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मुगलकालीन स्थापत्य

मुगलकाल में कला के विभिन्न आयामों का विकास हुआ, जिनमें चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत कला तथा स्थापत्य कला प्रमुख थे। विभिन्न मुगल सम्राटों ने अपने शासनकाल में इन कलाओं के कमोबेश विकास में योगदान किया। अकबर और शाहजहां ने मुख्य रूप से इन कलाओं को प्रश्रय दिया तथा स्थापत्य कला के कई नमूने अपने शासनकाल में  प्रस्तुत किए। स्थापत्य कला के क्षेत्र में मुगल शासकों ने विशेष रूचि दिखाई तथा कई किलों, मकबरों, मस्जिदों, नगरों और महलों का निर्माण, बागवानी का भी बहुत शौक था अतः उन्होंने कई उद्यान बनवाए थे, जिनमें से कुछ अभी भी अस्तित्व में हैं।

  • मुगल वास्तुकला इंडो-इस्लामिक स्थापत्य का अंतिम पड़ाव है, जिसमें ईरानी तत्व, तूरानी तत्व, ट्रांस आक्सियाना तत्व तथा सल्तनतकालीन तत्व भारतीय तत्व के साथ सम्मिलित हुए हैं।
  • मुगल वास्तुकला में खुरदरे पत्थर, लाल बलुआ पत्थर तथा संगमरमर तीनों का इस्तेमाल हुआ है।
  • मुगल वास्तुकला में मीलों घेरा वाले किले की प्रवृत्ति आम हो गई थी। किलों के भीतर ही पूरा शहर समा सकता था।
  • भवन निर्माण में घुमावदार, कोणदार और रंगी मेहराब का इस्तेमाल मुगलकालीन वास्तुकला की पहचान है।
  • पित्रादुरा तकनीक (संगमरमर पत्थर पर जवाहरात का जड़ाऊ काम) मुगल वास्तुकला की अपनी पहचान/विशेषता है।
  • मुगल स्थापत्य में भव्यता, विशालता पर जितना ध्यान दिया गया उतना ध्यान सजावट, अलंकरण व बारीकियों पर भी दिया गया।

मुगल वास्तुकला का विकास क्रम है-

शुरूआत-बाबर,

विकास-अकबर,

चरम-शाहजहां 

पतन-औरंगजेब।

बाबर काल

  • ‘बाबरनामा’ के अनुसार, तत्कालीन वास्तुकला में संतुलन का अभाव था, इसलिए बाबर ने ध्यान रखा कि इमारतें सामंजस्यपूर्ण और ज्यामितीय हों।
  • पानीपत की काबुली बाग मस्जिद, संभल की जामी मस्जिद, मीर बाकी द्वारा तैयार अयोध्या की बाबरी मस्जिद तथा आगरा का रामबाग बाबर काल की देन है।
  • बाबर काल के स्थापत्य में शिल्पगत सौंदर्य की कमी जरूर थी, किंतु इसकी विशालता अद्भुत थी और इस हेतु उसने अल्बानिया से भी विशेषज्ञ बुलाए थे।
  • बाबर का पुत्र हुमायूं ईरानी शैली को अधिक पसंद करता था हुमायूं ने दिल्ली में ‘दीनपनाह’ नामक भवन की नींव डाली थी।

अकबर काल

  • अकबर के शासनकाल में हुए निर्माण कार्यों में हिंदू-मुस्लिम शैलियों का व्यापक समन्वय दिखता है।
  • हुमायूँ का मकबरा (1570 ई.), आगरा का किला (1565 ई.), लाहौर किला, फतेहपुर सीकरी का किला, बुलंद दरवाजा, इलाहाबाद का किला, फतेहपुर सीकरी का पंचमहल (1583 ई.) तथा इन किलों में सैकड़ों इमारतों का निर्माण अकबर काल में हुआ।

हुमायूं का मकबरा

  • 1570 ई. में निर्मित यह इमारत वास्तव में अकबर की मां और हुमायूं की विधवा पत्नी हमीदा बानो बेगम की देन है। इसकी डिजाइन फारसी शिल्पकार मलिक मिर्जा ग्यास बेग ने तैयार की थी।
  • लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित तथा चारबाग शैली पर आधारित इस इमारत के दोहरे गुंबद में संगमरमर का इस्तेमाल हुआ है। इसी इमारत की डिजाइन पर आगे चलकर ताजमहल का निर्माण किया गया।

