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Study Material



महाद्वीपीय एवं महासागरीय संचलन

सामान्य परिचय

  • वर्तमान में पृथ्वी के 70.8 प्रतिशत भाग पर जल एवं 29.2 प्रतिशत भाग पर स्थल है लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार महाद्वीपों एवं महासागरों का वर्तमान स्वरूप, जो आज मानचित्रों में दिखाई पड़ता है, हमेशा से ऐसा नहीं था तथा भविष्य में भी वर्तमान जैसा नहीं रहेगा।
  • सवाल उठता है कि प्रारंभिक समय में महाद्वीपों एवं महासागरों की अवस्थिति कैसी थी तथा इसकी स्थिति में परिवर्तन के लिए कौन-कौन से कारण जिम्मेदार हैं एवं यह कारण कैसे प्रभावित करते हैं ?
  • उपरोक्त सभी प्रश्नों का समाधान करने का प्रयास भू-वैज्ञानिकों ने किया तथा इसके लिए कुछ सिद्धांतों का प्रतिपादन किया।

महाद्वीपीय विस्थापन/प्रवाह/विस्तार

  • वर्ष 1596 में अब्राहम ऑरटेलियस (डच मानचित्रवेत्ता) ने अटलांटिक महासागर के दोनों तरफ की तटरेखा में समानता के आधार पर उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, यूरोप एवं अफ्रीका के एक-साथ जुड़े होने की संभावना को व्यक्त किया।
  • वर्ष 1908 में अमेरिका के भू-वैज्ञानिक एफ.बी. टेलर ने 'महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत' का प्रतिपादन किया जो स्थलखण्ड के क्षैतिज स्थानांतरण के विषय में था। टेलर ने महाद्वीपीय प्रवाह का मुख्य कारण ज्वारीय शक्ति को बताया।
  • वर्ष 1912 में जर्मनी के 'अल्फ्रेड वेगनर' ने भी महाद्वीपों एवं महासागरों के वितरण से संबंधित एक सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसे 'महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत' के नाम से जानते हैं।
  • बाद के वर्षों में महाद्वीपों एवं महासागरों के प्रवाह को सागर नितल प्रसरण एवं प्लेट विवर्तनिकी जैसे सिद्धांतों के द्वारा सुधार एवं मजबूती प्रदान की गई।

वेगनर का महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत

  • वेगनर एक जर्मन मौसम वैज्ञानिक थे जो पृथ्वी की सतह पर अतीत में हुए जलवायु परिवर्तन का अध्यन कर रहे थे।
  • उन्होंने अध्ययन के दौरान यह पाया कि ठण्डे प्रदेशों-जैसे-नॉर्वे, स्वीडन में कोयले के भण्डार हैं, जबकि गर्म प्रदेशों जैसे-ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, प्रायद्वीपीय भारत और आस्ट्रेलिया में 'हिम निक्षेप' के प्रमाण मिल रहे हैं।
  • इस प्रकार की विशेषताओं को देखने के पश्चात वेगनर ने दो संभावनाओं पर विचार किया कि-
      •  
    • यदि स्थल भाग एक जगह स्थिर रहे हों तो जलवायु कटिबंधों का क्रमशः स्थानांतरण हुआ होगा।
    • यदि जलवायु कटिबंध स्थिर रहे हों, तो स्थल भाग का स्थानांतरण हुआ होगा।
  • वेगनर को जलवायु कटिबंधों में परिवर्तन होने का कोई प्रमाण नहीं मिला, अतः उन्होंने स्थल के स्थायित्व को अस्वीकार कर इसके स्थानांतरण एवं प्रवाह पर विश्वास किया।
  • वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत को स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित मान्यताओं को विश्लेषण का आधार बनाया- tethis sea tethis sea 2
    • महाद्वीपीय क्रस्ट की उत्पत्ति के समय एक वृहद् महाद्वीप 'पैजिया' (सम्पूर्ण पृथ्वी) का निर्माण हुआ, इसके चारों तरफ विस्तृत जलीय भाग 'पैंथालासा' (जल ही जल) था, पैंजिया के मध्य में एक उथला एवं संकीर्ण महासागर 'टेथिस सागर' था।
    • 'कार्बोनिफेरस' युग के पहले तक सभी महाद्वीप 'पैंजिया' के रूप में जुड़े हुए थे तथा 'सियाल' से निर्मित महाद्वीपीय क्रस्ट 'सीमा' से निर्मित महासागरीय क्रस्ट के ऊपर तैर रहे थे क्योंकि सियाल का घनत्व सीमा से कम है।
    • कार्बोनिफेरस युग के अंतिम चरण में चंद्रमा के आकर्षण बल और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल व ध्रुवीय फ्लीइंग बल के कारण पैंजिया का विखंडन अंगारालैंड तथा गोंडवानालैंड के रूप में होना प्रारंभ हुआ।
  • आगे चलकर जुरैसिक युग में पुनः उपरोक्त बलों के प्रभाव से गोंडवानालैंड तथा अंगारालैंड का विभाजन प्रारंभ हुआ। लॉरेंशिया अथवा अंगारालैंड से उत्तर अमेरिका, ग्रीनलैंड, एशिया तथा यूरोप का निर्माण हुआ जबकि गोंडवानालैंड से दक्षिण अमेरिका, मेडागास्कर, प्रायद्वीपीय भारत, आस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका का निर्माण हुआ तथा प्लीस्टोसीन युग तक महाद्वीपों ने वर्तमान स्थिति से मिलता-जुलता स्वरूप धारण कर लिया।
    • महाद्वीपों के विखंडन के बाद विभिन्न दिशाओं में विस्थापन के कारण 'पैंथलासा' का संकुचन हुआ। वर्तमान में पैंथालासा के अवशिष्ट भाग को ही' 'प्रशांत महासागर' का नाम दिया जाता है।
    • प्रायद्वीपीय भारत, यूरेशिया व अफ्रीका का उत्तर की ओर विस्थापन होने के कारण टेथिस सागर में निक्षेपित अवसाद में वलन पड़ने से हिमालय तथा अल्प्स पर्वतों का निर्माण हुआ।  

