प्रमुख राजनीतिक शब्दावालियाँ
अधिकार पृच्छा- यह प्रलेख किसी व्यक्ति को कोई ऐसा सार्वजनिक पद ग्रहण करने से रोकने के लिए जारी किया जाता है, जिस पद को ग्रहण करने का वह अधिकारी नहीं है।
अध्यादेश- जब संसद का सत्रावसान हो गया हो और ऐसी स्थिति पैदा हो गयी हो जिस पर शीघ्र कार्यवाही आवश्यक हो तो राज्याध्यक्ष द्वारा जारी किया गया आदेश अध्यादेश कहलाता है। यह किसी निश्चित समय के लिए जारी किया जाता है।
अधिनायक तंत्र- निरंकुश शासन तंत्र स्थापित करने वाला व्यक्ति या समूह, जिसे जनता का समर्थन प्राप्त नहीं होता। आधुनिक निरंकुश तंत्र किसी व्यक्ति अथवा दल या सेना द्वारा सत्ता संभालने की ऐसी राजनीतिक प्रक्रिया है, जिसमें नागरिकों के अधिकार सीमित कर दिये जाते हैं। विशेषकर अधिनायक तंत्र में सत्ता की सारी शक्ति व्यक्ति विशेष के द्वारा संचालित होती है।
अधिहनन- जब कोई राष्ट्र, किसी अन्य राष्ट्र के किसी क्षेत्र पर अपना अधिपत्य स्थापित कर लेता है तो इस क्रिया को अधिहनन कहा जाता है। यह एक पक्षीय और तात्कालिक क्रिया है जो उस राष्ट्र की सहमति अथवा बिना सहमति के आधार पर किया जाता है।
अविश्वास प्रस्ताव- किसी सत्तारूढ़ दल के खिलाफ विरोधी दल द्वारा संसद में रखा गया ऐसा प्रस्ताव-जिसमें सरकार के प्रति अविश्वास व्यक्ति किया गया हो, अविश्वास प्रस्ताव कहलाता है। अविश्वास प्रस्ताव पेश किये जाने के पक्ष में यदि 50 सदस्य भी हों तो अध्यक्ष, प्रस्ताव प्रस्तुत करने की अनुमति दे सकता है । इसके बाद प्रस्ताव पर बहस होती है और अंत में मतदान होता है। यदि प्रस्ताव को मतदान के आधार पर स्वीकृति मिल जाती है तो सत्तारूढ़ सरकार को त्याग-पत्र देना पड़ता है।
अराजकतावाद- जब कोई राजनीतिक सिद्वांत अव्यवस्था पर आधारित हो और उस सिद्वांत की व्यवहारिकता से राज्य का कार्य संचालन अवरूद्ध हो रहा हो तो वैसी स्थिति को अराजकता की स्थिति कहा जाता है, और इस सिद्वांक को अराजकतावाद की संज्ञा दी जाती है।
अल्टीमेंटम- किसी पक्ष द्वारा, दूसरे पक्ष को किसी संदर्भ की पूर्ति के लिए एक निश्चित अवधि की सीमा के पश्चात भिन्न कदम उठाए जाने की धमकी को अल्टीमेंटम कहा जाता है।
अधिरोध लगाना - यदि कोई देश अंतराष्ट्रीय विधि का उलंघन करता है तो उसके विरूद्ध विश्व समुदाय द्वारा दण्डात्मक कार्यवाही के रूप में व्यापारिक प्रतिबंध लगा दिया जाता है। इस प्रक्रिया में इस राष्ट्र का आयात-निर्यात दोनों बाधित किया जा सकता है अथवा किसी विशेष सामग्री के आयात या निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
आकस्मिक शासन-परिवर्तन- जब किसी विद्रोही गुट द्वारा सशस्त्र विद्रोह से सैनिक कार्यवाही से या गुप्त रूप से किसी गैर-कानूनी तरीके से सत्ताधारी दल को हटाकर नई सत्ता की स्थापना की जाती है, तो इसे कूप कहते है । किसी राज्य में यदि कोई सैनिक अधिकारी किसी वास्तविक शासन को अपदस्थ कर शासन अपने अधीन कर लेता है, तो उसे सैनिक कूप कहते हैं।
आनुपातिक प्रतिनिधित्व- निर्वाचन के संदर्भ में अपनायी जाने वाली पद्धतियों में से एक पद्धति है, जिसमें प्राप्त मतों के अनुपात के आधार पर उम्मीदवार को निर्वाचित घोषित किया जाता है। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में इसी पद्धति का सहारा लिया जाता है।
