वायुमण्डल पृथ्वी के चारों ओर सैकड़ों कि.मी. की मोटाई में लपेटने वाले गैसीय आवरण को कहते हैं ।
वायुमण्डल विभिन्न गैसों का मिश्रण है जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है । पृथ्वी के चारों ओर हवा के घेरे के विशाल आवरण को वायुमंडल कहते हैं ।
वायुमंडल का करीब 99% भाग केवल नाइट्रोजन (78.8%) एवं ऑक्सीजन (20.95%) गैसों से निर्मित हैं । शेष कार्बन 1% भाग में सभी गैसें निऑन (आर्गन, नियनि. हीलियम हाइड्रोजन, क्रिप्टॉन, क्रिप्टन जेनॉन, हीलियम, ओजोन) सम्मिलित हैं ।
पृथ्वी के साथ वायुमंडल ओजोन गुरुत्वाकर्षण के कारण टिका रहता है । वायुमण्डल का विस्तार लगभग 10,000 किमी. तक माना गया है ।
वायुमंडल अनेक गैसों का यांत्रिक सम्मिश्रण है, इसमें पायी जाने वाली प्रमुख गैसे व अन्य पदार्थ निम्नलिखित हैं-
नाइट्रोजन
यह वायुमंडलीय गैसों में सर्वप्रमुख होता है ।
वायुमंडल में नाइट्रोजन की उपस्थिति के कारण ही वायुदाब पवनों की शक्ति तथा प्रकाश के परावर्तन का आभास होता है ।
लेग्यूमिनस पौधे वायमंडलीय नाइट्रोजनी पोषक तत्वों की पूर्ति करते हैं ।
नाइट्रोजन से पेड़ पौधो में प्रोटीन का निर्माण होता है जो भोजन के मुख्य घटक हैं ।
ऑक्सीजन
यह जन्तुओं तथा मनुष्यों के लिए प्राणदायिनी गैस होती है ।
वायुमंडल में 120 किमी. की ऊँचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा नगण्य हो जाती है ।
पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण क्रिया के द्वारा वायुमंडल में ऑक्सीजन छोड़ते हैं ।
आर्गन
वायुमंडल में उपस्थित अक्रिय गैसों में आर्गन की मात्रा सर्वाधिक होती है ।
अक्रिय गैसों में आर्गन एक भारी गैस है ।
वायुमंडल में पाये जाने वाले शेष अक्रिय गैस हैं-निऑन, हीलियम, क्रिप्टोन, जेनान एवं ओजोन ।
वायुमंडल (सममंडल) की गैसें
गैस
प्रतिशत
निऑन (Ne)
0.002
हीलियम (H2)
0.0005
क्रिप्टन (Kr)
0.001
जेनॉन (Xe)
0.00009
हाइड्रोजन (H2)
0.00005
ओजोन (03)
0.0000001
नाइट्रोजन (N2)
78.80
ऑक्सीजन (02)
20.95
आर्गन (Ar)
0.93
कार्बन डाइऑक्साइड (Co2)
0.036
हाइड्रोजन
वायुमंडल की यह सबसे हल्की गैस है जो सभी गैसों के ऊपर लगभग 1100 किमी. की ऊँचाई तक पायी जाती है ।
जलवाष्प
वायुमंडल में इसकी मात्रा 1% से 4% तक होती है ।
विषुवत रेखा पर जलवाष्प अधिक तथा ध्रुवों पर कम पाई जाती है । सूर्याताप से प्रति सेकेण्ड 1.6 करोड़ टन जल वाष्प बनकर उड़ जाता है ।
ऊँचाई के साथ जलवाष्प की मात्रा में कमी आयी है । 7500 मीटर से अधिक ऊँचाई पर जलवाष्प अनुपस्थित होती है ।
हवा में जलवाष्प की कुल मात्रा का आधा भाग 200 मीटर की ऊँचाई से नीचे होता है । कार्बन डाइऑक्साइड तथा जलवाष्प की मात्रा 90 किमी की ऊँचाई तक पाई जाती है ।
धूल कण
वायुमंडल के निचले भाग में अनेक प्रकार की अशुद्धियाँ पाई जाती हैं जिनमें धूल कण प्रमुख होते हैं । धूलकणों का सबसे अधिक जमाव वायमंडल के निचले भागों में मौजूद रहता है ।
समुद्रों व झीलों के ऊपर रासायनिक लवण पाए जाते हैं । सूर्याताप के अवशोषण, परावर्तन तथा प्रकीर्णन में इन कणों का विशेष योगदान होता है ।
धूलकणों के कारण ही सूर्योदय, सूर्यास्त, मेघ तथा इन्द्रधनुष के विभिन्न रंग बिखरते हैं ।
वायुमंडल का स्तरीकरण
वायुमंडल की ऊँचाई करीब 10 हजार किमी है, किन्तु धरातल से केवल 800 किमी. ऊँचा वायुमंडल ही अधिक महत्त्वपूर्ण है । तापमान की स्थिति तथा अन्य विशिष्टताओं के आधार पर इसे पांच परतों में बांटा गया है-