महाद्वीपीय विस्थापन के पक्ष में वैश्विक प्रमाण

महाद्वीपीय साम्यता

  • दक्षिण अमेरिका एवं अफ्रीका के आमने-सामने के तटों में अद्भुत साम्यता दिखती है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि पहले ये आपस में जुड़े हुए थे। इसी तरह उत्तर अमेरिका के पूर्वी तट की यूरोप के पश्चिमी तट के साथ साम्यता स्थापित की जा सकती है।
  • पूर्वी अफ्रीका में इथियोपिया तथा इरीट्रिया का उभार पश्चिमी भारत तथा पाकिस्तान की तट रेखा से संयुक्त किया जा सकता है तथा आस्ट्रेलिया को बंगाल की खाड़ी में जोड़ा जा सकता है। वेगनर ने इसे 'साम्य-स्थापना' अथवा 'Jigsaw Fit' का नाम दिया।

तटीय चट्टानों की आयु में समानता

  • ब्राजील तथा पश्चिमी अफ्रीका के तट पर 200 करोड़ वर्ष पुरानी शैलों के समूह की पट्टियाँ पाई जाती हैं, जो आपस में मेल खाती हैं तथा दोनों जुरैसिक काल की हैं। इससे यह पता चलता है कि दोनों किनारे पहले आपस में जुड़े रहे होंगे।

टिलाइट

cdt evidence

  • ये 'हिमानी निक्षेपण' से निर्मित अवसादी चट्टानें होती हैं।
  • भारत में स्थित टिलाइट तलछटों के प्रतिरूप प्रायद्वीपीय विभिन्न स्थलखंडों के आधार तलों में पाए जाते हैं, जो एक लम्बी अवधि वाले हिमाच्छादन की ओर इंगित करते हैं। भारत के अतिरिक्त दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, आस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका एवं मेडागास्कर में हिमानी निर्मित 'टिलाइट चट्टानें' प्राचीन जलवायु और महाद्वीपों के जुड़ाव के स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।

जीवाश्म

  • 'लैमूर' के जीवाश्मों की भारत, अफ्रीका एवं मेडागास्कर में उपस्थिति के कारण ही कुछ वैज्ञानिकों ने तीनों स्थानों को जोड़कर 'लेमूरिया' स्थलखंड का नाम दिया है।
  • ‘मेसोसॉरस’ एक रेंगने वाला छोटा जीव है, जो केवल उथले खारे पानी में ही रह सकता था। दक्षिण अफ्रीका के केप प्रान्त एवं ब्राजील के इटाबर शैल समूह में इसके अस्थि-अवशेष मिलते हैं, जिससे इनके आपस में जुड़ाव का संकेत मिलता है।