उदारवाद- सकारात्मक विचार रखने वाले लोग उदार कहलाते हैं और उदारता पर आधारित सिद्वांत को उदारवाद कहा जाता है। इसके अंतर्गत व्यक्ति या दल या सरकार जब किसी विषय का न तो पूर्ण विरोध करना चाहते हैं और न ही पूर्ण समर्थन । इनका विरोध स्वीकार करने का तरीका कानूनी होता है। उदारवाद एकाधिकार का विरोधी तथा मिश्रित अर्थव्यवस्था, अहिंसा और शांति तथा प्रजातंत्र की मान्यता का समन्वित रूप है।
उपनिवेशवाद- जब किसी देश पर किसी अन्य देश द्वारा शासन स्थापित कर लिया जाता है तो उस पराधीन देश को शासक देश का उपनिवेश कहा जाता है। किसी देश को पराधीन बनाने के सिद्वांत को ’ उपनिवेश कहा जाता है।
उपशमन- यह एक राजनैतिक शब्द है, जिसका अभिप्राय दो राज्यों के बीच बिगड़े हुए संबंधों में सुधार की प्रक्रिया से है।
उपक्रमण- यह एक विधायी प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत मतदाता भी विधि-निर्माण की प्रक्रिया का उपक्रमण अर्थात प्रारम्भ कर सकता है। इस प्रकार की विधायी प्रक्रिया स्विट्जरलैंड में है।
उत्प्रेषण-उत्प्रेषण प्रलेख उच्च न्यायालयों से निम्न न्यायालयों को जारी किए जाते हैं। यह प्रलेख उस समय जारी किया जाता है, जब निम्न न्यायालय ने किसी मामले की सुनवायी करके अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करते हुए निर्णय दिया हो।
एकल-संक्रमणीय मत प्रणाली- एकल संक्रमणीय मत प्रणाली एक प्रकार की निर्वाचन पद्धति है, जिसमें प्रत्येक मतदाता को सभी उम्मीदवारों के नाम के आगे अपनी पसंद का क्रम व्यक्त करना होता है। निर्वाचित किए जाने के लिए मतों की न्यूनतम संख्या निर्धारित कर दी जाती है। कुल प्राप्त मतों की संख्या को दो से विभाजित कर भागफल में एक जोड़ने से प्राप्त संख्या न्यूनतम संख्या मानी जाती है। इसके अंतर्गत प्रत्येक मतदाता उतने मत दे सकता है जितने कि उम्मीदवार हैं।
मतों की गिनती में यदि प्रथम पसंद की गिनती में ही कोई उम्मीदवार निर्धारित मत के बराबर मत प्राप्त कर लेता है, तो वह विजयी घोषित कर दिया जाता है, अन्यथा प्रथम पसंद में सबसे कम मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को मतगणना से अलग कर दिया जाता है और उस निष्कासित उम्मीदवार को मिले हुए मतपत्रों में द्वितीय पसंद के आधार पर जिन-जिन उम्मीदवारों की जितनी संख्या अंकित की गई है, उतने मत उन्ही प्रथम पंसद के मतों की संख्या में जोड़ दिए जाते हैं। इस प्रकार का संक्रमण किसी एक व्यक्ति द्वारा निधारित कोटा प्राप्त कर लेने तक चलता रहता है। यही एकल संक्रमणीय मत प्रणाली की कार्य पद्धति है।
एन्वाय- जब किसी देश का अधिकारिक प्रतिनिधि, किसी अन्य देश में मनोनीत किया जाता है तो उसे एन्वाय कहा जाता है। ऐसा राजनयिक किसी विशेष कार्य के लिए भी भेजा जा सकता है।
ओलीगार्की- किसी भी देश में कुलीन तंत्रीय शासन का होना और उस कुलीन तंत्र द्वारा अपने वर्ग के हित की रक्षा के लिए कार्य करना ओलीगार्की कहलाता है।
अन्तस्थ राज्य- जब दो बड़े राष्ट्रों के बीच एक छोटे राष्ट्र को स्थापित अथवा परिरक्षित किया जाता है, जो दोनों राष्ट्रों के प्रत्यक्ष टकराव को सुरक्षा कवच प्रदान करता है। इस प्रकार का राष्ट्र अंतःरथ राज्य कहलाता है।
कर्फ्यू- किसी निश्चित क्षेत्र में किसी निश्चित समय के लिए जनता के आवागमन पर सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाया जाना कर्फ्यू कहलाता है । ऐसा आपातकाल में अथवा अचानक हिंसात्मक वातावरण उत्पन्न हो जाने की स्थिति में ही किया जाता है।
कंटेनमेंट- जब किसी देश विशेष का या वाद विशेष का व्यापक विकास हो रहा हो और अन्य शक्तिशाली देश या वाद द्वारा उसे दबाने की कोशिश की जा रही हो, तब उसे कंटेनमेंट की संज्ञा दी जाती है।
