचे स्पेनवासियों ने स्थापित किए ।
(4) भूमध्यसागरीय कृषि — इस प्रकार की कृषि का विकास भूमध्यसागरीय जलवायु वाले प्रदेशों में किया गया है । यहाँ की जलवायु की विशेषता है । कि यहाँ सर्दियों में वर्षा होती है और ग्रीष्म ऋतु सूखी रहती है । अतः यहाँ दो प्रकार की उपज उत्पन्न की जाती है ।
(i) शीत ऋतु में उत्पन्न की जाने वाली उपजें- शीत-ऋतु में वर्षा होती है, अतः यहाँ गेहूँ, आलू, प्याज, टमाटर और सेम की उपज प्राप्त की जाती है ।
(ii) ग्रीष्म-ऋतु की फसलें- ग्रीष्म ऋतु इस प्रदेश में शुष्क ऋतु होती है, अतः ऐसी उपज उत्पन्न की जाती है जिसमें वर्षा की कम आवश्यकता होती है । जैसे-अंगूर, जैतून, अंजीर, चीकू, सेब, नासपाती तथा सब्जियाँ आदि । इस प्रकार की कृषि दक्षिणी स्पेन, फ्रांस, इटली, ग्रीस, पश्चिमी तुर्की तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलीफोर्निया राज्य में की जाती है ।
गहन कृषि और विस्तृत कृषि
गहन कृषि- में छोटे से भूखंड से अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है जिसमें उत्तम बीज, अधिक श्रम तथा वैज्ञानिक उपकरणों और रासायनिक खाद आदि का प्रयोग होता है । पश्चिमी बंगाल में चावल की खेती इसी प्रकार से की जाती है । इसके अंतर्गत किसान एक से अधिक फसलों को उगाने का प्रयास भी करते हैं । ऐसी कृषि मुख्यतः अधिक जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में की जाती है । गहन खेती में मशीनीकरण का स्तर नीचा होता है तथा मानव श्रम का उपयोग अधिकतम होता है । चीन, जापान तथा पूर्वी एशिया एवं पश्चिमी यूरोप में इसका अधिक प्रचलन हैं ।
विस्तृत कृषि- इसके ठीक विपरीत कृषि पद्धति है । इस प्रकार की कृषि बड़े-बड़े भूखंडों पर मशीनों की सहायता से की जाती है । मानवीय श्रम और पशु शक्ति का कम प्रयोग किया जाता है । कृषि योग्य भूमि की काफी अधिकता होने के कारण वर्ष भर में केवल एक ही फसल उगाई जाती है । प्रति हेक्टेयर उत्पादन व रासायनिक खादों का उपयोग कम होता है । बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग की पूर्ति हेतु इसकी विशेषताओं में परिवर्तन आ जाता है । ऐसे में प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद व मशीनों का अधिक प्रयोग किया जाता है । विस्तृत खेती कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों की विशेषता है । यू. एस. ए., कनाडा तथा आस्ट्रेलिया में इस प्रकार की कृषि का अधिक प्रचलन है ।
मुख्य फसलें
गेहूं-गेहूं का उत्पादन शीतोष्ण कटिबंधीय जलवायु प्रदेशों जैसे प्रेयरी तथा स्टैपी में अधिक होता है । अच्छे जल निकास वाली मिट्टी इसके लिए आदर्श होती है । 15° से 20° से . तापमान गेहूं की फसल के लिए उपयुक्त होता है । इस फसल के लिए लगभग 75 से.मी. वर्षा काफी होती है । इसकी खेती संबंधी 26°से अधिकांश कार्य मशीनों की सहायता से किया जा सकता है । इसलिए गेहूं विस्तृत कृषि की एक प्रमुख फसल है । गेहूं शीतोष्ण कटिबंधों के अतिरिक्त ऊष्ण व है उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में भी उगाया जाता है । संसार में चीन, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्रांस और रूस में इसका उत्पादन अधिक होता है ।