 

आगरा का किला

  • आगरा शहर की स्थापना सिकंदर लोदी ने 1504 ई. में (अन्य स्रोतों में 1506 ई.) में की थी, लेकिन अकबर ने 1565 ई. में आगरा के किले की नींव रखी।
  • 1.5 मील व्यास और 70 फीट ऊँचे दीवार वाले आगरा फोर्ट में दो दरवाजे हैं-दिल्ली गेट और अमर सिंह गेट।
  • इन गेटों पर अकबर ने मेवाड़ की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने वाले दो वीर राजपूत नायकों-जयमल और फत्ता की मूर्तियां लगवाई।

फतेहपुर सीकरी का किला

  • आगरा से 36 किमी0 पश्चिम में स्थित यह जगह प्राचीन काल में ‘सीकरी रूपबल’ था, जहां पत्थर पर संगतराशी का काम चलता था।
  • अकबर ने यहां लाल बलुआ पत्थर से सात मील लंबे घेरे वाले किले का निर्माण करवाया और इसे अपनी प्रशासनिक राजधानी बनाया।
  • बुलंद दरवाजा को अकबर ने गुजरात विजय के उपलक्ष्य में बनवाया था।
  • फतेहपुर सीकरी की डिजाइन बहाउद्दीन ने तैयार की थी। फतेहपुर सीकरी में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, जामा मस्जिद, इबादत-खाना, सलीम चिश्ती का मकबरा, बुलंद दरवाजा, हिरण मीनार, मीना बाजार, हवा महल, पंच महल, बीरबल महल, जोधा का महल, मरियम का महल तथा तुर्की सुल्ताना की कोठी आदि इमारते हैं।

जहांगीर काल

  • जहांगीर ने वास्तुकला की जगह बाग-बगीचों और चित्रकारी को अधिक महत्व दिया, इसलिये कुछ इतिहासकार जहांगीर काल कोस्थापत्य का विश्राम काल’ कहते हैं।
  • जहांगीर काल में अकबर का मकबरा (सिकंदरा), एत्मादुदौला का मकबरा (आगरा), अब्दुर्रहीम खानखाना का मकबरा (दिल्ली), अनारकली का मकबरा (लाहौर), जहांगीर का मकबरा (लाहौर), दिलकुश बाग (लाहौर), शालीमार बाग (कश्मीर) आदि वास्तुकला के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
  • मरियम-उज-जमानी का मकबरा (सिकंदरा में) जहांगीर ने अकबर के मकबरे के निकट एक बाग में इसे बनवाया।

ऐत्मादूद्दौला का मकबरा

  • यह अकबर एवं शाहजहां की शैलियों के मध्य एक कड़ी है।
  • इसका निर्माण मलिका-ए-आलम नूरजहां ने 1626-28 ई. में करवाया था, जो मिर्जा ग्यास बेग उर्फ एत्मादुदौला की पुत्री थी।
  • आगरा में यमुना किनारे सफेद संगमरमर से निर्मित इस इमारत में सर्वप्रथम ‘पित्रादूरा तकनीक’ (पत्थरों पर जवाहरात जड़ने का काम) का इस्तेमाल किया गया।
  • सिकंदरा स्थित अकबर के मकबरे पर हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध और ईसाई कलाओं का प्रभाव है। इसी मुगल इमारत की मीनारें सबसे उत्तम आंकी गई हैं।

शाहजहां काल

  • शाहजहां के समय मुगल स्थापत्य कला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंची।
  • इस दौर में संगमरमर पत्थरों का अत्यधिक इस्तेमाल तथा पित्रादूरा तकनीक का रूप निखरकर सामने आया।
  • शाहजहां काल में मेहराब, गुंबद, मीनार, परकोटा और बुर्ज सभी आदर्श संतुलन में उपस्थित हुए।
  • आगरा के किले का पुनरूद्धार, शाहजहांनाबाद शहर की स्थापना, दिल्ली में लाल किला व जामा मस्जिद का निर्माण तथा आगरा में विश्व प्रसिद्ध इमारत ताजमहल का निर्माण शाहजहां की स्थापत्य संबंधी विशिष्ट देन है।
  • स्थापत्य कला के चरमोत्कर्ष के कारण ही शाहजहां के शासनकाल को मुगल काल को ‘स्वर्णयुग’ कहा जाता है।

