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मौलिक अधिकार

परिचय

मौलिक अधिकार मानव के वैसे नैसर्गिक अधिकार हैं जो मानव को अपनी क्षमताओं को विकसित करने के लिए सर्वोत्तम भूमि और जलवायु उपलब्ध कराते है। अधिकार मनुष्यों के वे दावे  हैं जो उनके व्यक्तित्व के विकास  के लिए परमावश्यक है। तथा जिन्हें समाज अथवा राज्य मान्यता प्रदान करते हैं । संविधान में सामान्यता सम्मिलित तथा राज्य द्वारा मान्यता प्रदान किये जाने वाले अधिकारों को मौलिक अधिकार कहा जाता है। नैसर्गिक अधिकार मानव में अन्तर्निहित होते हैं और राज्य उन्हें छीन नहीं सकता। इसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा 1948 में शामिल किया हैं।

मौलिक अधिकार किसी व्यक्ति के वे अधिकार होते है जिन्हे न्यायालय द्वारा लागू किया जाता है राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हमारे नेताओं ने ये संकेत दिए थे कि स्वतंत्र भारत में नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार प्राप्त होंगे। यथार्थ में, भावी संवैधानिक व्यवस्था से संबद्ध विभिन्न सुझाओं में उन अधिकारों का उल्लेख पाया जाता है जो भारतीय नागरिकों को प्राप्त होने चाहिए। 1925 में कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल, 1928 की नेहरू कमेटी रिपोर्ट, 1932-33 में भारतीय संवैधानिक सुधारों से संबद्ध संयुक्त समिति के सम्मुख नेशनल ट्रेड यूनियन फेडरेशन का स्मरण पत्र, सप्रू कमेटी के सम्मुख एम. वैंकटरंगैया का मेमोरेण्डम तथा स्वयं सप्रू द्वारा प्रस्तु प्रस्ताओ में इन विभिन्न मौलिक अधिकारों का उल्लेख था।

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