प्रमुख जन विद्रोह
प्रमुख भारतीय जन विद्रोह एवं उनकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
संन्यासी विद्रोह (बंगाल 1770-1820/कुछ स्रोतों में 1763-1800)
इस आंदोलन का प्रमुख कारण अत्यधिक शोषण, अकालों की निरंतरता, अंग्रेजों की लूट-घसोट, आर्थिक मंदी व राजनैतिक अशांति एवं तात्कालिक कारण अंग्रेजों द्वारा हिन्दू व मुस्लिम तीर्थ स्थानों की यात्रा पर लगाया गया प्रतिबंध था।
संन्यासी प्रभाव क्षेत्र ढाका, रंगपुर तथा मैमनपुर थे।
इस आंदोलन के नेतृत्वकर्ता मजमून शाह एवं देवी चौधरानी थे।
1770 के अकाल के बाद तो इतना तीव्रगामी विद्रोह किया गया कि 1773 में विद्रोहियों ने समानांतर सरकार बना ली।
बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा लिखित उपन्यास आनंदमठ का कथानक संन्यासी विद्रोह पर आधारित है।
संन्यासी विद्रोह को दबाने का श्रेय वारेन हेस्टिंग्स (1773-85) को दिया जाता है।
फकीर विद्रोह (बंगाल, 1776-77)
यह एक धार्मिक विद्रोह था, जो घुमक्कड़ मुसलमान फकीरों के गुट द्वारा किया गया था।
इस विद्रोह के नेता मजमून शाह ने अंग्रेजी शासन के विरूद्ध विद्रोह करते हुए जमींदारों और किसानों से धन की वसूली की ।
मजनूमशाह की मृत्यु के पश्चात् आंदोलन की बागडोर चिरागअली शाह ने संभाली। राजपूत, पठान एवं सेना के भूतपूर्व सैनिकों ने आंदोलन को सहयोग प्रदान किया।
भवानी पाठक, देवी चौधरानी, कृपानाथ, नुरुल मोहम्मद, पीताम्बर आदि जैसे नेताओं ने इस आंदोलन की सहायता की।
कालांतर में इस आंदोलन के समर्थकों ने हिंसक गतिविधियां प्रारंभ कर दीं, जो अंग्रेजी फैक्ट्रियों एवं सैनिक साजो-सामान पर केंद्रित थी |
19वीं शदी के प्रारंभिक वर्षों तक अंग्रेजी सेनाओं ने आदोलन को कठोरतापूर्वक दबा दिया।
पाइक विद्रोह (1817-1825)
यह विद्रोह उड़ीसा की पाइक जाति द्वारा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के विरूद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था। यह ओडिशा के खुर्दा जिले से शुरू हुआ।
बक्शी जगबंधु विद्याधर के नेतृत्व में इस विद्रोह को अंजाम दिया गया जो कि खुर्दा के राजा के सैन्य कमांडर थे।
पाइक जाति को परंपरागत रूप से खुर्दा के राजा द्वारा सैन्य गतिविधियों के लिये कर मुक्त भूमि का आवंटन किया जाता था। अंगेजों ने इस पर रोक लगा दी। अन्य कारणों में भारतीयों से अंग्रेजों द्वारा जबरन वसूली और उत्पीड़न भी शामिल रहा, जिससे यह आंदोलन आक्रोशित हो उठा।
1825 तक इस आंदोलन का पूर्णतः दमन कर दिया गया।
अहोम विद्रोह (1828-1833, असम)
अंग्रेजों ने 1824 में बर्मा-युद्ध के बाद उत्तरी असम पर अधिकार कर लिया | अहोम-वंश के उत्तराधिकारियों ने इसका विरोध किया और ईस्ट इंडिया कंपनी से असम छोड़कर चले जाने को कहा, परिणामस्वरूप विद्रोह हो गया।
अहोमों ने गोमधर कुंवर के नेतृत्व में 1828 से 1830 तक कंपनी के विरूद्ध विद्रोह किया, परंतु विद्रोह सफल न हो सका । अंग्रेज अधिकारियों ने गोमधर कुंवर को गिरफ्तार कर अंततः विद्रोह को दबा दिया।
अहोमों ने कुमार रूपचंद के नेतृत्व में 1830 में दूसरे विद्रोह की योजना बनाई, परंतु विद्रोह की योजना बनाई, परंतु इससे पहले विद्रोह होता, कंपनी ने शांत की नीति अपनाते हुए 1833 में उत्तरी असम के प्रदेश महाराज परंदर सिंह को दे दिये। इस तरह अहोम विद्रोह शांत हो गया।