लाल किला

  • 1648 ई. में लाल बलुआ पत्थर से निर्मित इस किले में रंग महल, हीरा महल, नौबतखाना, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास आदि महत्वपूर्ण इमारते हैं।
  • लाल किले के भीतर औरंगजेब ने मोती मस्जिद का निर्माण करवाया था, जिसके बाएं तरफ हयात बख्श बाग बनाया गया है।
  • हयात बख्श बाग के प्राकृतिक दृश्य को देखने के लिए दो मंडप बनाए गए, जिसे ‘सावन मंडप’ और ‘भादो मंडप’ कहा गया। इस बाग का फव्वारा दर्शनीय है।
  •  प्रसिद्ध वक्तव्य ‘‘यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो वह यहीं है, यहीं है, यहीं है।’’ दीवान-ए-खास में अंकित है।

पित्रादूरा तकनीक

  • यह इतालवी भाषा का शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है-हार्ड स्टोन या कठोर पत्थर
  • सरल शब्दों में यह पत्थरों पर जड़ाऊ काम है, जिसका इस्तेमाल मुगल स्थापत्य कला में बखूबी किया गया है।
  • यह कला 16वीं सदी में इटली के रोम में प्रयुक्त हुई और बाद में फ्लोरेंस के कलाकारों ने इसे शीर्ष पर पहुंचाया।

औरंगजेब काल

  • बादशाही मस्जिद (लाहौर), मोती मस्जिद (लाल किला) और राबिया-उद्-दौरानी का मकबरा (औरंगाबाद, महाराष्ट्र) इस काल की प्रमुख इमारतें हैं।
  • राबिया-उद्-दौरानी मकबरा औरंगजेब की बेगम दिलरास बानो बेगम या राबिया-उद्-दौरानी की याद में बनवाया गया इसे ‘दक्कनी ताज’ या ‘बीबी का मकबरा’ भी कहते हैं।
  • इसके वास्तुकार अताउल्लाह (उस्ताद अहमद लाहौरी का पुत्र) और हंसपत राय थे।
  • राबिया-उद्-दौरानी मकबरे के निर्माण में भी संगमरमर का इस्तेमाल हुआ है।

मुगल चित्रकला

  • चित्रकारी के क्षेत्र में मुगलों ने विशिष्ट योगदान किया। उन्होंने चित्रकारी की ऐसी जीवंत परंपरा का सूत्रपात किया, जो मुगलों के अवसान के बाद भी दीर्घकाल तक देश के विभिन्न भागों में कायम रही।
  • मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने ईरान के प्रसिद्ध चित्रकार बिहजाद के चित्रों की समीक्षा की थी। बाबर की चित्रकला में व्यापक रूचि थी।
  • हुमायूं के दरबार में दो प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार अब्दुस्समद और मीर सैयद अली रहते थे।
  • मुगल शैली का विकास चित्रकला की स्वदेशी भारतीय शैली और फारसी चित्रकला की सफाविद शैली के एक उचित संश्लेषण के परिणामस्वरूप हुआ था। इस चित्रशैली की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-
    • मुगल शैली के चित्रों के विषय दरबारी शानो-शौकत, बादशाह की रूचियों पर आधारित रहे हैं।
    • मुगल कला में अत्यधिक महीन काम किया गया है। महीन एवं नुकीली तूलिका से बहुत बारीक रेखाएं खींचने का अद्भुत कौशल देखने को मिलता है।
    • मुगल शैली का रंग-विधान प्रचलित भारतीय परंपरा और ईरानी परंपरा से भिन्नता रखता है। इस शैली में लाजवर्दी और सुनहरे रंग का इस्तेमाल किया गया है।
    • इन रंगों को बनाने में विशेष कौशल भी दिखता है। कूची या ब्रश को प्रायः गिलहरी के बालों से बनाया गया है।
    • चित्रकारों ने संध्या और रात्रि के चित्रांकन में भी रूचि ली है। ऐसे चित्रों में चांदी और स्वर्ण रंग भरे गए हैं।
    • इस काल के अधिकतर चित्र कागज पर बनाए गए हैं। इसके अलावा कपड़े, भित्ति और हाथी दांत पर भी चित्र बनाए गए हैं।
    • इन सामान्य विशेषताओं के बावजूद मुगल काल के प्रत्येक बादशाह के काल में बने चित्रों में पर्याप्त विशेषताएं मिलती हैं।

