इस्लाम का उदय
‘इस्लाम’ अरबी शब्द है जिसका अभिप्राय खुदा के प्रति आत्मोत्सर्ग की क्रिया है। मुस्लिम मतों के अनुसार जब आदमी खुद को खुदा को पेश करता है, तो इस्लाम धर्म उसके लिए ‘सलाम’ अर्थात् शांति का वाहक बन जाता है।
जिस तिथि को मोहम्मद साहब मक्का से मदीना रवाना हुए उसी तिथि से मुस्लिमों का कैलेण्डर शुरू होता है, इसे ‘हिज्र’ कहते हैं और इस कलेण्डर को ‘हिज्री संवत्’ कहते हैं। इस संवत् की शुरूआत 622 ई. में की गई।
इस धर्म के संस्थापक पैगम्बर मुहम्मद साहब का जन्म 570 ई. में अरब के मक्का नामक स्थान पर हुआ। इनके पिता का देहांत उनके जन्म से पूर्व हो गया था तथा माता का देहांत उनकी छः वर्ष की आयु में हो गया। 610 ई. में उन्हें पहला इल्हाम हुआ।
610 ई. में जिबराईल ने उन्हें संदेश दिया कि वह एक ‘नबी’ (सिद्ध) तथा ‘रसूल’ (देवदूत) हैं तथा उन्हें अल्लाह ने ‘इस्लाम’ के प्रचार-प्रसार के लिए भेजा है। मोहम्मद साहब के कथनों और कार्याें को संकलित कर बनाई गई रचना ‘हदीश’ का काफी महत्व है।
मोहम्मद साहब ने धार्मिक जीवन व्यतीत करने के निम्न सिद्धांत बताए-एकेश्वरवाद, दिन में पांच बार नमाज, आय का 1/10 भाग जकात (दान) देना, जीवन में एक बार हज करना, रोजा रखना, विवाह और तलाक के नियमों का पालन करना, मूर्तिपूजा नहीं करना, मद्यपान तथा सुअर भक्षण नहीं करना, ब्याज पर रूपए उधार न लगाना तथा शरीयत में विश्वास करना।
मदीना में जब उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी, तब उन्होंने मदीना पर हुए विरोधियों के तीन आक्रमणों को विफल कर दिया तथा 627 ई. में मक्का के विरोधियों पर भी जीत दर्ज कर ली।
632 ई. में मुहम्मद साहब का निधन हो गया, लेकिन उस समय तक पूरे अरबवासियों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था।
इस्लाम सुन्नी और शिया दो सम्प्रदायों में बंटा हुआ है। उम्मैदवंशियों को सुन्नी तथा अबासिदों को शिया शाखा का अनुयायी माना जाता है |
सिंध विजय से पूर्व अरबों के असफल आक्रमण
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