चावल — यह आर्द्र और गर्म जलवायु प्रदेशों की फसल है । 20° से 27° से. तापमान इसकी फसल के लिए अनुकूल होता है । दोमट और जलोढ़ मृदा में इसकी उपज अच्छी होती है । चूंकि चावल की कृषि के लिए जल की आवश्यकता होती है इसलिए चीका प्रधान मृदा भी इसके लिए उपयुक्त होती है । चावल की खेती के लिए 100 से. मी. से अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है । कम वर्षा वाले क्षेत्र में सिंचाई के साधनों का प्रयोग किया जाता है । यह एक श्रम प्रधान फसल है तथा इसे अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है । चावल के प्रमुख उत्पादक चीन, भारत तथा इंडोनेशिया
मक्का-मौलिक रूप से यह अमेरिका की फसल है जहां इसे कॉर्न के नाम से भी जाना जाता है । इसके लिए 18°से 27° से. तापमान की आवश्यकता होती है । वह क्षेत्र जहां पर 60- 70 से. मी. वर्षा होती है इसके लिए उपयुक्त रहते हैं । अच्छे जल निकास वाली दोमट व बलुई मिट्टी मक्का की फसल के लिए आदर्श होती है । उत्तरी अमेरिका में मक्का मांस प्राप्त करने के लिए पाले गए पशुओं को खिलाई जाती है । मक्का के प्रमुख उत्पादक देश चीन, ब्राजील, मैक्सिको और नाइजीरिया हैं |
मोटे अनाज- बाजरा, ज्वार आदि मोटे अनाज निम्न कोटि की खाद्य फसलें हैं, जो मुख्यत: कम उपजाऊ और निम्न वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाई जाती हैं । अधिकांश मोटे अनाज मुख्यत: ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जहां, 60 से. मी. तक वर्षा होती है उगाए जाते हैं । यह कम पोषक तत्त्व प्रदान करने वाला भोजन है जिसका उपभोग गरीब लोग खाने के रूप में करते हैं । भारत , नाइजीरिया व चीन इनके अग्रणी उत्पादक देश हैं ।
जौ - यह प्रोटीन का एक उत्तम स्रोत है । जिन क्षेत्रों में गेहूं का उत्पादन का किया जाता है । उन सभी क्षेत्रों में इसका भी उत्पादन किया जा सकता है । उपयोग बियर बनाने के लिए किया जाता है । सामान्यतया इसका उत्पादन निम्न वर्षा वाले क्षेत्रों तथा कम उपजाऊ भूमि पर किया जा सकता है । जौ की खेती गेहूं की अपेक्षा अधिक विषम तथा कठोर जलवायु के क्षेत्रों में की जा सकती है । कनाडा, रूस, जर्मनी और यूक्रेन इसके प्रमुख उत्पादक देश हैं ।
तिलहन- तिलहन उन चीजों को कहा जाता है जिनसे तेल निकाला जा सकता है । सामान्यतया इनकी खेती कम वर्षा वाले गर्म जलवायु प्रदेशों में की जाती है । अधिकांश तिलहन फसलें, ऊष्ण व उपोष्ण कटिबंधीय होती हैं । प्रमुख तिलहनों में मूंगफली, सोयाबीन, नारियल तथा सरसों महत्त्वपूर्ण हैं । सरसों, अलसी और रेंडी तेल मुख्य रूप से भारत और ब्राजील में तथा सोयाबीन, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा चीन में उत्पादित किया जाता है । नारियल के प्रमुख उत्पादक फिलीपीन्स, इंडोनेशिया, भारत तथा श्रीलंका हैं । पाम वृक्ष के फल भी एक खाद्य तेल का महत्वपूर्ण स्रोत हैं । इनके प्रमुख उत्पादक नाइजीरिया और मलेशिया हैं । अर्जेंटीना, कनाडा, भारत, यू. एस. ए, तथा रूस फलैक्स के बीज से प्राप्त तेल के प्रमुख उत्पादक हैं ।
चाय- चाय एक महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ है । इसका उत्पादन पर्वतीय ढालों पर विशेषकर मानसूनी जलवायु के क्षेत्रों में किया जाता है । इसके लिए 21° से, से ऊंचा तापमान तथा 200 से. मी. से अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है । लम्बा शुष्ककाल तथा पौधे की जड़ों में पानी का रुका रहना दोनों ही पौधों के लिए हानिकारक होते हैं । अति तेज धूप भी चाय के पौधों के लिए प्रतिकूल होती है । इसलिए चाय बागानों में हल्की छाया प्रदान करने वाले वृक्ष भी कई बार लगाए जाते हैं । इसके लिए उपजाऊ तथा कुछ अम्लीय प्रकार की मृदा उपयोगी रहती है । पेय पदार्थ पौधे की पत्तियों से प्राप्त किया जाता है । भारत, चीन, श्रीलंका तथा केन्या चाय के प्रमुख उत्पादक हैं ।
