लोकसभा
लोकसभा का गठन
निर्वाचन
लोकसभा के सदस्य भारत के उन नागरिकों द्वारा चुने जाते है, जो वयस्क हो गये हैं। 61 वे संविधान संशोधन के पूर्व उन नागरिकों को वयस्क माना जाता था, जो 21 वर्ष की आयु पूरी कर लेते थे, लेकिन इस संशोधन के द्वारा यह व्यवस्था कर दी गयी है कि 18 वर्ष पूरी करने वाला नागरिक लोकसभा या राज्य विधानसभा के सदस्यों को चुनने के लिए वयस्क माना जाएगा। लोकसभा के सदस्यों का चुनाव वयस्क मतदान के आधार पर होता है। भारत में 1952 से लेकर अब तक की अवधि में 14 लोकसभा चुनाव हुये हैं।
अवधि
लोकसभा का अधिवेशन
लोकसभा का अधिवेशन एक वर्ष में कम से कम दो बार होना चाहिए लेकिन लोकसभा के पिछले अधिवेशन की अन्तिम बैठक की तिथि तथा आगामी अधिवेशन की प्रथम बैठक की तिथि के बीच 6 मास से अधिक का अन्तराल नहीं होना चाहिए लेकिन यह अंतराल 6 माह से अधिक का तब हो सकता है, जब आगामी अधिवेशन के पहले ही लोकसभा का विघटन कर दिया जाय।
विशेष अधिवेशन
राष्ट्रीय आपात काल की घोषणा को नांमंजूर करने करने के लिए लोकसभा का विशेष अधिवेशन तब बुलाया जा सकता है, जब लोकसभा के अधिवेशन में न रहने की स्थिति में कम से कम 110 सदस्य राष्ट्रपति को अधिवेशन बुलाने के लिए लिखित सूचना दे या जब अधिवेशन चल रहा हो, तब लोकसभा अध्यक्ष को इस आशय से लिखित सूचना दे । ऐसी लिखित सूचना अधिवेशन बुलाने की तिथि के 14 दिन पूर्व देनी पड़ती है ऐसी सूचना पर राष्ट्रपति या लोकसभा अध्यक्ष अधिवेशन बुलाने के लिए बाध्य है ।
पदाधिकारी
लोकसभा के निम्नलिखित दो पदाधिकारी होते हैं-
लोकसभा अध्यक्ष
लोकसभा का अध्यक्ष लोकसभा का प्रमुख पदाधिकारी होता है और लोकसभा की सभी कार्यवाहियों का संचालन करता है-
लोकसभा अध्यक्ष का निर्वाचन
लोकसभा अध्यक्ष का निर्वाचन लोकसभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। निर्वाचन किस तिथि को होगा, इसे राष्ट्रपति निश्चित करता है और राष्ट्रपति द्वारा निश्चित की गयी तिथि की सूचना लोकसभा का महासचिव सदस्यों को देता है। राष्ट्रपति द्वारा निश्चित की गयी तिथि के पूर्व दि के मध्यान्ह से पहले कोई भी सदस्य किसी अन्य सदस्य को अध्यक्ष चुने जाने का प्रस्ताव महासचिव को लिखित रूप में देता है तथा इस प्रस्ताव का अनुमोदन तीसरे सदस्य द्वारा किया जाता है। इस प्रस्ताव के साथ उस सदस्य, जिसे अध्यक्ष चुने जाने का प्रस्ताव किया जाता है, का यह कथन संलग्र होता है कि वह अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए तैयार है। इस तरह से एक या कई प्रस्ताव पेश किये जाते हैं। यदि एक ही प्रस्ताव पेश किया जाता है, तो चुनाव सर्वसम्मत होता है और यदि एक से अधिक प्रस्ताव पेश किये जाते है, तो चुनाव मतदान द्वारा होता है।
लोकसभा अध्यक्ष का शपथ ग्रहण
लोकसभा अध्यक्ष लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में शपथ नहीं लेता बल्कि वह सामान्य सदस्य के रूप में शपथ लेता है। उसे लोकसभा का कार्यकारी अध्यक्ष लोकसभा के सदस्य के रूप में शपथ ग्रहण कराता है। कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में उस व्यक्ति को नामजद किया जाता है, जो लोकसभा में सबसे अधिक उम्र का होता है।
वेतन एवं भत्ते
लोकसभा के अध्यक्ष को राज्यसभा के सभापति (उपराष्ट्रपति) के समान वेतन एवं अन्य भत्ते मिलते है । 14 मई 2002 को संसद द्वारा पारित एक संशोधन विधेयक के अनुसार यदि लोकसभा के अध्यक्ष की मृत्यु उसके पद पर बने रहने के अवधि में हो जाती है तो उसके परिवार यानी पति या पत्नी को पेंशन, आवास और स्वास्थ्य सुविधाएं मिला करेंगी । ध्यातब्य है कि यह सुविधा अब तक सिर्फ राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति पदों के लिए थी। साथ ही लोकसभा अध्यक्ष को केंद्रीय मंत्री के समान भत्ता देने का भी प्रावधान किया गया है ।
पदावधि
लोकसभा अध्यक्ष एक बार अध्यक्ष चुने जाने के बाद आगामी लोकसभा के गठन के बाद उसके प्रथम अधिवेशन की प्रथम बैठक तक अपने पद पर बना रहता है। लेकिन वह निम्नलिखित स्थितियों में अध्यक्ष पद से मुक्त हो सकता है-
18 दिसंबर, 1954 को प्रथम बार लोकसभा के प्रथम अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलंकर के विरूद्ध उन्हें पद से हटाने के लिए एक प्रस्ताव लाया गया था। हालांकि यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका था।