वानस्पतिक साक्ष्य

भारत, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका व फ़ॉकलैंड द्वीप में 'ग्लोसोप्टरिस' नामक वनस्पति के प्रमाण यह प्रदर्शित करते हैं कि ये स्थलखंड अतीत में जुड़े रहे होंगे।

प्लेसर निक्षेप

घाना (अफ्रीका महाद्वीप) तट पर स्वर्णयुक्त चट्टानों की अनुपस्थिति के बावजूद वहां स्वर्ण के बड़े निक्षेप मिलते हैं, जबकि स्वर्णयुक्त चट्टानी शिराएं ब्राजील में पाई जाती हैं। इस प्रकार अतीत में इनके आपस में जुड़े होने का प्रमाण मिलता है।

 

संवहन धारा सिद्धांत

  • इस सिद्धांत का प्रतिपादन 1930 के दशक में 'आर्थर होम्स' ने किया।
  • होम्स ने स्पष्ट किया कि संवहन धाराएं एक कोशिका के रूप में विकसित होती हैं, साथ ही पृथ्वी के मैंटल भाग में ऐसी अनेक कोशिकाओं का एक तंत्र विकसित होता है। इससे स्थलखंडों में एक प्रकार का 'प्रवाही बल' कार्य करता है, जिसके सहारे 'महाद्वीपीय संचलन' की प्रक्रिया सम्पन्न होती है।

सागर नितल प्रसरण सिद्धांत

  • इस सिद्धांत का प्रतिपादन 1961-62 में हैरी हेस ने किया।
  • सागर नितल प्रसरण सिद्धांत के प्रतिपादन से पूर्व हेस ने निम्नलिखित तथ्यों का विश्लेषण किया- sea floar
      •  
    • मध्य महासागरीय कटकों के साथ-साथ ज्वालामुखी उद्गार सामान्य क्रिया है, जिससे अत्यधिक मात्रा में लावा बाहर निकलता है और भूपर्पटी का निर्माण होता है।
    • महासागरीय कटक के मध्य भाग के दोनों तरफ समान दूरी पर पाई जाने वाली चट्टानों के निर्माण का समय, संरचना, संघटन एवं चुम्बकीय गुणों में समानता पाई जाती है।
    • कटकों के समीप चट्टानें नवीनतम हैं और कटकों से दूर जाने पर क्रमशः अधिक प्राचीन चट्टानें पाई जाती हैं।
    • महासागरीय पर्पटी की चट्टानें महाद्वीपीय पर्पटी की चट्टानों की अपेक्षा अधिक नवीन हैं।
    • गहरी खाइयों में भूकम्प के उद्गम अधिक गहराई पर हैं, जबकि मध्य महासागरीय कटकों के क्षेत्र में ये भूकम्प कम गहराई पर उत्पन्न होते हैं।
  • उपरोक्त तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर ही हेस ने 'सागर नितल प्रसरण' अर्थात 'सागरीय अधस्तल विस्तार' सिद्धांत का प्रतिपादन किया।
  • हेस के अनुसार, महासागरीय कटकों के मध्य ज्वालामुखी उद्भेदन से कटकों के बीच की दरार का भराव लावा द्वारा होने के कारण ही महासागरीय पर्पटी का दोनों तरफ विस्थापन हो रहा है, फलतः महासागरीय तल का विस्तार हो रहा है।
      •  
    • हेस के अनुसार, जहां ज्वालामुखी से नवीन भू-पर्पटी या महासागरीय पर्पटी का निर्माण हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ महासागरीय गर्तों में इसका विनाश भी हो रहा है।