कॉफी- यह भी एक महत्त्वपूर्ण पेय पदार्थ है । इसके उगाने के लिए 26°से. तापमान और लगभग 150 से 200 से. मी. वर्षा आवश्यक होती है । कॉफी के पौधों को बड़े वृक्षों की छाया में, जैसे रबड़ के वृक्षों की छाया में लगाया जाता है । कॉफी पूर्णतया उष्णार्द्र क्षेत्रों का पौधा है और इसका वितरण इन्हीं क्षेत्रों तक सीमित है । कॉफी पेय इस पौधे के भुने हुए बीजों से बनाया जाता है । कॉफी के उत्पादन में ब्राजील, कोलंबिया, मैक्सिको, इंडोनेशिया और यूगांडा अग्रणी हैं ।
गन्ना- गन्ना चीनी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है । इसका उत्पादन 20° से 28° से. तापमान तथा 120 से. मी. तक वर्षा वाले क्षेत्रों में किया जाता है । इसके लिए गहरी उपजाऊ मृदा की आवश्यकता होती है । कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है । मृदा को उपजाऊ बनाए रखने के लिए रासायनिक तथा जैविक खादों का प्रयोग भी अनिवार्य होता है । पाला इसके लिए अत्यधिक हानिकारक होता । भारत, ब्राजील, संयुक्त राज्य अमेरिका और क्यूबा इसका उत्पादन करने वाले अग्रणी देश हैं ।
चुकंदर- गन्ने के बाद यह चीनी का दूसरा महत्त्वपूर्ण स्रोत है । यह शीतोष्ण प्रदेशों की फसल है जिसके लिए लगभग 3 महीने तक 16°_ 23° से. तापमान की आवश्यकता होती है तथा कम से कम 65 से. मी. वर्षा की आवश्यकता होती है । क्योंकि चुकंदर की वृद्धि भूमि के अंदर होती है इसलिए इसे उगाने के लिए गहरी तथा हल्की मिट्टियां अनुकूल होती हैं । यूक्रेन, फ्रांस, जर्मनी और बाल्टिक राष्ट्र इसके उत्पादन में अग्रणी हैं ।
तंबाकू- तंबाकू एक ऊष्णकटिबंधीय पौधा है तथा इसके लिए उष्ण, पाला रहित मौसम की आवश्यकता होती है । तापमान लगभग 18° से. के लगभग होना चाहिए तथा कम से कम 120 से 180 दिन मौसम पालारहित रहना चाहिए । तंबाकू के लिए जलोढ़ उपजाऊ या वलुई दोमट मिट्टी अच्छी रहती है । इसे चीकायुक्त काली मिट्टी पर भी उगाया जा सकता है । चीन, ब्राजील, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका तंबाकू के अग्रणी उत्पादक हैं ।
रबड़- ऊंचा तापमान, 27° से. से अधिक, सारा साल भारी वर्षा, 150 से. मी. से अधिक, व उपजाऊ गहरी मिट्टी इसके लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियां हैं । रबड़ के वृक्ष के लिए अच्छे जल निकास वाली गहरी मिट्टी आदर्श होती है । थाइलैंड, इंडोनेशिया और मलेशिया इसके अग्रणी उत्पादक देश हैं ।
कपास - कपास एक महीन रेशा है जोकि इस पौधे के फलों से प्राप्त होता है । इसके लिए ऊष्ण जलवायु के साथ मध्यम वर्षा की आवश्यकता होती है । ग्रीष्मकाल में तापमान 25° से तक रहना चाहिए । इसके लिए 200 दिन तक । पालारहित मौसम तथा पकने के समय मेघरहित मौसम की आवश्यकता होती है । जलोढ़ तथा काली मिट्टी इसके लिए आदर्श होती हैं । उत्पादन में वृद्धि के लिए रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाता है । कपास मिट्टी की उर्वरता को तेजी से कम करने वाली फसल है । चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, पाकिस्तान, भारत और उजबेकिस्तान इसके उत्पादन में अग्रणी हैं ।
जूट - जूट पौधों के तने की छाल से प्राप्त किया जाता है । ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जहां तापमान 27° से. से 30° से. व वर्षा 100 से 200 से. मी. तक होती है उन क्षेत्रों में इसका उत्पादन किया जाता है । ऊंची आर्द्रता पौधे के लिए अनुकूल होती है । यह डेल्टा प्रदेशों की मुख्य फसल है । कपास की तरह यह भी मिट्टी की उर्वरता में तेजी से कमी लाने वाली फसल हैं । भारत और बांग्लादेश इसके उत्पादन में अग्रणी हैं ।
