आधुनिक राज्य असम को प्राचीनकाल में कामरूप और प्राग्ज्योतिषपुर कहा जाता था। इस क्षेत्र में डवाक नामक एक अन्य राज्य भी था, जिसका उल्लेख समुद्रगुप्त के इलाहाबाद शिलालेख में कामरूप के साथ सीमावर्ती राज्य के रूप में किया गया है। कामरूप राज्य का विस्तार उत्तरी और पश्चिमी बंगाल, चीन के सीमावर्ती इलाकों तथा डवाक तक था।
कामरूप के वर्मन वंश के उदय के विषय में स्पष्ट जानकारी का अभाव है। इस वंश का प्रथम महत्त्वपूर्ण शासक 'पुष्यवर्मन' था। पुष्यवर्मन का शासन समुद्रगुप्त के समकालीन था। उसने प्राग्ज्योतिषपुर को अपनी राजधानी बनाया था।
पुष्य वर्मन के बाद भूति वर्मन के शासन काल में वर्मन वंश की राजनीतिक प्रभुसत्ता का विकास हुआ। इसके अधीन कामरूप एक शक्तिशाली राज्य बना।निधनपुर ताम्र-पत्र अभिलेख के उल्लेख के आधार पर माना जाता है कि उसने सम्पूर्ण कामरूप को अपने अधिकार में कर लिया था। उसके उत्तराधिकारी सुस्थित वर्मन के विषय में दो अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न करवाने का उल्लेख नालन्दा मुद्रालेख से प्राप्त होता है। सुस्थित वर्मन जिसे 'मृगांक' भी कहा जाता था, के विषय में हर्षचरित के उल्लेख के आधार पर कहा जा सकता है कि उसने 'महाराजाधिराज' की उपाधि धारण की थी।
सुस्थितवर्मन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र सुप्रतिष्ठित वर्मन वर्मन वंश का शासक हुआ। उसके विषय में दूवी ताम्र-पत्र अभिलेख में मिली जानकारी के आधार पर माना जाता है कि वह गौड़ नरेश शशांक से एक युद्ध में पराजित हुआ था।
सुप्रतिष्ठित वर्मन के बाद उसका भाई भास्कर वर्मन कामरूप का अगला शासक हुआ। उसने कन्नौज के शासक हर्षवर्धन से दोस्ती की । इसके विषय में चीनी यात्री ह्वेनसांग के विवरण से जानकारी मिलती है।
भास्कर वर्मन वर्मन वंश का अन्तिम महान् शासक था। भास्कर वर्मन हर्षवर्धन का समकालीन था। बाणभट्ट की रचना 'हर्षचरित' में उसका वर्णन है। उसने समस्त कामरूप के साथ बंगाल के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया था। भास्करवर्मन के बाद वर्मन वंश का अंत हो गया।
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