जहांगीर कालीन चित्रकला

 जहांगीर के समय मुगल चित्रकला की निम्नलिखित विशेषताएं थीं-

  • जहांगीर के समय की चित्रकारी के क्षेत्र में घटी महत्वपूर्ण घटना थी-मुगल चित्रकला की फारसी प्रभाव से मुक्ति
  • इस समय चित्रकला में भारतीय पद्धति का विकास हुआ। इस कारण पर्सी ब्राउन ने कहा ‘‘जहांगीर के समय मुगल चित्रकला की वास्तविक आत्मा लुप्त हो गई।’’
  • इस दौर की चित्रकला में रूढ़ियों के स्थान पर वास्तविकता को प्रदर्शित किया जाने लगा। हस्तमुद्राएं वास्तविकता के अधिक निकट हैं। जैसे-अकबर काल में बादल रूई के गट्ठर जैसे दिखते हैं, लेकिन जहांगीर काल में वास्तविक दिखने लगे।
  • इस काल में प्रकृति का अधिक सजीव और बारीक चित्रण किया गया। पशु, पक्षी, फूल और वनस्पतियों का बेहद सुंदर चित्रांकन किया गया है।
  • धार्मिक चित्र बनने कम हो गए और चित्रों में दरबार का चित्रण ज्यादा होने लगा। व्यक्ति-चित्र बहुत ज्यादा संख्या में बनने लगे।
  • एक छोटे आकार के चित्र बनाने की परंपरा की शुरूआत हुई, जिसे पगड़ी पर लगाया जा सके या गले में पहना जा सके।
  • छवि चित्रों के प्रचलन के साथ-साथ चित्रकला में मुरक्के शैली (एलबम) तथा अलंकृत हाशिये का विकास हुआ।

जहांगीर कालीन प्रमुख चित्र

  • ईरान के शाह अब्बास का स्वागत करते जहांगीर।
  • वर्जिन मैरी का चित्र पकड़े हुए जहांगीर।
  • मलिक अंबर के कटे सिर को लात मारते हुए जहांगीर।
  • अयार-ए-दानिश नामक पशुओं के किस्से-कहानियों की पुस्तक में चित्रकारी।
  • इसके अतिरिक्त, इस काल के दौरान दरबार के दृश्यों, प्रतिकृतियों, पक्षियों, पशुओं और पुष्पों का चित्रण भी किया गया था।

जहांगीर कालीन प्रमुख चित्रकार

  • जहांगीर के अधीन अनेक चित्रकार काम कर रहे थे, उनमें से फारूख बेग, अकारिजा, अबुल हसन, मंसूर, बिशनदास, मनोहर, गोवर्धन, बालचंद, दौलत, मुखलिस, भीम और इनायत प्रमुख थे।

शाहजहां कालीन चित्रकला

  • जहांगीर की मृत्यु के बाद कुछ ही वर्षों में मुगल चित्रकला ने अपनी चमक-दमक और परिष्कार खो दिया।
  • यद्यपि शाहजहां लघुचित्रों में रूचि रखता था और चित्रित पांडुलिपियों को प्राथमिकता देता रहा, फिर भी वह मुख्यतः भवन-निर्माण के प्रति ही उत्साहित दिखाई दिया।
  • शाहजहां को दैवीय संरक्षण में अपनी तस्वीरें बनवाना सदा प्रिय रहा, जैसे-गुणगान करते हुए देवदूत स्वर्ग से ताज लेकर उतर रहे हैं।
  • इस काल के चित्रों के विषयों में यवन सुंदरियां, रंगमहल, विलासी जीवन  और ईसाई धर्म शामिल हुए।
  • इस काल में स्याह कलम चित्र बने, जिन्हें कागज, फिटकरी और सरेस आदि के मिश्रण से तैयार किया जाता था। इनकी खासियत बारीकियों का चित्रण था, जैसे-दाढ़ी का एक-एक बाल दिखना, रंगों को हल्की घुलन के साथ लगाना।
  • चित्रकला के अतिरिक्त, तपस्वियों और रहस्यवादियों के समूहों को दर्शाने वाली अन्य चित्रकलाएं और अनेक निदर्शी पांडुलिपियां भी इस अवधि में निष्पादित की गई थीं।
  • शाहजहां के जो भी छवि चित्र बने हैं उन सबमें प्रायः उसे सर्वाेत्तम वस्त्र और रत्नाभूषण धारण किये चित्रित किया गया है। इन चित्रों में उसके सिर के पीछे प्रभा पुंज भी शोभायमान है।
  • इस दौर के एकल छविचित्रों में यह विशेषता देखने में आती है कि गहराई और सम्पूर्ण दृश्य विधान प्रकट करने के लिए चित्रों की पृष्ठभूमि में दूर दिखाई देने वाला धुंधला नगर दृश्य हल्के रंगों में चित्रित किया गया है।

