मुगलकालीन सैन्य संगठन मुख्यतः तुर्की और मंगोल पद्धति पर आधारित था। तुर्की प्रशासन व्यवस्था में सैनिक संगठन का विशेष महत्व था।
सल्तनत कालीन सुल्तानों मे बलबन को सैन्य विभाग की स्थापना का तथा अलाउद्दीन खिलजी को एक स्थायी सेना के गठन का श्रेय दिया जाता है।
सुल्तानों की सैनिक शक्ति उनके सैनिक बल पर निर्भर करती थी। अमीर, मलिक ये सब उपाधियां सैनिक श्रेणियां थीं।
सल्तनत कालीन सैन्य व्यवस्था का शुभारंभ इल्तुतमिश के शासन काल से होता है। उसके काल में सल्तनत की सेना को ‘हश्म-ए-कल्ब’ (केन्द्रीय सेना) या कल्ब-ए-सुल्तानी कहा जाता था।
इल्तुतमिश की सेना का संगठन गुलामों के रूप में भर्ती किये गये सैनिकों की शक्ति पर आधारित था।सेना का वेतन नकद नहीं दिया जाता था बल्कि इसके बदले उन्हें अक्ता प्रदान की जाती थी।
13वीं शताब्दी में सेना का सर्वोच्च अधिकारी मलिक होता था।
खान एक आदरसूचक उपाधि होती थी। खान उच्चाधिकारी का सैन्य वर्गीकरण से कोई संबंध नहीं होता था।
सैनिक सुधारों की दृष्टि से अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल को सबसे महत्वपूर्ण युग कहा जा सकता है। उसने एक स्थायी सेना का गठन किया। सैनिकों की सीधी भर्ती की तथा उन्हें सरकारी खजाने से नकद वेतन भुगतान किया।
अलाउद्दीन ने सैनिकों को अक्ता प्रदान करने की प्रथा को समाप्त कर दिया। एक घोड़ा रखने वाले अश्वारोही सैनिक का वार्षिक वेतन 234 टंका निश्चित हुआ और दो-अस्पा सैनिकों को 78 टंका वार्षिक अतिरिक्त प्रदान किया जाता था।
अलाउद्दीन ने घोड़े को दागने की प्रथा प्रारम्भ की जिससे उसकी अदला बदली न हो सके।
अलाउद्दीन के शासन काल के बाद मुक्ता लोग अपने सैनिकों के वेतन में से कुछ कमीशन काट लिया करते थे। गयासुद्दीन तुगलक ने केवल इस कुप्रथा को समाप्त ही नहीं किया बल्कि सैनिकों के वेतन रजिस्टर (वसीलात-ए-हश्म) की स्वयं जांच करने लगा।
मुहम्मद बिल तुगलक के शासन काल में सैनिक अधिकारियों और उनके अधीनस्थ सैनिकों के वेतन का विवरण हमें पहली बार मिलता है।