कन्वेंशन- किसी विशिष्ट विषय पर बातचीत के लिए बुलाए गए सम्मेलन को कन्वेंशन की संज्ञा दी जाती है। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने कन्वेंशन द्वारा ही जीनासाइड को अविधिमान्य ठहराया था।
कामरोको प्रस्ताव- जब संसद या विधायिका का कोई सदस्य किसी सार्वजनिक महत्व के विषय पर बहस करने के लिए सदन की कार्यवाही को बंद करने का प्रस्ताव रखता है, तो उसे कामरोको प्रस्ताव कहा जाता है। इस प्रस्ताव का निर्णय अध्यक्ष मतदान द्वारा करता है। यह प्रस्ताव प्रश्नकाल की समाप्ति के पश्चात सदन के किसी भी सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।
कोरम- किसी संस्था या दल के द्वारा किसी भी कार्यवाही के लिए न्यूनतम उपस्थिति संख्या को कोरम कहते हैं। यदि किसी सभा का कोरम नहीं हो तो सभा की कार्यवाही नहीं चल सकती। प्रत्येक संस्था अपने संविधान का निर्माण कर कोरम अवश्य निधारित कर देती है।
गन बोट डिप्लोमेसी- यह एक प्रकार की राजनैतिक कूटनीति है, जिसके अंतर्गत कोई भी देश अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिए दूसरे देश को अपनी शक्ति का भय दिखाता है। संयुक्त राज्य अमेंरिका की वर्तमान नीति इससे मिलती जुलती है।
गैलप पोल- यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किसी भी समस्या के लिए संपूर्ण जनसंख्या के विचारों का मूल्यांकन किया जाता है। इसमें प्रतिनिधि द्वारा पूछे गये प्रश्नों का सैम्पल बनाकर सम्पूर्ण जनसंख्या से अभिमत कराया जाता है। एक प्रकार से यह ’ओपिनियन पेाल’ की प्रणाली से मिलता जुलता है। इस प्रणाली को अमेरिका के डा. जार्ज गैलप द्वारा अभिकल्पित किया गया था।
जनमत - जब किसी देश में किसी विषय पर वाद-विवाद खड़ा हो जाता है, तब उस स्थिति में जनता के विचार एवं सहमति आवश्यक हो जाती है। जनता का मत जानने की इस प्रक्रिया को जनमत कहा जाता है।
जीनोसाइड- किसी सत्ता या प्रशासन द्वारा अल्पसंख्यकों के विनाश के लिए नियोजित कत्लेआम कराया जाता अथवा उनके लिए अत्यंत भेदभावपूर्ण नीतियां पारित कर उनके अधिकारों को सीमित कर देना जिससे वे पलायन के लिए मजबूर हो सकें ।
जुंटा- यह एक स्पेनिश शब्द है, जिसका अभिप्राय होता है परिषद । सामान्यतः इसका प्रयोग सैनिक सत्ता के संदर्भ में किया जाता है। इस परिषद में एक समान पद के सभी विभागों के अधिकारी होते हैं जो सैनिक सत्ता की सभी प्रशासनिक इकाइयों को संतुलित रखने का उत्तरदायित्व संभालते हैं। जुंटा में किसी एक व्यक्ति का प्रभुत्व नहीं रहता । दक्षिण अमरीकी देश इसका उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
द्विपक्षी-इसका सीधा अर्थ है दो-पक्ष। राजनीति में इसे किसी भी अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय अथवा अंतरराज्यीय समझोैते पर दो पक्षों द्वारा सहमति या बातचीत के संदर्भ में उपयोग किया जाता है।
धर्मनिरपेक्षता- धर्म निरपेक्षता का तात्पर्य उस सिद्वांत से है, जिसके अंतर्गत देश के सभी नागरिकों को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की जाती है। धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जााता है। इसमें प्रत्येक नागरिका को अपना धर्म चुनने का या उसकी रक्षा करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त होता है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, जिसमें राज्य सभी धर्मो के साथ समानता का व्यवहार करता है।