औरंगजेब कालीन चित्रकला

  • मुगल चित्रकला के अवसान की शुरूआत शाहजहां के काल से ही प्रारंभ हो गई थी
  • नवीनता के स्थान पर चित्रों में रूढ़िवादिता का समावेश हो गया, जिससे चित्रों में दोहराव नजर आने लगा।
  • कट्टर मुसलमान होने के कारण औरंगजेब चित्रकला तथा संगीत से इतना विमुख रहा कि लघुचित्रों की एक अत्यंत विकसित कला उसके शासनकाल में लुप्त होने लगी। हालांकि औरंगजेब ने अपने शासनकाल के अंतिम समय में चित्रकारी में कुछ रूचि ली थी। परिणामस्वरूप उसके कुछ लघु चित्र शिकार खेलते हुए, दरबार लगाते हुए एवं युद्ध करते हुए बने।

आर्थिक व्यवस्था

  • मुगल कालीन आर्थिक जीवन की विस्तृत जानकारी ‘आइने-अकबरी’ तथा विदेशी लेखकों के संस्मरणों से प्राप्त होती है।
  • कृषि उत्पाद-‘आइने-अकबरी’ में रबी (बसन्त) की 16 फसलों तथा खरीफ (शरद ऋतु) की 25 फसलों  से प्राप्त होने वाले राजस्व का विस्तृत उल्लेख मिलता है।
  • मुगल काल में खाद्य पदार्थाें में -गेहूं, चावल, बाजरा और दाल (दाल को पलसेती अथवा दिलेत खिचड़ी कहा जाता था) प्रमुख थे।
  • भारत में तम्बाकू 1604 के अन्त अथवा 1605 के प्रारंभ में (अकबर के काल) पुर्तगालियों द्वारा लायी गयी। संभवतः इसी के आस-पास मक्का अमरीका से भारत लाया गया।
  • खेती के विस्तार तथा बेहतरी के लिए मुगल बादशाहों ने किसानों को बढ़ावा दिया और इसके लिए ‘तकाबी’ नामक ऋण भी वितरित किया।
  • शाहजहां ने अकाल से निपटने के लिए सिंचाई की सुविधा की व्यवस्था की उसने 98 मील लम्बी रावी नहर लाहौर तक बनवाया जिसे ‘नहर-ए-फैज’ कहा जाता था।
  • मुगलकाल ने गन्ना, कपास, नील तथा रेशम आदि फसलों का भी उत्पादन होता था इन्हें ‘तिजारती’ (नकदी) तथा उत्तम फसलें कहा जाता था। इन फसलों पर अधिक दर पर मालगुजारी नकद रूप में अदा करनी होती थी इसलिए इन्हें ‘नकदी फसलें’ भी कहा जाता था।

उद्योग धन्धे

  • मुगल काल में सूती वस्त्र उद्योग सबसे अधिक उन्नत उद्योग था। जिस पर सरकार का पूरा नियंत्रण रहता था। यह एक ऐसी वस्तु थी जिसका विदेशों में सबसे अधिक निर्यात होता था। भारत में निर्मित कपड़ों को ‘केलीको’ कहा जाता था।
  • जहांगीर ने अमृतसर में ऊनी वस्त्रोद्योग को प्रारंभ किया।
  • चमड़े की वस्तुओं को बनाने का उद्योग भी बहुत उन्नत अवस्था में था।
  • कुछ अन्य उद्योगों के नाम इस प्रकार थे-
    • गुड़ और चीनी - बंगाल, गुजरात और पंजाब।
    • मिट्टी के बर्तन - दिल्ली, बनारस और चुनार।
    • रेशम उद्योग - आगरा, लाहौर, दिल्ली, ढाका और बंगाल।
  • फिर भी रेशमी कपड़ा विदेशों से मंगाया जाता था। रेशमी कपड़ों को ‘पटोला’ कहा जाता था।
  • हीरा गोलकुण्डा और छोटा नागपुर की खानों से प्राप्त होता था। विश्वप्रसिद्ध कोहिनूर हीरा गोलकुण्डा की खान से प्राप्त हुआ था। जिसे मीर जुमला (मुहम्मद सैयद) ने शाहजहां को भेंट किया था।

