पिछड़े वर्गो के लिए उपबंध
अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के साथ की संविधान ने पिछड़े वर्गो की सुरक्षा एवं विकास के लिए भी अलग उपबंध बनाएं है ।
हालाकि संविधान ने न ही पिछड़े वर्गो का उल्लेख किया है और न ही पिछड़े वर्गो के लिए एक शब्द का उपयोग किया है । पिछड़े वर्ग से तात्पर्य यह है कि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के अतिरिक्त वह पिछड़े वर्ग, जिनका उल्लेख केंद्रीय सरकार द्वारा किया गया है। इस संदर्भ में पिछड़े वर्ग से तात्पर्य अन्य पिछड़े वर्ग से है (ओ.बी.सी.), जबकि अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति भी पिछड़े वर्ग के नागरिक है ।
पिछड़े वर्गो (ओ.बी.सी.) के लिए विभिन्न संवैधानिक उपबंध निम्नानुसार है-
1.राज्यों की सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के नागरिक की उन्नति के लिए उपबंध बनाने का अधिकार है। (अनुच्छेद 15 (4))। इसके अलावा अन्य पिछड़े वर्गो के शैक्षणिक उत्थान के लिए इस वर्ग के विद्यार्थियों के लिए शैक्षणिक संस्थानों में, जिनमें निजी संस्थान भी शामिल है, में प्रवेश के लिए विशेष उपबंध करेगा। संस्थान चाहे राज्य से अनुदान प्राप्त हो या नहीं तथापि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में यह उपबंध लागू नहीं होगा (अनुच्छेद 15-5)। यह प्रावधान 2005 के 93वें संविधान संशोधन अधिनियम से जोड़ा गया है । ये दोनों उपबंध अनुच्छेद 15 में दिये गये है गैर विभेदता के नियम के अपवाद होंगे ।
2.राज्य के पिछड़े वर्ग के पक्ष में पदों के आरक्षण या नियुक्ति राज्य सेवाओं में उपयुक्त रूप से न दर्शाये गये को आरक्षण उपलब्ध करवा सकता है । यह उपबंध अनुच्छेद 16 में दर्शाये (राजकीय सेवाओं में अवसर की समता के सामान्य नियम) का एक अपवाद है ।
3.राज्य लोगों के कमजोर वर्गो के शैक्षिक एवं आर्थिक हितों को विशेष सुरक्षा के साथ विकास हेतु दिशा निर्देश देता है और उनकी सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषणों से सुरक्षा करता है। (अनुच्छेद 46)।
4.मध्यप्रदेश, झारखंड , छत्तीसगढ़, व उड़ीसा में जनजाति कल्याणमंत्री को अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति व अन्य कार्यो का प्रभार भी दिया जा सकता है।
5.भारत का राष्ट्रपति सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गो की दशा की जांच हेतु एक आयोग का गठन कर सकता है, की गयी कार्यवाही सूची के साथ आयोग की रिपोर्ट को संसद के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
उपरोक्त उपबंध के अन्तर्गत राष्ट्रपति ने अभी तक दो आयोग नियुक्त किये हैं। पहला पिछड़े वर्ग का आयोग 1953 में काका कालेलकर की अध्यक्षता में नियुक्त किया गया था । 1955 में इसने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की लेकिन अस्पष्ट और अनिश्चित सुझाओं और पिछड़े वर्ग के प्रमाण (या शब्द के प्रयोग) पर सदस्यों के मत में स्पष्ट भिन्नता के कारण कोई कार्यवाही नहीं की गयी।
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