धर्मतंत्र- ऐसी राजनीतिक व्यवस्था जिसमें सरकार का संचालन धर्मप्रधानों द्वारा धार्मिक सिद्वांतों के आधार पर किया जाता है। जिस राजनीतिक व्यवस्था में धर्म का प्रभुत्व स्थापित हो जाता है उस राजनीतिक व्यवस्था को धर्मतंत्र या थियोक्रेसी कहा जाता है । प्राचीन रोमन कैथेलिक साम्राज्य और वर्तमान ईरान की राजनीतिक व्यवस्था इसी सिद्वांत पर आधारित राजनीतिक व्यवस्था के उदाहरण हैं।
ध्रुवीकरण- जब समान विचार रखने वाले लोग, किसी एक दल या समूह में विश्वास करते है और उसी दल में सम्मिलित हो जाते है, तो ऐसी स्थिति हो ध्रुवीकरण कहा जाता है।
निर्वाचक-मंडल- ऐसे व्यक्तियों का समूह या निकाय, जो किसी संस्था के प्रमुख या राष्ट्र प्रमुख को चुने जाने के लिए नियुक्त, मनोनीत अथवा निर्वाचित किया गया हो, तो उसे निर्वाचक मंडल कहा जाता है। सामान्यतः यह निकाय, राष्ट्रध्यक्षों या उपराष्ट्राध्यक्षों को चुने जाने के लिए गठित किया जाता है। उदाहरण के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति और भारत के राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचक-मंडल द्वारा किया जाता है ।
नौकरशाही- शासन की इस प्रक्रिया में लोक सेवकों द्वारा प्रशासन का संचालन किया जाता है। इस व्यवस्था में सरकारी अधिकारियों का वर्चस्व स्थापित रहता है। व्यूरो एक फ्रांसीसी शब्द है जिसका तात्पर्य है शासन। प्रत्येक राष्ट्र की सरकार अपने राष्ट्र के प्रशासन को व्यवस्थित और निष्पक्ष बनाने के लिए लोक सेवक अधिकारियों की नियुक्ति करती है, जो प्रशासनिक ढांचे के आधार स्तंभ होते हैं ।
परिसंघ- इस व्यवस्था के अंतर्गत कई स्वतंत्र राज्य संयुक्त रूप से किसी निश्चित उद्देश्य के लिए एक सरकार की स्थापना करते हैं अपनी स्वायत्तता को सुरक्षित रखते हैं। इस परिसंघ में नागरिकों के प्रत्यक्ष सम्पर्क नहीं होता ।
प्रस्तावाना- किसी भी राष्ट्र के संविधान का आरंभिक परिचय प्रदान करने वाले भाग को प्रस्तावना कहते हैं। संविधान की प्रमुख विशेषताओं का प्रस्तावना में उल्लेख किया जाता है।
प्रतिषेध- प्रतिशेध प्रलेख उस समय जारी किया जाता है, जब निम्न न्यायालय के समक्ष किसी ऐसे मामले की कार्यवाही लंबित हो जिसकी सुनवाई करने का अधिकार उसे प्राप्त ही नहीं ।
प्रत्यायुक्त विधान- वह विधान जिसे अधिनियमित करने के लिए संसद द्वारा कार्यपालिका कोे अधिकार प्रदान किया गया हो, प्रत्यायुक्त विधान कहलाता है। कार्यपालिका को केवल कानून और अधिनियम बनाने का अधिकार है, जिसे संसद द्वारा पारित किया जाता है।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र- इस राजनीतिक व्यवस्था में प्रतिनिधित्व लोकतंत्र का निषेध किया जाता है। इस व्यवस्था में कोई भी कानून पास करने अथवा किसी विषय पर निर्णय करने का अधिकार जनता को प्राप्त होता है न कि प्रतिनिधि को। इस प्रकार की शासन व्यवस्था की प्रेरणा 5वीं शाताब्दी में स्थापित ग्रीस के लोकतंत्र से मिलती है।
पार्थक्यवाद- ऐसा देश, जो विश्व के अन्य देशों के मामलों में कोई हस्तक्षेप न करने की नीति तब तक अपनाता है, जब तक कि उसके अपने देश का हित प्रभावित नहीं होता हो।