पटुआ— यह शीतोष्ण प्रदेशों का महीन रेशा है । इसे उगाने के लिए 16° - 18° से. तापमान व 50-75 से. मी. वर्षा की आवश्यकता होती है । इसके लिए वलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है । रूस, बाल्टिक राष्ट्र और पोलैंड इसके उत्पादन में अग्रणी हैं ।
हैंप--यह भी एक महीन रेशा है जिसके उत्पादन के लिए पटुआ (Flax) जैसी भौगोलिक परिस्थितियों की आवश्यकता होती है । रूस, युक्रेन, भारत और चीन इसके उत्पादन में अग्रणी हैं ।
सिल्क- रेशम के कीड़ों को पालना और उनसे रेशम प्राप्त करना Seri - culture कहलाता है । यह पूर्वी तथा दक्षिणी एशिया का एक पारंपरिक व्यवसाय है । रेशम का कीड़ा उपोष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में अधिक पनपता है । इसके लिए आदर्श तापमान 16° से. से ऊपर होता है । चीन, भारत और जापान इसके उत्पादन में अग्रणी हैं । भारत में उत्पादित रेशम की महत्त्वपूर्ण किस्में मूगा तथा मलवरी |
अंगूर – इनका उत्पादन भूमध्यसागरीय जलवायु के क्षेत्रों में शीतकालीन वर्षा के साथ होता है । अंगूर के प्रमुख उत्पादक इटली, फ्रांस तथा यू. एस. ए. हैं । अंगूर को सुखाकर किशमिश बनाया जाता है । टर्की, यू. एस. ए. और ईरान किशमिश लिए के उत्पादन में अग्रणी हैं ।
केला— यह ऊष्णकटिबंधीय जलवायु का फल है । इसके उत्पादन के लिए तापमान को उच्च रहना तथा 150 से. मी. से अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है । भारत, फिलीपिंस व चीन इसके उत्पादन में अग्रणी हैं ।
आम- यह भी एक ऊष्णकटिबंधीय फल है जोकि उष्णार्द्र जलवायु के क्षेत्रों में होता है । यह एक ग्रीष्मकालीन फल है । भारत, पाकिस्तान व चीन इसके यह उत्पादन में अग्रणी हैं । सेब-यह शीतोष्ण कटिबंधीय फल है । चीन, फ्रांस और इटली इसके प्रमुख उत्पादक देश हैं ।
अनानास- यह एक ऊंची वर्षा वाले ऊष्ण क्षेत्रों का फल है । इसके लिए तापमान 25° से. तक होना चाहिए तथा वर्षा 150 से. मी. से अधिक होनी चाहिए । थाइलैंड, फिलीपींस, चीन और भारत इसके प्रमुख उत्पादक देश हैं ।
मसाले– अधिकांश मसाले ऊष्णकटिबंधीय प्रदेशों के उत्पाद हैं । लौंग एंक पौधे की सुखाई हुई कली होती है तथा काली मिर्च एक बेल का बीज । लौंग का उत्पादन पूर्वी अफ्रीका के देशों तथा पाम्बा एवं जेंजीबार द्वीपों में होता है । इसे मलेशिया, भारत और इंडोनेशिया काली मिर्च उत्पादन में अग्रणी हैं ।
आलू- यह शीतोष्ण कटिबंधीय फसल है । भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस व चीन इसके प्रमुख उत्पादक हैं ।
पशुपालन व पशु उत्पाद
संसार के विभिन्न भागों में अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पशुओं को पाला जाता है । कई देशों की अर्थव्यवस्था में पशुपालन का महत्त्वपूर्ण योगदान है । पशुओं को दूध मांस तथा ऊन के लिए तथा शक्ति के स्रोत के रूप में भी पाला जाता है । ऊन, मांस तथा डेयरी उत्पाद संसार के प्रमुख पशु उत्पाद हैं ।
मांस के लिए पशुपालन - मांस के लिए पशुओं को पाला जाना संसार के अनेक भागों में एक महत्त्वपूर्ण गतिविधि है । कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों या फसल उत्पादन के लिए प्रतिकूल जलवायु दशाओं वाले क्षेत्रों में पशुपालन एक प्रमुख आर्थिक क्रिया है ।