फराजी/फरैजी विद्रोह (1838-1857 बंगाल)
फरैजी विद्रोह का सूत्रपात हाजी शरीयतुल्ला द्वारा बंगाल में किया गया। इसका प्रचार-प्रसार शरीयतुल्ला के पुत्र मोहम्मद मोहसिन (दादू मियां) ने किया।
फरैजी विद्रोही सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक परिवर्तन के समर्थक थे। साथ ही यह आंदोलन अंग्रेजों को बंगाल से बाहर निकालने एवं जमींदारों के बढ़ते अत्याचारों के विरूद्ध था।
फरैजी उपद्रव 1838-57 तक चलते रहे तथा अंत में इस संप्रदाय के अनुयायी वहाबी आंदोलन में शामिल हो गए।
कूका आंदोलन (1840-72)
यह आंदोलन धार्मिक आंदोलन के रूप में प्रारंभ हुआ था। इसका उद्देश्य सिख धर्म में प्रचलित बुराइयों व अंधविश्वासों को दूर करना था, परंतु अंग्रेजों का पंजाब पर अधिकार करने के पश्चात् यह आंदोलन राजनीतिक आंदोलन में परिवर्तित हो गया।
पश्चिमी पंजाब में कूका आंदोलन की शुरूआत भगत जवाहर मल (सियान साहिब) एवं उनके शिष्य बालक सिंह के नेतृत्व में हुई।
1863 में बालक सिंह की मृत्यु के बाद उनके शिष्य राम सिंह कूका के नेतृत्व में विद्रोह ने जोर पकड़ा।
1869 में राम सिंह कूका के नेतृत्व में फिरोजपुर में पहला विद्रोह हुआ। यह एक राजनीतिक विद्रोह था और अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंकना इस विद्रोह का मूल उद्देश्य था।
1872 में राम सिंह कूका को गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया गया जहां 1885 में उनकी मृत्यु हो गई इस तरह इस आंदोलन पर नियंत्रण पर लिया गया।
कूका आंदोलनकारी खुद के हाथ से बने वस्त्र पहनते थे। इन आंदोलनकारियों ने ब्रिटिश सामानों और स्कूलों का बहिष्कार किया। कह सकते हैं कि कूका आंदोलन में असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे तत्व मौजूद थे।
24 दिसंबर 2014 को संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रायलय द्वारा कूका आंदोलनकारियों के वीरतापूर्ण कार्यों को सम्मान व पहचान देने हेतु एक संस्मरणीय स्टाम्प जारी किया गया।
नोटः बाबा राम सिंह कूका ने ही नामधारी आंदोलन चलाया था, जिसमें मद्यपान निषेध, गोमांस निषेध, वृक्ष पूजा और महिलाओं की समानता पर बल दिया गया था
गडकरी विद्रोह (1844)
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में यह आंदोलन हुआ। गडकरी लोग मराठों के किलों में कार्यरत वंशानुगत सैनिक थे।
इस विद्रोह का नेतृत्व दाजी कृष्ण पंडित ने किया।
गडकरियों ने ’’समनगढ़’’ तथा ’’भूदरगढ़’’ के किलों को जीत लिया था।
सरकार को गडकरियों के विद्रोह को दबाने के लिये काफी संघर्ष करना पड़ा।
कित्तूर चेनम्मा विद्रोह (1824-29)
यह विद्रोह 1824-29 के दौरान कित्तूर (कर्नाटक) नामक स्थान पर हुआ। यहाँ के स्थानीय शासक राजा मल्लासर्जा की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने उसके उत्तराधिकारी को मान्यता नहीं दी। फलस्वरूप दिवंगत राजा की विधवा चेनम्मा ने विद्रोह कर दिया 1824 के अंत तक अंग्रेजों ने इसे दबा दिया।
1829 में रानी चेनम्मा ने गवर्नर रयन्ना के नेतृत्व में एक बार पुनः विद्रोह कर अपने को स्वतंत्र घोषित कर लिया । अंग्रेजों ने इस विद्रोह को भी दबा दिया और रानी चेनम्मा को कैद कर लिया।
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