पूंजीवाद- यह एक ऐसी आर्थिक प्रणाली को अभिकल्पित करता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र रूप से पूंजी का उपार्जन कर सकता है । इस व्यवस्था के अंतर्गत सरकार का कोई ऐसा प्रतिबंध नहीं होता, जिससे किसी व्यक्ति की अर्थोपार्जन की स्वतंत्रता बाधित हो। इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति निजी व्यापार अथवा उद्योग का विकास मुक्त रूप से कर सकता है। राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में पूंजीवाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं उदारवादी राजनीतिक संस्थाओं के लिए रक्षा कवच प्रदान करता है।
पोलित व्यूरो निवर्तमान सोवियत संघ में साम्यवादी दलों की सर्वोच्च सत्ता जो नीति-निधारित करती थी, उसे पोलित व्यूरोकहा जाता था। आजकल प्रत्येक साम्यवादी राजनीतिक दल ने अपना पोलित व्यूरो स्थापित कर रखा है, जो उन दलों की नीतियों का निर्धारण और प्रसारण करता है।
फांसीवाद- फासीवाद, एक अधिनायकवादी जन आंदोलन से प्रेरित था, जो मध्यवर्गीय पूंजीवादी सभयता तथा युद्ध के पश्चात देश में व्याप्त कष्टकारक परिस्थितियों के प्रतिक्रिया स्वरूप प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात इटली के साथ अन्य यूरोपिये देशों में विकसित हुआ।
फांसीवाद, राजतंत्र और पूंजीवाद राजतंत्र और पूंजीवाद दोनों का विरोध करता है। फांसीवाद न केवल प्रजातंत्र तथा लौकिक प्रभुसत्ता का विरोध करता है बल्कि स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व के स्थान पर कर्तव्य, अनुशासन तथा बलिदान के सिद्वांत पर जोर देता है। फासीवाद, राष्ट्रवारद को अत्यधिक महत्व देता है। फासिस्ट हिंसा में विश्वास करते थे उनका मत था कि ’केवल युद्ध मानव उर्जा को सर्वोच्च चुनाव में लाता है। और लोगों पर उदात्तता की मोहर लगा देता है।,
फेबियन-यह एक प्रकार का विकासात्मक समाजवादी दर्शन है जो 1884 में उदित हुआ, जब फेबियन सोसाइटी का निर्माण कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा हुआ। इस सोसाइटी का नामकरण रोमन जनरल फैबियस मैग्जीमस कंकटेअर के आधार पर हुआ और इसमें वे ही तरीके अपनाये गये जो रोमन जनरल के द्वारा करथेज के जनरल हन्नीबल के विरूद्ध अपनाये गये थे।
फेबियनवाद के अनुसार प्राकृतिक संसाधनों के लाभों को प्राप्त करने का अधिकार समान एवं सबके लिए है। उनके सिद्वांत के अनुसार भूमि तथा पूंजी पर राज्य का अधिकार होना चाहिए । यह राज्य को सकारात्मक भलाई की संस्था के रूप में मानता था। उनका मत था कि धन का वितरण समान हो, जिससे आय की असमानता को दूर किया जा सके। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता की भी रक्षा करना चाहता था और इसलिए स्थानीय संस्थाओं की व्यापक स्वतंत्रता का पक्षधर था।
बुर्जुआ- यह एक फ्रांसीसी शब्द है, जिसका प्रयोग मध्य वर्ग के लिए किया जाता है। कार्लमार्क्स ने इस शब्द को काफी प्रचलित किया और शहरी क्षेत्र में निवास करने वाले मध्य वर्ग को भी इस बुर्जूआ वर्ग में सम्मिलित किया ।
पूंजीपति, उत्पादनकर्ता, सौदागर, महाजन, व्यापारी एवं अन्य कार्यो से जुड़े सुदृढ़ आर्थिक स्थिति वाले लोग, जिनका सामाजिक स्तर उन्नत हो, इस वर्ग में आते हैं। इस वर्ग के कुछ विशिष्ट लक्षण हैं, जैसे- रूढ़िवादी विचार धारा, असुरक्षा की भावना से भयभीत रहना इत्यादि।
इनका प्रभुत्व आर्थिक और राजनीतिक दोनों प्रणालियों पर कायम रहता है और इनके द्वारा सामाजिक आचार-व्यवहार की परंपरा स्थापित की जाती है।
बंदी प्रत्यक्षीकरण- यह प्रलेख या याचिका गिरफ्तारी के खिलाफ उपबंध करता है। इसके अनुसार, न्यायालय उस व्यक्ति की प्रार्थना के आधार पर, जिसे बंदी बनाया गया है गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि गिरफ्तार व्यक्ति को निश्चित समय और निश्चित स्थान पर उपस्थित करे, ताकि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की गिरफ्तारी को कारणों पर विचार किया जा सके।