यद्यपि पशुओं की सर्वाधिक संख्या (15 प्रतिशत) भारत में पाई जाती है परंतु हमारा देश मांस का महत्त्वपूर्ण उत्पादक नहीं है । यहां पशुपालन दूध उत्पादन तथा कृषि क्षेत्र में पशुओं के उपयोग के लिए किया जाता है । प्रमुख मांस उत्पादक प्रदेशों में प्रेयरी, स्टैपी, पंपास, वेल्ड, डाऊंस और न्यूजीलैंड के कुछ भागों को सम्मिलित किया जाता है । यू. एस. ए., ब्राजील, चीन तथा रूस संसार के सबसे बड़े मांस उत्पादक तथा अर्जेटीना, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड सबसे बड़े निर्यातक हैं । संयुक्त राज्य अमेरिका का शिकागो नगर संसार के बडे मांस बाजारों में सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है । और इसे meat city भी कहा जाता है ।
डेयरी – दूध देने वाले पशुओं को ठंडे आर्द्र जलवायु वाले प्रदेशों में पाला जाता है । मांस के लिए पाले गए पशुओं की तरह इन पशुओं को शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में नहीं पाला जा सकता । एक अनुकूल जलवायु के अतिरिक्त डेयरी के विकास के लिए, एक बड़े स्थानीय बाजार का होना भी आवश्यक है । ताजा दूध, दुग्ध पाउडर, मक्खन तथा पनीर महत्त्वपूर्ण डेयरी उत्पाद हैं । संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण डेयरी क्षेत्र पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका तथा दक्षिणी महाद्वीपों के शीतोष्ण क्षेत्रों में स्थित हैं । गाय दूध का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं । भारत जैसे देशों में दूध के लिए भैंसे भी पाली जाती हैं । गाय के दूध के सबसे बड़े उत्पादक देश भारत, यू. एस. ए., रूस तथा जर्मनी हैं । भारत, सूडान तथा चीन भैंस के दूध के अग्रणी उत्पादक हैं । पनीर के अग्रणी उत्पादक यू. एस. ए. फ्रांस तथा जर्मनी हैं । जबकि मक्खन तथा घी के सबसे बड़े उत्पादक भारत, यु. एस. ए. तथा जर्मनी हैं । डेयरी उत्पादों के प्रमुख निर्यातक डेनमार्क, नीदरलैंड तथा न्यूजीलैंड हैं । जर्सी, फरिजियन तथा हॉल्सटीन गाय की अधिक दूध देने वाली नस्लें हैं ।
भेड़ - भेड़ों को ऊन व मांस प्राप्त करने के लिए अर्द्ध शुष्क जलवायु वाले प्रदेशों में पाला जाता है । सामान्यतया इन्हें उन क्षेत्रों में पाला जाता है जहां वर्षा अति कम होने के कारण पशुओं को नहीं पाला जा सकता है । आस्ट्रेलिया, तथा चीन में भेड़ों की संख्या अधिक है । न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया ऊन के प्रमुख उत्पादक देश हैं । अलग-अलग प्रदेशों से प्राप्त होने वाली ऊन की गुणवत्ता में अंतर होता है । गर्म व आर्द्र प्रदेशों की ऊन निम्न गुणवत्ता वाली होती हैं जबकि ठंडे व शुष्क प्रदेशों की ऊन उच्च गुणवत्ता वाली होती है । रूस और अर्जेटीना भी महत्त्वपूर्ण ऊन उत्पादक देश हैं । आस्ट्रेलिया ऊन निर्यात करने वाले देशों में प्रमुख हैं । न्यूजीलैंड तथा आस्ट्रेलिया मटन (भेड़ का मांस) के सबसे बड़े निर्यातक हैं ।
बकरियां- बकरी का पालन दूध, मांस व खाल के लिए किया जाता है । बकरी पालन उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां पर पशुपालन के लिए चारा समुचित मात्रा में न हो तथा जहां की जलवायु अधिक गर्म हो । कुछ बकरियां जैसे अंगोरा, ऊन भी प्रदान करती हैं । सबसे ज्यादा बकरियां भारत में तथा चीन और पाकिस्तान में पाई जाती हैं । ये देश बकरी के मांस के प्रमुख निर्यातक भी हैं ।
सुअर— ये प्रोटीन के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं तथा अपने आस-पास के पर्यावरण को साफ रखने में भी सहयोग प्रदान करते हैं । सुअरों की सबसे अधिक संख्या चीन में पाई जाती है । यू. एस. ए. तथा ब्राजील में भी सुअरपालन एक महत्त्वपूर्ण व्यवसाय है ।