व्यापार एवं वाणिज्य

  • मुगल काल में थोक व्यापारियों को-सेठ, बोहरा व मोदी कहा जाता था जबकि खुदरा व्यापारियों को-व्यापारी व वानिक कहा जाता था।
  • दक्षिण भारत में चेट्टी व्यापारिक समुदाय के प्रमुख अंग थे।
  • मुगल काल में वस्तुविनियम का माध्यम-हुण्डी (एक प्रकार का अल्पकालिक ऋण-पत्र) था। यह वह चिट्ठी होती थी जिसका भुगतान एक निश्चित अवधि के बाद कुछ कटौती करके किया जाता था।
  • औरंगजेब के काल में हिन्दू व्यापारियों से वस्तु के मूल्य का 5 प्रतिशत तथा मुसलमान व्यापारियों से ढाई प्रतिशत लिया जाने लगा।
  • नाखुदा’ नामक व्यापारी जहाज मालिक के एजेन्ट के रूप में काम करते थे
  • अठारहवीं शताब्दी में बंगाल एवं गुजरात में ऋण प्रदान करने की एक नयी व्यवस्था शुरू हुई जिसे ददनी (अग्रिम संविदा एवं पेशगी) कहा जाता था इसके अन्तर्गत दस्तकारों (विशेषतः जुलाहों) को अग्रिम पेशगी देकर एक करार कर लिया जाता था।
  • अकबर ने आन्तरिक व्यापार पर लगने वाले ‘राहदरी शुल्क’ को समाप्त कर दिया।
  • उत्तर-पश्चिम में निर्यात के लिए दो स्थल मार्ग मुख्य थे-लाहौर से काबुल तक तथा मुल्तान से कंधार तक।

मुगलकालीन प्रसिद्ध महिलाएं

गुलबदन बेगम    -हुमायूंनामा की रचना की। वह अरबी और फारसी की प्रकाण्ड विदुषी थी।

माहम अनगा     -अकबर की धाय माँ माहम अनगा ने 1560-62 तक ‘पर्दा-शासन’ या ‘पेटीकोट सरकार’ को चलाया। इसने हुमायूं के साथ मिलकर दिल्ली में ‘मदरसा-ए-बेगम’ की स्थापना की।

नूरजहां     -जहांगीर की पत्नी, ‘जुन्तागुट’ का नेतृत्व किया, शासनकार्य में बराबर का हिस्सा लिया। इसने अनेक श्रृृंगार-प्रसाधनों एवं जेवरातों में सुरूचिपूर्ण परिवर्तन किया।

मुमताज महल  -शाहजहां की प्रिय पत्नी। यह भी श्रृंगार-प्रसाधनों और जेवरातों की बड़ी विशेषज्ञ थी।

जहांआरा   -शाहजहां की बड़ी पुत्री, बड़ी ही धार्मिक एवं सात्विक विचार धारा की महिला, उत्तराधिकार युद्ध में दारा का पक्ष लिया। सूफी मत के कादिरी सिलसिले से प्रभावित, शाहजहां के बंदी समय में यह शाहजहां के साथ रही।

जेबुन्निसा  -औरंगजेब की पुत्री, विद्रोही शहजादा अकबर से पत्र व्यवहार करने के कारण औरंगजेब ने 1679 में निर्वासित कर दिल्ली भेज दिया। यहीं पर उसने ‘बैतुल-उल-उलूम’ नामक पुस्तकालय की स्थापना की।

अस्मत बेगम  -इत्र बनाने की विधि का आविष्कार किया। यह नूरजहां की माँ थी।

मुगलकालीन साहित्य की स्थिति

  • मुगलकाल में फारसी राजभाषा थी। इसलिए, इस भाषा में साहित्यिक रचनाओं के साथ-साथ अनुवादित रचनाओं की उपलब्धि वास्तविक है, लेकिन इसके साथ ही इस काल में हिन्दी एवं संस्कृत की भी कई महत्वपूर्ण रचनाओं का उदय हुआ। फारसी में लिखित अधिकांश पुस्तकों का विषय राजाओं की जीवनी का वर्णन करना था। इसके अतिरिक्त कई अन्य पुस्तकें भी हैं, जो तत्कालीन शासन के इतिहास की जानकारी देती हैं।