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत

  • इस सिद्धांत के प्रतिपादन का श्रेय किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यह 'महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत', 'पुराचुम्बकत्व अध्ययन' और 'सागर नितल प्रसरण सिद्धांत' का सम्मिलित रूप है। 1967 में मैकैंजी, मॉर्गन व पारकर ने पूर्व के उपलब्ध विचारों को समन्वित कर 'प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत' का प्रतिपादन किया।
  • क्रस्ट और ऊपरी मैंटल की ऊपरी परत से निर्मित 5 किमी. से लेकर 200 किमी. मोटाई की ठोस परत अर्थात स्थलमण्डल के वृहद् खंड को 'प्लेट' कहते हैं। यह कई खण्डों में विभाजित होती है जो महाद्वीपीय और महासागरीय क्रस्ट से निर्मित होती है। इसमें सिलिका' एल्युमीनियम, मैग्नीशियम की अधिकता रहती है।
  • पृथ्वी की सतह पर 7 वृहद् प्लेटों में केवल प्रशांत महासागरीय प्लेट ही पूर्णतः महासागरीय क्रस्ट से निर्मित है, जबकि अन्य प्लेटें महाद्वीपीय एवं महासागरीय दोनों क्रस्ट से निर्मित हैं। इसके अतिरिक्त कई अन्य गौण प्लेटें भी विद्यमान हैं। ये प्लेटें दुर्बल मंडल के ऊपर संचलन करती हैं। इन्हीं प्लेटों के संचलन के कारण पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तनों के अध्ययन को 'प्लेट विवर्तनिकी' कहते हैं। ptt

    महासागरीय प्लेट

    plates ocean

             इसका अधिकांश भाग महासागर से संबद्ध होता है। बेसाल्ट चट्टान से निर्मित यह प्लेट महाद्वीपीय प्लेट से भारी तथा अधिक घनत्व की होती है किन्तु इसकी मोटाई कम होती है।

    महाद्वीपीय प्लेट

    plates

             इसका अधिकांश भाग स्थलमण्डल से संबद्ध होता है। यह अपेक्षाकृत हल्की एवं ग्रेनाइट की बनी होती है तथा इसका घनत्व कम होता है। इसकी मोटाई महासागरीय प्लेट से अधिक होती है।

 

 

महत्वपूर्ण प्लेटें

मुख्य प्लेटें

सम्मिलित भाग

अंटार्कटिक प्लेट

अंटार्कटिक महाद्वीप + अंटार्कटिका को चारों ओर से घेरती हुई महासागरीय प्लेट

उत्तरी अमेरिका प्लेट

उत्तरी-पश्चिमी अटलांटिक महासागर उत्तर अमेरिका महाद्वीप

दक्षिणी अमेरिकी प्लेट

दक्षिण अमेरिका महाद्वीप + दक्षिणी-पश्चिमी अटलांटिक महासागर

प्रशांत महासागरीय प्लेट

प्रशांत महासागरीय नितल

इंडो-आस्ट्रेलियन प्लेट

भारत + आस्ट्रेलिया + हिंद महासागर

अफ्रीकन प्लेट

अफ्रीका महाद्वीप + पूर्वी अटलांटिक महासागर + पश्चिमी हिंद महासागर

यूरेशियन प्लेट

यूरोप + एशिया + पूर्वी अटलांटिक महासागर

अन्य गौण प्लेटें

      •  
  • कोकोस प्लेट: यह मध्य अमेरिका एवं प्रशांत महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
  • नजका प्लेट: दक्षिणी अमेरिकी एवं प्रशांत महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
  • अरेबियन प्लेट: इसमें अरब प्रायद्वीप के अधिकतर भाग सम्मिलित हैं।
  • फिलिपीन प्लेट: यह प्रशांत महासागरीय प्लेट एवं एशिया महाद्वीप के बीच स्थित है।
  • कैरोलिन प्लेट: यह न्यू गिनी के उत्तर में फिलिपियन एवं भारतीय प्लेट के बीच स्थित है।
  • फ्यूजी प्लेट: यह आस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्व में स्थित है।
  • जुआन डी फूका प्लेट: अलास्का के नीचे उत्तरी अमेरिकी प्लेट के पश्चिम में।

प्लेटों का संचलन

          स्थलमण्डल के नीचे अथवा पृथ्वी के आन्तरिक भागों में ऊष्मा की भिन्नता के कारण उत्पन्न होने वाली संवहनीय धाराएं विद्यमान होती हैं। ये धाराएं लगभग 100 से 250 किलोमीटर की गहराई पर रेडियोधर्मी तत्वों के विखंडन से उत्पन्न ऊर्जा द्वारा संचालित होती हैं। संवहनीय धाराओं के कारण प्लेट लगातार चलायमान रहती हैं। प्लेटों का संचलन तीन प्रकार से होता है-