महाधिकार पत्र- इंग्लैंड के राजा जाॅन द्वारा सामंतों के दबाव में 15 जून 1215 ई0 को एक घोषणा-पत्र जारी किया गया था । इस घोषणा-पत्र में सामंतों को कुछ निश्चित अधिकार प्रदान किए गए । इस घोषणा-पत्र द्वारा आधुनिक लोकतंत्र की नीव रखी गयी । इसके द्वारा की मूल अधिकार और समान न्याय व्यवस्था की परंपरा स्थापित हुई । वास्तव में यह घोषणा-पत्र अधिकारों का चार्टर है।
महाभियोग- भारतीय संविधान द्वारा स्थापित कुछ पदों के अधिकारियों को कथित कदाचार या अपराध के आधार पर सांविधानिक उपबंधों के अंतर्गत ही पदमुक्त किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को महाभियोग की प्रक्रिया कहते हैं महाभियोग को पारित करने के लिए विशिष्ट बहुमत की आवश्यकता होती है और महाभियोग लाने के 14 दिन पूर्व संबंधित पदधारक को इस बात की सूचना दी जाती है।
मानवाधिकार- वे अधिकार, जो जन्मजात होते हैं, जिन्हें किसी संविधान या सरकार द्वारा निषेध नहीं किया जा सकता। इसे प्राकृतिक अधिकार के रूप में भी जाना जाता है। उदाहरणस्वरूप-जीवित रहने का अधिकार, अपना धर्म और संस्कृति अपनाने का अधिकार, भाषण देने या बोलने का अधिकार आदि। संविधान में इन अधिकरों को मूल अधिकार के रूप में स्थान प्राप्त है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा भी मानववाधिकार से संबंधित कुछ अधिकार निश्चित किए गए हैं, जो इस प्रकार हैं। पारिवारिक जीवन जीने का अधिकार, अपराधिक मामलों मे परीक्षण में समानता का अधिकार, राजनीतिक स्वतंत्रता, अमानवीय दण्डों से अपने आप को बचाने का अधिकार इत्यादि।
मार्शल लाॅ- जब किसी असैनिक सरकार द्वारा किसी निश्चित क्षेत्र में कुछ निश्चित समय के लिए शासन का भार सेना को सौप दिया जाता है, तो उसे मार्शल लॉ कहा जाता है। मार्शल लॉ में नागरिक अधिकार समाप्त कर दिये जाते है।
मार्क्सवाद- मार्क्सवाद का सिद्वांत जर्मन विचारक कार्ल मार्क्स द्वारा अभिकल्पित किया गया यह राज्य विहीन और वर्ग विहीन समाज की स्थापना पर जोर देता है। यह सिद्वांत निम्न तथ्यों पर प्रकाश डालता है-
1. सभी राजनीतिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियां अर्थ तंत्र द्वारा संचालित होती हैं।
2. निजी सम्पत्ति सभी प्रकार के शोषणों के लिए जिम्मेदार है, इसे समाप्त करने के उपरान्त ही समाज में समानता लाने की कल्पना की जा सकती है।
3. समाज की स्थापना केवल सर्वहारा वर्ग में क्रांतिकारी चेतना से ही संभव है। वर्ग संघर्ष के पश्चात सर्वहारा वर्ग सत्ता प्राप्त कर समाज को शोषण से मुक्त बना सकता है ।
4. पूंजीवादी समाज को केवल क्रांति से ही समाप्त किया जा सकता है।
5. सर्वहारा वर्ग की तानाशाही से धीरे-धीरे पूंजीवाद समाप्त हो जायेगा और अंततः वर्ग भेद समाप्त होने के पश्चात राज्य अपने आप बिलीन हो जायेगा।
मोनार्की- ऐसी सरकार का प्रमुख वंशानुगत होता है। ऐसे राज्य का राज्याध्यक्ष जीवन पर्यत शासन करता है और उसकी मृत्यु के बाद उसकी संतान का ही उस पद पर अधिकार होता है। इंग्लैंड और नेपाल में इस प्रकार का शासन प्रबंध है (चूंकि अब नेपाल में भी लोकतंत्र हो गया है) ।