कार्य एवं शक्तियां
लोकसभा अध्यक्ष का कार्य एवं शक्तियां लोकसभा के सम्बन्ध में काफी अधिक हैं, जिनका वर्णन निम्न प्रकार किया जा सकता है-
(1) व्यवस्थापिका संबन्धी शक्तियां- लोकसभा अध्यक्ष को लोकसभा में व्यवस्था बनाये रखने के सम्बन्ध में निम्नलिखित शक्तियां प्रदान की गयी है-
(2) निरीक्षण तथा भर्त्सना सम्बंधी शक्तियाँ-अध्यक्ष की निरीक्षण तथा भर्त्सना सम्बंधी शक्तियां निम्नलिखित है-
(3) प्रशासन संबन्धी शक्तियां- अध्यक्ष को सदन के प्रशासन के सम्बन्ध में निम्नलिखित शक्तियां प्रदान की गयी हैं-
(4) विधायी तथा अन्य कार्य- विधायी तथा अन्यकार्यो के सम्बन्ध में अध्यक्ष को निम्नलिखित शक्तियां प्राप्त है-
लोकसभा उपाध्यक्ष
लोकसभा के सदस्य सदन के उपाध्यक्ष का चुनाव करते है। उपाध्यक्ष के चुनाव में वही प्रक्रिया अपनायी जाती है, जो अध्यक्ष के चुनाव में अपनायी जाती है, उपाध्यक्ष तब तक अपने पद पर बना रह सकता है, जब तक वह सदन का सदस्य रहता है। वह लोकसभा अध्यक्ष को त्यागपत्र देकर अपना पद छोड़ सकता है, अपने पद से लोकसभा के सदस्यों द्वारा पारित संकल्प के आधार पर हटाया जा सकता है। उपाध्यक्ष को उसके पद से हटाने के लिए कोई संकल्प लोकसभा में पेश करने के 14 दिन पूर्व उसकी सूचना उसे दी जानी चाहिए।
लोकसभा की शक्तियां
लोकसभा को निम्नलिखित शक्तियां प्रदान की गयी है, जो राज्यसभा के अतिरिक्त है-
(1) लोक सभा अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का निर्वाचन तथा उन्हें पद से हटाना- लोकसभा अध्यक्ष तथा उसके उपाध्यक्ष को निर्वाचित करने तथा उन्हे पदमुक्त करने का अधिकार केवल लोकसभा के सदस्यों को प्रदान किया गया है । अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को संकल्प पारित करके पदमुक्त किया जा सकता है, अभी तक लोकसभा के किसी भी अध्यक्ष को संकल्प पारित करके पदमुक्त नहीं किया गया है लेकिन 18 दिसम्बर 1954 को तत्कालिक लोकसभा अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर, 1966 में तत्कालीन अध्यक्ष हुकुम सिंह और 1988 में लोकसभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ को पदमुक्त करने के लिए लोकसभा में संकल्प पेश किया गया था।
(2) मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण- मंत्रिपरिषद सयुक्त रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है और लोकसभा मंत्रिपरिषद पर पर्याप्त नियंत्रण रखती है। यदि लोकसभा मंत्रिपरिषद के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित कर दे, तो मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है या राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद को बर्खास्त कर देता है। अभी तक लोकसभा में केवल तीन बार मंत्रिपरिषद के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित हो सका है, हालाकि इस तरह का प्रस्ताव कई बार पेश किया गया है । 1979 में श्री मोरार जी देसाई मंत्रिपरिषद के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित किये जाने की प्रबल संभावना थी, लेकिन मोरारजी देसाई ने अविश्वास प्रस्ताव के पारित होने की सम्भावना के कारण त्यागपत्र दे दिया था । 1979 में चौधरी चरण सिंह मंत्रिपरिषद के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित होने की संभावना थी, लेकिन चरण सिंह ने त्यागपत्र देकर लोकसभा को भंग करने की सिफारिश कर दी थी प्रथम बार 1989 में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार, जिसके प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह थे के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित हुआ था और मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ा था। इसी प्रकार 1997 में एच.डी. देवगौड़ा के नेतृत्व वाली सयुक्त मोर्चा की सरकार को कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने के बाद में संयुक्त मोर्चा सरकार के ही इंद्र कुमार गुजराल ने कांग्रेस द्वारा समर्थन वापसी के मुद्दे प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देते हुए लोकसभा भंग करने की सिफारिश की थी इसी प्रकार अप्रैल 1999 में भारतीय जनता पार्टी गठबंधन सरकार, जिसके प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे, द्वारा मात्र एक मत के अंतर से लोकसभा का विश्वास प्राप्त करने में असफल रहने के कारण मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ा।