मुर्गीपालन– विश्व में मुर्गी पालन अधिकांशतः चिकन के लिए किया जाता है । इसके अतिरिक्त इनसे अण्डे भी प्राप्त होते हैं । चीन, यू. एस. ए., रूस और जापान इनके प्रमुख उत्पादक देश हैं ।
खाल, फर और चमड़ा- खाल और चमड़ा मुख्यतः पशुओं से प्राप्त किए जाते हैं । इसलिए पशुपालन करने वाले अधिकांश देश इनके प्रमुख उत्पादक भी हैं जैसे कि यू. एस. ए., अर्जेंटीना, ब्राजील, न्यूजीलैंड और भारत फर मुख्यतः ठंडे प्रदेशों में पाए जाने वाले जंतुओं से प्राप्त होते हैं । नार्वे, फिनलैंड, रूस तथा कनाडा इनके प्रमुख उत्पादक देश हैं । पिछले दशकों में इस संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन फर फार्मों की स्थापना रही है । इन फार्मों पर समूरधारी जंतुओं को पाला जाता है तथा इनसे फर प्राप्त की जाती है । इस प्रकार के फार्म कनाडा, यू. एस. ए., रूस तथा उत्तरी यूरोप के देशों में स्थापित किए गए हैं । आजकल फर उत्पादन व्यवसाय को बड़ी संख्या में लोगों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है ।
मत्स्यन — मत्स्यन तटीय प्रदेशों में रहने वाले लोगों का महत्त्वपूर्ण पारंपरिक व्यवसाय रहा है । परंतु आधुनिक रूप से बड़े पैमाने पर मत्स्यन केवल कुछ ही क्षेत्रों में विकसित हुआ है । मत्स्यन को कई वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है । आंतरिक मत्स्यन तथा समुद्री मत्स्यन इनमें प्रमुख हैं । समुद्री मत्स्यन के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र शीतोष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में कम गहरे उथले समुद्रों में पाए जाते हैं जहां पर मछलियों के विकास के लिए अनुकूल दशाएं पाई जाती हैं । इन क्षेत्रों को बैंक कहा जाता है । उत्तरी अटलांटिक महासागर में स्थित ग्रांड बैंक तथा डागर बैंक इनमें प्रमुख हैं । इनमें से कुछ क्षेत्र वे क्षेत्र हैं जहां पर गर्म समुद्री धाराएं शीत समुद्री धाराओं से मिलती है तथा यहां पर प्लवक बड़ी मात्रा में पाये जाते हैं ।
संसार के प्रमुख मत्स्यन क्षेत्र: चूंकि मत्स्यन एक प्राकृतिक संसाधन आधारित प्राथमिक व्यवसाय है, इसलिए यह व्यवसाय इस संसाधन के वितरण पर आधारित है । अर्थात् मत्स्यन, उद्योग वहीं विकसित हो सकता है जहां मछलियां बहुतायत में पाई जाती हैं तथा जहां एक क्षेत्र-विशेष में एक ही प्रजाति की मछलियां एक साथ पाई जाती हो । यद्यपि मछलियों के विकास के लिए उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र काफी उपयुक्त क्षेत्र होते हैं परन्तु इन क्षेत्रों में एक ही क्षेत्र में अनेक प्रजातियों की मछलियां एक साथ पाई जाती हैं जो मत्स्यन व्यवसाय में विशिष्टीकरण के लिए अनुकूल परिस्थिति नहीं है । मत्स्यन के विकास के लिए अच्छे बन्दरगाहों तथा निकटवर्ती बाजारों की भी आवश्यकता होती है । इस दृष्टिकोण से भी उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र इस व्यवसाय के विकास के लिए अपेक्षतया कम अनुकूल हैं । साथ ही इन अक्षांशों में छिछले सागरीय क्षेत्रों की भी बहुतायात नहीं है । उष्ण जलवायु क्षेत्रों में पकड़ी गई मछली के शीघ्र खराब होने की समस्या भी आरम्भ में इस आर्थिक क्रिया के विकास में बाधक रही है । परन्तु प्रशीतन प्रणाली तथा तीव्र परिवहन के विकास से यह समस्या काफी सीमा तक सुलझ गई है । उपरोक्त कारणों से मत्स्यन का विकास संसार के कुछ भागों में अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक हुआ है ।
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