वाल्मीकीय ‘रामायण’ में चोल, पाण्ड्य, केरल आदि भौगोलिक परिवेश का वर्णन है।
संगम मंडल की उपलब्ध रचनाओं की कुल संख्या 2289 है।
इस युग मे तमिल व्याकरण और प्रसिद्ध पुस्तक ‘तोल्काप्पियम’ की भी रचना हुई।
संगम मंडल की अवधि 9,990 वर्षों की रही।
मौर्य सम्राट अशोक के दूसरे, पांचवें एवं तेरहवें दीर्घ-शिलालेख में चोल, पाण्ड्य, केरलपुत्र एवं सतियापुत्र के अतिरिक्त श्रीलंका का उल्लेख है।
मेगस्थनीज की ‘इण्डिका’ में पाण्ड्य राज्य का उल्लेख है। उसने इसकी व्युत्पत्ति हेराक्लीज की पुत्री ‘पाण्ड्या’ से बताई है।
कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ में भी संगमयुगीन राज्यों का उल्लेख है।
स्ट्रैबो तथा प्लिनी ने दक्षिण भारत एवं रोम के बीच व्यापारिक संबंधों का उल्लेख किया है।
उत्खननों में संगम-स्थलों से रोम के सोने एवं चांदी के सिक्कों के ढेर मिले हैं, जो देनों देशो के बीच व्यापारिक संबंधों का प्रमाण है।
कलिंगराज खारवेल के ‘हाथीगुम्फा-अभिलेख’ में उल्लेख है कि उसने तमिल राज्यों के संघ को हराया था।
कालिदास के महाकाव्य ‘रघुवंश’ में ‘केरल’ राज्य का उल्लेख है।
अज्ञात व्यक्ति की रचना ‘पेरिप्लसऑफदएरिर्थ्रियनसी’ से संगम साहित्य का स्रोत मिलता है।
‘संगम’ या ‘संघम्’ शब्द विद्वत्परिषद् के लिए व्यवहृत हुआ था।
कालांतर में इन संगमों में संकलित साहित्य को ही ‘संगम’ साहित्य के रूप में पुकारा जाने लगा।
संगम-साहित्य की रचना कब हुई, यह अज्ञात है। क्योंकि संगम सभाओं अथवा परिषदों के आयोजन के दौरान संगम-साहित्य की रचना नहीं होती थी, बल्कि उसका पाठ एवं उस पर विचार विमर्श होता था।
इस संगम के आचार्य थे अगत्तियार या अगस्त्य, जो कि उत्तर भारत से आर्य-संस्कृति को लेकर दक्षिण भारत आए।