राष्ट्रीयकरण- किसी राष्ट्र की सरकार द्वारा किसी सेवा अथवा उद्योग का निजी क्षेत्र से सार्वजनिक हित के लिए सरकार के अधीन कर देना अथवा इस उद्देश्य से सरकारी उद्योग की स्थापना करना तथा उसका संचालन स्वयं करना राष्ट्रीयकरण कहलाता है।
रिकाल सिस्टम- यह एक राजनीतिक प्रक्रिया जिसके अन्तर्गत निर्वाचित प्रतिनिधियों को निर्धारित समय से पूर्व ही बुलाने का अधिकार मतदाताओं को प्रदान किया जाता है। भारतीय संविधान में इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं है इस प्रकार की व्यवस्था स्विट्जरलैंड के संविधान में की गयी है ।
रिपैट्रियेशन- जब कोई व्यक्ति विदेश जाता है और वहां पर कुछ समय निवास करने के पश्चात स्वदेश वापस लौट आता है तो उसे रिपैट्रियेशन कहते हैं। विशेष रूप से युद्ध में बंदी बनाए गए होते हैं और वे जब स्वदेश वापस लौटते है तो उनका स्वदेश लौटना रिपैट्रियेशन कहलाता है।
लाल फीताशाही- जब किसी सरकारी कार्यालय द्वारा किसी कार्य के कार्यान्वयन में बिना वजह बाधा पहुंचायी जाती है, जिससे उस कार्य का मूल उद्देश्य समाप्त हो जाता है, तो इसे लाल फीताशाही कहा जाता है।
लोक कल्याणकारी राज्य- जिस राज्य अथवा सरकार का मूल उद्देश्य लोक कल्याण करना होता है, तो उस राज्य को लोक कल्याणकारी राज्य कहा जाता है। लोक कल्याणकारी राज्य की सभी नीतियां सम्पूर्ण वर्ग के विकास के उद्देश्य से निर्मित होती हैं।
लोकतांत्रिक समाजवाद- शासन की इस प्रक्रिया में सरकार का निर्माण प्रजातांत्रिक आधार पर किया जाता है और सरकार की नीतियां, कार्य और विचारधारा समाजवाद पर आधारित हेते हैं। इस सिद्वांत के अंतर्गत किसी भी देश या राज्य की सरकार का कर्तव्य राजनीतिक, आर्थिक व समाजिक दृष्टि से वहां की जनता को समान विकास का अवसर प्रदान करना और उन्हें समान रूप से न्याय दिलाना होता है। भारत, लोकतांत्रिक समाजवादी सिद्वांतो का पालन करने वाले देशों में अग्रणी है।
वयस्क मताधिकार- प्रजातंत्रात्मक शासन प्रणाली में उस देश के प्रत्येक वयस्क नागरिक का सक्रिय योगदान अनिवार्य माना जाता है। इस व्यवस्था के अंतर्गत देश के वयस्कों को मताधिकार का अधिकार प्राप्त होता है इसमें जाति, धर्म, वर्ण, एवं लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता, अर्थात वे बिना किसी भेदभाव के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं और एक स्वस्थ सरकार के निर्माण में सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं। भिन्न-भिन्न देशोें में वयस्कता की आयु सीमा भिन्न-भिन्न होती है । भारत में 61वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा 1989 में इसकी आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गयी है । 1989 के पूर्व भारत में मताधिकार के लिए 21 वर्ष की आयु निर्धारित थी।
विशिष्ट बहुमत - विशिष्ट बहुमत का अभिप्राय किसी सदन की कुल सदस्य संख्या का साधारण बहुमत तथा उपस्थित या मतदान देने वाले सदस्यों की संख्या का दो-तिहाई बहुमत (2/3) होता है।
शीतयुद्ध- जब दो देशों या गुटों के बीच अप्रत्यक्ष तनाव होता है और वे समाचार-पत्रों, रेडियों और अन्य प्रचार माध्यमों से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं, तो उस स्थिति को शीतयुद्ध की स्थिति कहा जाता है।
सचेतक- किसी भी संसद अथवा विधानमंडल या अन्य समानांतर संस्था में जब किसी दल विशेष का नेता अपने दल के सभी सदस्यों को किसी विशेष परिस्थिति में एकत्रित होने के लिए आदेश जारी करता है, तो उसे ह्रिप अर्थात (सचेत करना) कहा जाता है। इस प्रकार के आदेश जारी करने वाले को सचेतक कहा जाता है।