अपसारी संचलन

  • जब दो प्लेटों एक-दूसरे के विपरीत दिशा में गमन करती हैं तो उसे 'अपसारी संचलन' कहते हैं। वह स्थान जहां से प्लेट एक-दूसरे से दूर हटती हैं, उसे 'प्रसारी स्थान' कहा जाता है।
  • महासागरीय तल पर प्लेटों के अपसरण के कारण उत्पन्न तनावमूलक बल के द्वारा भ्रंशन की प्रक्रिया होती है, साथ ही मैग्मा के निष्कर्षण से नई पर्पटी का भी निर्माण होता है।
  • अपसारी प्लेट किनारों पर नए क्रस्ट का निर्माण होने के कारण इसे 'रचनात्मक किनारा' भी कहते हैं, जिससे सागर तल का प्रसार होता है। विश्व के अधिकांश अपसारी किनारे 'मध्य महासागरीय कटकों' के साथ-साथ हैं।

         अपसारी संचलन का सबसे अच्छा उदाहरण 'मध्य अटलांटिक कटक' है, जहां से अमेरिकी, यूरेशियन एवं अफ्रीकी प्लेटें अलग हो रही हैं।

अभिसारी संचलन

  • जब एक प्लेट दूसरी प्लेट से टकराती हैं तो अधिक घनत्व की प्लेट कम घनत्व की प्लेट के नीचे क्षेपित होती है। इस प्रकार की गति को 'अभिसारी संचलन' कहते हैं। जहां प्लेटों का क्षेपण होता है उसे 'प्रविष्ठन क्षेत्र' कहते हैं।
  • अभिसारी संचलन के समय प्लेटों के आपस में टकराने व एक का दूसरे के नीचे क्षेपण होने से ज्वालामुखी व भूकंप की क्रिया के साथ-साथ नवीन वलित पर्वत, गर्त, द्वीपीय चाप इत्यादि का निर्माण होता है। चूंकि इस प्रकार के संचलन में प्लेटों का विनाश होता है अतः इसे 'विनाशात्मक प्लेट सीमांत' भी कहते हैं।
  • उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी भाग में इस प्रकार संचलन एक सामान्य परिघटना है।
  • अभिसारी संचलन तीन प्रकार से हो सकता है-

1. महाद्वीपीय - महासागरीय संचलन

2. महाद्वीपीय - महाद्वीपीय संचलन

3. महासागरीय - महासागरीय संचलन

महाद्वीपीय-महासागरीय संचलन

  • महाद्वीपीय एवं महासागरीय प्लेट अभिसरण का संबंध उत्तर व दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी भाग से है, जहां महासागरीय प्लेटों पर गर्तों का व महाद्वीपीय प्लेटों पर मोड़दार पर्वतों, जैसे-रॉकी व एंडीज का निर्माण हुआ है।
  • इस प्रकार के संचलन में अत्यधिक घनत्व वाली महासागरीय प्लेट का, कम घनत्व वाली महाद्वीपीय प्लेट के नीचे क्षेपण होता है।
  • महासागरीय प्लेट के अधिक गहराई में क्षेपित होने के कारण भ्रंशन की क्रिया से 'गहरे उद्गम केन्द्र के भूकम्प' की उत्पत्ति होती है।
  • अत्यधिक ताप व दाब के प्रभाव से क्षेपित प्लेट के आंशिक गलन से मैग्मा का निर्माण होता है। जब यही मैग्मा प्लेटों को तोड़ते हुए सतह पर पहुंचता है तो ज्वालामुखी प्रक्रिया सम्पन्न होती है। फलतः महाद्वीपीय क्षेत्र में ज्वालामुखी पर्वत श्रृंखला का निर्माण होता है जैसे-कास्केड श्रृंखला (रॉकी पर्वत), पश्चिमी चिली श्रृंखला आदि।