क्षोभ मंडल-वायुमंडल के सबसे निचले भाग जिसकी ऊंचाई धरातल से औसतन 12 किमी. होती है, परिवर्तन मंडल या क्षोभमंडल कहलाता है । धरातल से ऊपर जाने पर प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर तापमान 1°C से घटता जाता है । विषुवत रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर इसकी ऊँचाई घटती जाती है ।
मौसम संबंधी सभी घटनाएँ-कुहरा, बादल, ओला, तुषार, आंधी-तूफान, मेघ गर्जन, विद्युत प्रकाश आदि इसी में घटित होती है ।
परिवर्तन मंडल (क्षोभ मंडल) तथा समताप मंडल के बीच 1. 5 किमी. मोटी परत को ट्रोपोपॉज कहते हैं ।
विषुवत रेखा पर ट्रोपोपॉज की ऊँचाई अधिकतम (16-18 किमी.) तथा ध्रुवों पर न्यूनतम (8-10 किमी.) होती है । क्षोभमंडल की ऊपरी सीमा को क्षोभ सीमा कहते हैं जिसमें वायुमंडल का तापमान गिरना बंद हो जाता है ।
समताप मंडल-क्षोभमंडल के ऊपर करीब 50 किमी. की ऊँचाई तक के क्षेत्र को समताप मंडल कहते हैं । यहाँ तापमान स्थिर रहता है । इस मंडल की महत्वपूर्ण विशेषता ओजोन परत की उपस्थिति है । जिसके कारण इसे ओजोन मंडल भी कहा जाता है । ओजोन गैस की अधिकता के कारण पराबैगनी विकिरण का अवशोषण अधिक होता है । मौसमी हलचलों से मुक्त होने के कारण वायुयान चालकों के लिए यह उत्तम मंडल होता है ।
मध्य मंडल-50 किमी. से 80 किमी. की ऊँचाई वाला वायुमंडलीय भाग मध्य मंडल कहलाता है । 80 किमी. की ऊँचाई पर तापमान-80°C (-120°F) हो जाता है । इस न्यूनतम तापमान की सीमा को मेसोपॉज कहते हैं । मेसोपॉज (80 किमी.) के ऊपर वायुमंडीय भाग (अनंत ऊँचाई तक) तापमण्डल कहलाता है । इसमें ऊंचाई के साथ तीव्र गति से तापमान बढ़ता जाता है ।
आयन मंडल-वायुमण्डल का यह भाग 80 से 600 किमी. तक विस्तृत है । इस भाग में स्वतंत्र आयन की संख्या प्रचुर मात्रा में पाई जाती है । यहाँ से रेडियो तरंगे परावर्तित हो जाती हैं । उत्तर ध्रुवीय प्रकाश (aurora borealis) और दक्षिण ध्रुवीय प्रकाश (aurora australis) इसी मंडल में परिलक्षित होते हैं । सुमेरू, कुमेरू ज्योति एवं उल्काओं की चमक इस भाग की प्रमुख घटनाएं हैं । आयनमंडल कई तहों में बँटा हुआ है जिसमे सबसे नीचे की तह 'डी' 'तह' कहलाती है ।
बाह्य मंडल (चुम्बकीय मण्डल) -यह मण्डल 600 किमी. से अधिक ऊँचाई पर विस्तृत है । इस परत में ऑक्सीजन के न्यूटल अणु, आयनीकृत ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन के अणु प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं । गुरुत्वाकर्षण के क्षीण हाने के कारण हाइड्रोजन तथा हीलियम के सूक्ष्म कण शून्य में विसरीत हो जाते हैं । 10,000 किमी. से ऊपर केवल इलेक्ट्रॉन तथा प्रोटॉन पाए जाते हैं जो क्रमशः ऋणात्म्क तथा धनात्मक विद्युत आवेश से पूर्ण होते हैं । इस प्रदेश को चुम्बकीय मंडल कहते हैं ।
ओजोन परत -ओजोन परत प्राकृतिक रूप से निर्मित ओजोन गैस की पट्टी है, जो पृथ्वी से 15-50 किमी. ऊपर स्ट्रेटोस्फेयर (समताप मंडल) में पाई जाती है । ओजोन परत सर्य से निकलने वाली पराबैगनी किरणों (90-952) को सोखकर पृथ्वी पर नहीं पहुँचने देती है । पराबैगनी किरणें मानव स्वास्थ्य के अलावा पर्यावरण को हानि पहुंचा सकती हैं । ओजोन परत हास के लिए सबसे जिम्मेदार यौगिक है क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) CFC का प्रयोग रेफ्रीजरेटर तथा एयर कंडीशनिंग सिस्टम में कूलिंग एजेर के रूप में होता है । ओजोन परत को CFC द्वारा होनेवाले नुकसान से रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल समझौता हुआ ।