की-स्टोन प्रजाति
वे जातियाँ जो किसी समुदाय में प्रचुरता तथा जैवभार की अल्पता के बावजूद सामुदायिक अभिलक्षणों पर अपना प्रभाव दर्शाती हैं, की-स्टोन प्रजातियाँ कहलाती हैं।
कीस्टोन प्रजाति की अवधारणा की उत्पत्ति -
कीस्टोन प्रजाति की अवधारणा 1969 में जीवविज्ञानी रॉबर्ट टी. पेन द्वारा पेश की गई थी। वह स्टारफ़िश और मसल्स सहित इंटरटाइडल ज़ोन (उच्च और निम्न ज्वार लाइनों के बीच) के समुद्री अकशेरुकी के बीच संबंधों पर अपनी टिप्पणियों और प्रयोगों की व्याख्या करने के लिए अवधारणा को विकसित किया था। 2003 में, अवधारणा को आर.डी डेविक द्वारा परिचालन रूप से परिभाषित किया गया था।
ये जातियाँ अन्य जातियों की आनुपातिक प्रचुरता को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। केवल कुछ ही जातियाँ की-स्टोन प्रजाति की तरह कार्य करती हैं तथा अन्य जातियाँ क्रांतिक कड़ी जातियों (Critical Link Species) के रूप में कार्य करती हैं। हालाँकि कुछ क्रांतिक कड़ी जातियाँ अन्य जातियों के लिये भोजन व्यवस्था, परागण, बीजों तथा फलों के परिक्षेपण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में क्रांतिक कड़ी जातियाँ बहुतायत में पाई जाती हैं क्योंकि ज्यादातर वनस्पतियों का परागण (Pollination) बीज व फल निक्षेपण पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिये उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में अंजीर की विभिन्न जातियाँ क्रांतिक कड़ी जातियाँ हैं। ये प्रचुर मात्रा में फलों का उत्पादन करती हैं। भोजन के अभाव के समय ये फल बंदरों, पक्षियों, चमगादड़ों द्वारा खाए जाते हैं। इस प्रकार अंजीर के वृक्षों को सुरक्षित रखने से उनके ऊपर निर्भर रहने वाले प्राणियों का भी संरक्षण होता है।
पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अन्य महत्वपूर्ण प्रजातियां
फाउंडेशन प्रजाति- फाउंडेशन जाति अन्य प्रजातियों के निर्माण व संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं । कोरल एक फाउंडेशन से प्रजाति का उदाहरण है । कोरल रीफ का निर्माण करते हैं जिसमें अन्य प्रजातियां निवास करती हैं ।
संकेतक प्रजाति- संकेतक प्रजाति से अभिप्राय किसी एक पौधे या जंतु की प्रजाति से है जो पर्यावरण परिवर्तन के लिए बहुत संवेदनशील होता है । इसका अर्थ यह है कि यह प्रजाति पारिस्थितिकी तंत्र की हानि से तुरंत प्रभावित होती हैं जिससे एक चेतावनी के रूप में इसका प्रयोग किया जा सकता । बाहरी प्रभाव (जैसे- जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल वायु परिवर्तन) से हुई हानि संकेतक प्रजाति पर पहले दिखाई पड़ती है । जैसे जल में प्रदूषण का स्तर ज्ञात करने के लिए मछली को एक संकेतक प्रजाति के रूप में जाना जाता है ।
अंब्रेला प्रजाति- अंब्रेला प्रजाति के निर्धारण का कोई अंतरराष्ट्रीय मानक नहीं है । लेकिन सामान्य परिभाषा में यह प्रजाति विस्तृत परास वाले होते हैं जिस पर अन्य प्रजातियां निर्भर करती हैं । सामान्यता है यह की स्टोन प्रजाति की तरह होती हैं । इसका संरक्षण उसी निवास में रहने वाले अन्य जातियों के लिए भी संरक्षण का कार्य करता है । सामान्य रूप से अंब्रेला प्रजाति सापेक्षिक रूप से उच्च कशेरुकी एवं विशाल काया वाले होते हैं ।जैसे- नॉर्दन स्पॉटेड आउल,टाइगर ग्रिजली बियर आदि ।
संक्रमिका तथा कोर प्रभाव
संक्रमिका की विशेषताएँ
कोर प्रभाव (Edge Effect)
कोर प्रभाव एक पारिस्थितिकीय अवधारणा है जहाँ दो पारितंत्र आपस में मिलते हैं वहाँ विशाल विविधता पाई जाती है। इस कोर प्रभाव में जहाँ दो क्षेत्र परस्पर व्याप्त (ओवरलैप) होते हैं वहाँ दोनों क्षेत्रों को प्रजातियाँ पाई जाती हैं। कोर प्रभाव के कुछ उदाहरण हैं -
कोर प्रभाव क्षेत्र बहुत अधिक विविधता रखते हैं। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
प्रकृति में कोर प्रभाव क्षेत्र का परिणाम विविधता तथा उत्पादकता में वृद्धि के रूप में देखा जा सकता है। मैंग्रोव पारिस्थितिकी (भूमि व समुद्र का मिलन स्थल), कोरल पारिस्थितिकी और अन्य उच्च उत्पादकता वाले क्षेत्र (नदियों के किनारे या सागर में नदियों के मिलन स्थल पर) जैवविविधता की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध होते हैं। प्राचीन या पारंपरिक मानव बस्तियाँ आमतौर पर पारिस्थितिकीय प्रणालियों के बीच तथा उच्च उत्पादक संक्रमण क्षेत्रों में स्थित रही हैं।
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