समाजवाद- जिस राजनीतिक प्रशासनिक सिद्वांत के अंतर्गत व्यक्ति की अपेक्षा सम्पूर्ण समाज के विकास को आधार बनाया जाता है, उसे समाजवाद कहते हैं। इसका उद्देश्य सम्पूर्ण समाज में आर्थिक, राजनीतिक और अधिकारिक दृष्टि से समानता स्थापित करना होता है। यह राजनीतिक और प्रशासनिक सिद्वांतों में सर्वोत्तम है, क्यांकि इसमें न तो पूंजीवादी व्यवस्था की भांति व्यक्ति हावी रहता है और न ही साम्यवाद ही भांति आर्थिक विकास पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण होता है।
सह-अस्तित्व- जब दो देशों की शासन व्यवस्था, धार्मिक मान्यता, अर्थव्यवस्था, सभ्यता तथा संस्कृति आदि भिन्न हों और वे परस्पर एक-दूसरे देश का अस्तित्व स्वीकार कर लें तो उसे सह-अस्तित्व की संज्ञा दी जाती है।
सर्वोदय- जब कोई ऐसी राजनीतिक मान्यता स्थापित होती है, जिसमें किसी भी देश अथवा समाज के सभी लोगों के कल्याण को आधार बनाया जाता है, तो उसे सर्वोदय कहा जाता है। समाज में अहिंसा और शांति पर आधारित आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन लाना सर्वोदय का सिद्वांत है।
सम्मिलन- जब भिन्न विचारधारा वाले विभिन्न राजनीतिक दल, एक साथ मिलकर किसी सरकार में शामिल होकर अपने प्रतिद्वंदी दलों को मात कर देते हैं तो ऐसी सरकार को कोलीजन गवर्मेंट या संयुक्त सरकार कहा जाता है। इसके अंतर्गत किसी कॉमन मुद्दे पर सभी दल सहमति प्रदान कर सरकार को संचालित करने में सहायता देते है। इस प्रकार की सरकार स्थिर सरकार मानी जाती है। 90 के दशक से भारत में कई संयुक्त (कोलीजन) सरकारें स्थापति हुई है।
साम्यवाद- समानता पर आधारित समाज की स्थापना का सिद्वांत साम्यवाद कहलाता है। इस व्यवस्था में वर्गविहीन समाज की स्थापना की जाती है। इसमें पूंजी अथवा सम्पत्ति का समान वितरण होता है। अपनी क्षमता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति कार्य करने के लिए बाध्य होता है और आवश्यकता की पूर्ति राज्य करता है।
सामाजिक न्याय- जिस समाज में किसी भी व्यक्ति को उसके जन्म स्थान, धर्म, जाति, लिंग, मूलवंश आदि के आधार पर भिन्न नहीं माना जाता और इन आधारों पर किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाता है, तो ऐसी सामाजिक स्थिति को समाजिक न्याय की संज्ञा दी जाती है।
साम्राज्यवाद- जब कोई देश अपने राज्य-क्षेत्र के विस्तार की नीति अपनाता है- वह किसी अन्य देश को आक्रमण द्वारा परास्त करता है, उस देश की राजनीतिक, सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों में हस्तक्षेप कर उस देश का शोषण करता है, तब उसकी यह नीति सम्राज्यवाद की नीति कहलाती है ।
सामंतवाद- सामंतवाद,राजनीतिक व्यवस्था की एक आधारभूत प्रणाली है जिसका अभ्युदय यूरोप में रोमन साम्राज्य की समाप्ति के पश्चात हुआ। 19वीं शताब्दी तक इंग्लैण्ड में सामंतवाद अपने चरमोत्कर्ष में आ गया था।
इस राजनीतिक व्यवस्था के अंतर्गत राजा अपने वफादार राजभक्तों को राज्य की सेवा के बदले में राज्य की भूमि को अनुदान स्वरूप देता था। अनुदान प्राप्त करने वाले राजभक्त अपने वफादारों के लिए भूमि निर्धारित करते थे। राजा बड़े सामंतों से भूमि के लिए लगान वसूल करता था । बड़े सामंत, छोटे सामंतों से लगान वसूली करते थे और छोटे सामंत किसानों का निर्दयता से शोषण करते थे । इस व्यवस्था में आम लोगों की स्थिति दयनीय होती थी।
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