चट्टानों का वर्गीकरण
चट्टानों को उनके निर्माण विधि के अनुसार तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है। यथा-
(अ) आग्नेय चट्टानें
(ब) अवसादी चट्टानें
(स) रूपान्तरित चट्टानें
आग्नेय चट्टानें
आग्नेय चट्टानें दो प्रकार की होती हैं। यथा-
उत्पत्ति के आधार पर-
पातालिक चट्टानें
मध्यवर्ती चट्टानें
लैकोलिथ अर्थात छत्रशिला लावा के गुम्बदाकार जमाव होते हैं जो परतों के बीच गर्म लावा के भर जाने से बनते हैं। इसकी ऊपरी परत वाष्प् और गैस के दबाव के कारण ऊपर की ओर गुम्बद के रूप में उठ जाती है और रिक्त स्थान में लावा भर जाता है।
भित्तिशिला या डाइक लावा बाहर निकलते समय जब मार्ग में अवसादी चट्टानों के बीच एक लम्बवत् दीवार या बांध के रूप में जम जाता है तो उसे भित्तिशिला कहते हैं। सिंहभूमि जिले में अनेक डाइक मिलते हैं।
पत्र या पत्रकशिला जब लावा अवसादी चट्टानों की परतों में प्रवेश कर समानान्तर तहों के रूप में जम जात है तो उसे पत्रकशिला कहते हैं। यह छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड में पाये जाते हैं।
लैपोलिथ अवसादी चट्टानों में जब लावा जमकर तश्तरीनुमा आकार ग्रहण कर लेता है तो उस आकृति को लैपोलिथ कहा जाता है। ये दक्षिणी अमेरिका में मिलते हैं।
फैकोलिथ भूमि के भीतर लावा का लहरदार जमाव होता है।
बैथोलिथ ये मुख्यतः पर्वतीय क्षेत्रों में जहां ज्वालामुखी क्रियाशील होते हैं, धरातल के नीचे काफी खड़े ढाल वाले गुम्दाकार रूप में विशाल लावा का जमाव होता है।
उपर्युक्त दोनों प्रकार की चट्टानों (फैकोलिथ व बैथोलिथ) को अन्तर्वेधी या आभ्यन्तरिक चट्टानें भी कहते हैं।
बाह्य चट्टानें
रासायनिक संरचना की दृष्टि से आग्नेय चट्टानें दो प्रकार की होती हैं। यथा-
अम्लीय चट्टानें
इसमें बालू या सिलिका की मात्रा 65 से 85 प्रतिशत तक तथा शेष एल्युमिनियम मैग्नेशियम व क्षार पदार्थ एवं चूना होता है। जैसे- ग्रेनाइट रायोलाइट, पिचस्टोन तथा आब्सीडियन।
क्षारीय शैलें (Alkaline Rocks)
इनमें सिलिका की मात्रा कम होती है । इनमें फेरो - मैग्नेशियम की प्रधानता होती है । लोहे की अधिकता के कारण इन चट्टानों का रंग गहरा होता है । इनका घनत्व भी अधिक होता है , जैसे - गैब्रो , बेसाल्ट , रायोलाइट आदि ।
पूर्व की चट्टानों के ऊपर स्थित बेसाल्ट चट्टान टोपी ( Caps ) के समान दिखाई पड़ता है । इस प्रकार की स्थलाकृति को ' मेसा ' ( Mesa ) कहा जाता है ।
अपरदन के कारण मेसा का अधिकांश भाग कट जाता है एवं उसका आकार छोटा होने लगता है । अत्यंत छोटी आकार वाली ' मेसा ' को ' बुटी ' ( Butte ) कहा जाता है ।
धरातल के नीचे परतदार चट्टानों के बीच स्थित लावा गुम्बद ( जैसे लैकोलिथ ) के ऊपर की मुलायम चट्टानें अपरदन द्वारा नष्ट होती जाती हैं । इस प्रकार लावा गुम्बद धरातल पर दिखने लगता है एवं यह अवरोधक ( Resistant ) चट्टान संकरी एवं लंबी कटक में परिवर्तित हो जाता है । इस प्रकार की स्थलाकृति को ' हौगबैक ' ( Hogback ) कहा जाता है । हौगबैक से मिलती - जुलती एक स्थलाकृति , जिसका ढाल एवं डिप ( Dip ) झुका हुआ हो ' कवेस्टा ( Questa ) कहलाती है ।
अवसादी चट्टानें
अवसादी चट्टानें |
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निर्जैव अव0 चट्टानें |
जैव अव0 चट्टानें |
रासायनिक क्रिया युक्त |
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विशिष्टताएं एवं उपयोग
(1) चट्टानें भिन्न-भिन्न रूप की होती हैं जिनका निर्माण छोटे-बड़े भिन्नभिन्न कणों से होता है।
(2) इन चट्टानों में परत अथवा स्तर होते हैं जो एक-दूसरे पर समतल रूप में जमे रहते हैं।
(3) इन चट्टानों में वनस्पति एवं जीव जन्तुओं के जीवाश्म पाए जाते हैं। इन्हीं चट्टानों से कोयला, स्लेट, संगमरमर, नमक, पेट्रोलियम आदि खनिज प्राप्त किए जाते हैं।
(4) ये चट्टानें अपेक्षतया मुलायम होती हैं। इनका निर्माण सामान्यतः जल, पवन, हिम, जीवजन्तु अथवा रासायनिक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप होता है।
(5) ये छिद्रमय होती है।
(स) रूपान्तरित चट्टानें
आग्नेय चट्टानों के रूपान्तरण से बनी शैलें
(1) ग्रेनाइट- नीस
(2) बेसाल्ट - एम्फीबोलाइट
(3) गैब्रो - सरपेंटाइन
अवसादी चट्टानों के रूपान्तरण से बनी शैलें
(1) क्ले एवं शैल- स्लेट
(2) चूना पत्थर - संगमरमर
(3) चाक एवं डोलोमाइट - संगमरमर
(4) बालुका पत्थर -क्लार्टजाइट
(5) कांग्लोमेरेट- क्वार्टजाइट
(6) बिटूमिनस कोयला- ग्रेफाइट व हीरा
रूपान्तरित चट्टानों के पुनः रूपान्तरण से बनी शैलें
(1) स्लेट - शिस्ट
(2) शिस्ट- फाइलाइट
खनिजों की कठोरता
खनिज कठोरता ( मोहो के कठोरता मापक के अनुसार )
टैल्क 1
जिप्सम 2
कैल्साइट 3
फ्लूओराइट 4
एपेटाइट 5
ऑर्थोक्लेज 6
क्वार्टज 7
टोपाज 8
कोरंडम 9
डायमंड (हीरा) 10
चट्टानों का चक्र
पृथ्वी पर मुख्य रूप से आग्नेय, परतदार तथा रूपान्तरित चट्टानें पायी जाती हैं। इनकी रचना की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है जिसे चट्टान चक्र कहते हैं ।
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