यदि लोकसभा सरकार द्वारा पेश किये गये बजट को नामंजूर कर दे या राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए उसके धन्यवाद प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दे, तो भी मंत्रिपरिषद को त्यागपत्र देना पड़ता है।
(3) वित्त पर नियंत्रण- लोकसभा का वित्त पर पूर्ण नियंत्रण रहता है तथा राज्यसभा को इस संबन्ध में बहुत सीमित अधिकार है। वित्त विधेयक लोकसभा में ही पेश किये जाते है, लोकसभा में पारित होने पर जब वह राज्यसभा में पेश किया जाता है, तब राज्यसभा केवल उसे 14 दिन तक अपने पास रोक सकती है, और यदि राज्यपाल वित्त विधेयक को पारित करके 14 दिन के अन्दर लोकसभा को नही भेजती, तो विधेयक को पारित माना जाता है। यदि राज्यसभा वित्त विधेयक में कोई संशोधन करती है, तो लोकसभा के विवेक पर निर्भर है, कि विधेयक को स्वीकार करे या अस्वीकार करे।
(4) सदन में स्थान रिक्त घोषित करना-यदि लोकसभा का कोई सदस्य लोकसभा की अनुमति के बिना सदन से 60 दिन तक अनुपस्थित रहे, तो लोकसभा उस स्थान को रिक्त घोषित कर सकती है, लेकिन इस 60 दिन की अवधि की गणना करते समय उस अवधि को शामिल नही किया जाता, जब सदन का सत्र लगातार 4 दिन तक स्थगित रहे या सदन का सत्रावसान रहे।
(5) राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा- लोकसभा अनुच्छेद 352 के आधीन राष्ट्रपति द्वारा जारी राष्ट्रीय आपात की घोषणा को भी नामंजूर कर सकती है। ऐसी नामंजूरी लोकसभा का विशेष अधिवेशन बुलाकर की जाती है। सदन का विशेष अधिवेशन लोकसभा अध्यक्ष, जब सदन का अधिवेशन चल रहा हो, या राष्ट्रपति, जब लोकसभा का अधिवेशन न चल रहा हो, को सदन के 10 प्रतिशत सदस्यों द्वारा 14 दिन पूर्व लिखित सूचना देकर बुलाया जा सकता है। ऐसी सूचना की प्राप्ति पर लोकसभा अध्यक्ष या राष्ट्रपति विशेष अधिवेशन बुलाने के लिए बाध्य है।
(6) सदन के सदस्य को निष्कासित करना तथा सदस्य के निष्कासन को रद्द करना- यदि लोकसभा का कोई सदस्य अपने कार्यो से सदन की गरिमा का उलंघन करता है या सदन के विशेषाधिकारों का उलंघन करता है, तो लोकसभा उस सदस्य को सदन से निष्कासित कर सकती है। 1993 तक लोकसभा ने अब तक इस अधिकार का केवल दो बार प्रयोग किया है। उदाहरणार्थ, 1954 में एच.जी. बुद्ग, जिन पर रिश्वत लेकर लोकसभा में प्रश्न पूछने का आरोप था, के निष्कासन का प्रस्ताव तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किया गया था लेकिन निष्कासन की कार्यवाही पूरा होने के पहले ही उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया । लोकसभा ने दूसरी बार इस अधिकार का प्रयोग श्रीमती इन्दिरा गांधी के विरूद्ध किया था और उन्हें लोकसभा की सदस्यता से इसलिए निष्कासित कर दिया गया था कि उन्होंने मारूति उद्योग के सम्बन्ध में सूचना एकत्रित करने के कार्य में व्यवधान उपस्थित किया था ।
लोकसभा के सदस्य के निष्कासन को रद्द करने का भी अधिकार है। 1980 में लोकसभा ने श्रीमती इन्दिरा गांधी, जिन्हे 1978 में निस्कासित किया गया था, का निष्कासन रद्द किया था।
(7) जेल भेजने की शक्ति - जो व्यक्ति लोकसभा के विशेषाधिकारों का उल्लंघन करता है, उसे लोकसभा द्वारा जेल भेजा जा सकता है। इस अधिकार का प्रयोग सबसे पहले 1977 में किया गया था, जब इन्द्रदेव सिंह को लोकसभा में पर्चे फेंकने के कारण तिहाड़ जेल भेजा गया था। जब श्रीमती इन्दिरा गांधी को 1978 में लोकसभा की सदस्यता से निष्कासित किया गया था, तब उन्हे भी संसद के अधिवेशन, जिसमें उन्हे निष्कासित किया गया था, तक के लिए जेल भेजा गया था।
(8) नियम बनाने तथा निलंबित करने की शक्ति- लोकसभा को सदन की कार्यवाही संचालित करने के लिए प्रक्रिया सम्बन्धी नियम बनाने की शक्ति प्राप्त है साथ ही वह इन नियमों को निलंबित भी कर सकती है।
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