मुगलकालीन फारसी-साहित्य की रचनाएं निम्नलिखित हैं-

बाबरनामा (तुजुके बाबरी)

  • बाबर ने अपनी इस रचना में 1504-1529 तक कुल 25 वर्षों की राजनैतिक स्थिति पर प्रकाश डाला है। मूल रूप से यह पुस्तक तुर्की भाषा में लिखी गई थी, जिसका अनुवाद खानखाना ने 1583 ई. में फारसी में किया।

हुमायूंनामा

  • गुलबदन बेगम द्वारा रचित इस पुस्तक के पहले भाग में बाबर का तथा दूसरे भाग में हुमायूं का इतिहास वर्णित है।

अकबरनामा

  • अबुल फजल द्वारा रचित इस पुस्तक में अकबर के जीवन काल की पूरी कथा तीन भागों में लिखी गई है। पहले भाग में उसके जीवन के आरंभिक 30 वर्षों का वर्णन है। दूसरे भाग में अगले 46 वर्षों का वर्णन है तथा तीसरे भाग में अकबर की शासन प्रणाली का वर्णन किया गया है।

शाहजहांनामा

  • इनायत खां रचित इस पुस्तक में औरंगजेब के शासन के आरंभिक कुद वर्षों का इतिहास वर्णित है।

आलमगीरनामा

  • काजिम शिराजी रचित इस पुस्तक में भी औरंगजेब के शासनकाल के आरंभिक वर्षों का वर्णन है।

चहारचमन

  • चन्द्रभान रचित इस पुस्तक में शाहजहां की शासन प्रणाली और कार्य प्रणाली का वर्णन मिलता है।

तारीखे शाहजहानी

  • सादिख खां द्वारा लिखित इस पुस्तक में शाहजहां के जीवनकाल का उल्लेख है।

तारीखे-अलफी

मुल्ला दाउद द्वारा लिखित इस पुस्तक में इस्लाम धर्म के 1000 वर्ष पूरे होने का इतिहास वर्णित है।

माजमा-ए-अलबहरीन

  • दाराशिकोह द्वारा रचित इस पुस्तक में हिन्दू और इस्लाम धर्म को एक ही पथ का दो राही बताया गया है।

फतुहात-ए-आलमगीरी

  • ईश्वरदास नागर की इस रचना में औरंगजेब के 34 वर्षों के शासनकाल का वर्णन किया गया है।

तुजुक-ए-जहांगीरी

  • जहांगीर तथा मौतमिद खां की इस संयुक्त कृति में जहांगीर के जीवन और शासनकाल का वर्णन है।

तबकात-ए-अकबर

  • निजामुद्दीन अहमद की इस कृति के 9 भाग हें, जिसमें दिल्ली सल्तनत और मुगल इतिहास का वर्णन है।

मुगलकालीन कुछ साहित्यकारों ने संस्कृत की पुस्तकों का फारसी में अनुवाद किया जो इस प्रकार है-

अनुवादक                                                                  रचना का नाम

नकी खां, बदायूंनी, अबुल फजल, फैजी                       महाभारत

बदायूंनी                                                                    रामायण

फैजी                                                                       लीलावती

शाहमुहम्मद सहबादी                                               राजतरंगिणी

फैजी                                                                      नल दमयंती

अबुल फजल                                                          कालीय दमन

बदायूंनी तथा हाजी इब्राहिम सरहिन्दी                       अथर्ववेद

इसके अतिरिक्त दारा शिकोह ने 52 उपनिषद, गीता एवं योगवशिष्ठ  का अनुवाद करवाया।

मुगलकालीन साहित्यिक रचनाओं में संस्कृत की कुछ रचनाएं भी उल्लेखनीय हैं। जगन्नाथ पंडित ने रस गंगाधर और गंगा लहरी की रचना की थी और पद्मसुंदर ने अकबरशाही तथा श्रृंगार दर्पण की रचना की थी। भानुचंद्र चरित की रचना आचार्य सिद्धचंद्र ने की थी।  

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