convergence

महाद्वीपीय-महाद्वीपीय संचलन

  • महाद्वीपीय-महाद्वीपीय प्लेटों की टक्कर का संबंध यूरेशियन व भारतीय प्लेट सीमांत से है। यहां सीमान्त क्षेत्र में हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ है।
  • महाद्वीपीय-महाद्वीपीय प्लेटों के टक्कर से अत्यधिक संपीडन बल के कारण महाद्वीपीय सीमांत पर अवसादों में वलन से मोड़दार पर्वतों की उत्पत्ति होती है, जैसे-हिमालय, अल्प्स, एटलस, यूराल आदि पर्वत श्रृंखलाएं।
  • यहां प्लेटों का अधिक गहराई में क्षेपण नहीं हो पाता है अतः यहां ज्वालामुखी क्रियाएं तो नहीं होती, किन्तु भूकम्प की संभावनाएं बनी रहती हैं।

महासागरीय-महासागरीय संचलन

  • महासागरीय-महासागरीय प्लेट अभिसरण का संबंध प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारों से है, जहां न केवल गहरे गर्तों (मेरियाना गर्त, फिलीपींस गर्त आदि) का निर्माण हुआ है बल्कि फिलीपींस व जापान जेसी द्वीपीय संरचनाओं का भी विकास हुआ है।
  • यहां पर अत्यधिक घनत्व वाली महासागरीय प्लेट का कम घनत्व वाली महासागरीय प्लेट के नीचे क्षेपण हुआ है।
  • महासागरीय प्लेट का अधिक गहराई में क्षेपण होने के कारण अत्यधिक ताप व दाब के प्रभाव से प्लेट के आंशिक गलन के फलस्वरूप मैग्मा की उत्पत्ति होती है।
  • जब यही मैग्मा महासागरीय परतों को तोड़ते हुए सतह पर पहुंचता है तो विस्फोटक ज्वालामुखी प्रक्रिया सम्पन्न होती है।

रूपांतर/समानांतर संचलन

  • जब दो प्लेटें एक-दूसरे के समानांतर गति करती हैं, जिससे न तो किसी प्रकार की पर्पटी का निर्माण होता है और न ही पर्पटी का विनाश होता है, 'समानांतर संचलन' कहलाता है। इसे 'संरक्षी प्लेट सीमांत' भी कहते हैं।
  • समानांतर तथा विपरीत दिशा में संचलन से घर्षण के कारण भूकम्प की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। कैलिफोर्निया का सैन एंड्रियास भ्रंश भी रूपांतर सीमा का अच्छा उदाहरण है।

अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

  • उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल भाग की अधिकता के कारण इसे 'स्थलीय गोलार्द्ध' जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में जल की अधिकता के कारण इसे 'जलीय गोलार्द्ध'कहा जाता है।
  • आर्थर होम्स ने पृथ्वी के मैंटल भाग में संवहन-धाराओं के तंत्र की खोज की।
  • 'प्लेट' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग भूगर्भशास्त्री 'टुजो विल्सन' द्वारा किया गया।
  • प्रशांत प्लेट विश्व की सबसे बड़ी प्लेट है।
  • भारतीय प्लेट, हिंद महासागर के अधिकांश भाग, प्रायद्वीपीय भारत तथा आस्ट्रेलिया को घेरे हुए है। यह उत्तर-पूर्व दिशा में आगे बढ़ रही है। इससे हिंद महासागर का क्षेत्र विस्तार हो रहा है।
  • अमेरिकी प्लेट तथा भारतीय प्लेट महासागरीय-महाद्वीपीय प्लेट का उदाहरण है।
  • ध्रुवीय फ्लीइंग बल पृथ्वी के घूर्णन बल की उपमा है।
  • भूतापीय ऊर्जा, गुरूत्वीय बल, प्लेट संचलन, पृथ्वी का घूर्णन, पृथ्वी का परिक्रमण, विद्युत चुम्बकीय विकिरण आदि पृथ्वी के पृष्ठ पर गतिक परिवर्तन लाने के लिए जिम्मेदार हैं।
  • उत्तरी अमेरिकी प्लेट के पश्चिम में प्रवाहित होने के कारण प्रशांत महासागरीय प्लेट का क्षय हो रहा है, जिससे प्रशांत महासागर का क्षेत्र सिकुड़ रहा है।
  • महाद्वीप और महासागर पृथ्वी के प्रथम श्रेणी के उच्चावच हैं।

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