• Have Any Questions
  • +91 6307281212
  • smartwayeducation.in@gmail.com

Study Material



कम्पनी के मामलों में प्रभावी नियन्त्रण स्थापित करने के लिए अधिनियम

1600 ई0 का राजलेख- भारतीय संविधान के विकास का काल ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना से शुरू होता है। 31 दिसम्बर 1600 में इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ की आज्ञा (रॉय चार्टर) प्राप्त कर भारत के साथ व्यापार करने के उदेश्य से ईस्ट इण्डिया कम्पनी का निर्माण किया गया । ब्रिटिश इस्ट इंडिया नाम से इस कम्पनी की स्थापना  लंदन के कुछ व्यापारियों द्वारा भारत तथा पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने के उदेश्य से 1599 ई0 में की गई थी । प्रारम्भ में इस कम्पनी का उदेश्य व्यापारिक था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे रजनीतिक होने लगा। 1757 में प्लासी की लड़ाई में सिराजुद्दौला के पराजित हो जाने पर, भारत के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्र पर कम्पनी का शासन स्थापित हो गया।

1726 का राजलेख- इस राजलेख द्वारा कलकत्ता बम्बई (मुम्बई) और मद्रास (चेन्नई) प्रेसीडेनिसयों के राज्यपाल एवं उसकी परिषद को विधि बनाने की शक्ति प्रदान की गयी। इससे पूर्व तक विधि बनाने की शक्ति कम्पनी के इंगलैंण्ड स्थित  निदेशक बोर्ड में निहित थी । इस प्रकार 1726 के राजलेख ने भारत स्थित कम्पनी की सरकार, गवर्नर जनरल की परिषद को नियम, उपनियम और  अध्यादेशों को पारित करने का अधिकार के साथ-साथ  उनके उल्लंघन करने वालों को दण्डित करने की शक्ति प्रदान की। लेकिन गवर्नर जनरल को विधि बनाने की शक्ति पर मुख्य रूप से दो निर्बन्धन भी थे। पहला, यह कि उसके द्वारा निर्मित विधियाँ आंग्ल विधियों के विपरीत न हों और दूसरा यह कि व युक्तियुक्त हो ।

रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773- ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्मचारियों में व्याप्त अनुशासनहीनता तथा स्वार्थपरक प्रवृत्ति के कारण कम्पनी को हुई क्षति पर रिपोर्ट देने के लिए तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री लार्ड नाथ द्वारा 1772 में गठित गुप्त संसदीय समिति के प्रतिवेदन  पर 1773 में ब्रिटिश संसद द्वारा रेग्युलेटिंग ऐक्ट पारित किया गया । इस अधिनियम को पारित करने का उदेश्य सत्ता हस्तांतरण नहीं वरन् कम्पनी की भारतीय सत्ता पर ब्रिटिश संसदीय नियंत्रण स्थापित करना था। ब्रिटिश संसद का यह प्रथम प्रयास था जिसके द्वारा इंग्लैंड में कंपनी विधान में निहित दोषों को दूर करके संसदीय नियंत्रण द्वारा भारत में प्रशासनिक सुधार करने का प्रयत्न किया गया। इस अधिनियम में निम्नखित प्रावधान किये गये थे-

  •  मद्रास तथा बम्बई प्रेसीडेन्सी को बंगाल प्रेसीडेन्सी के अधीन कर दिया गया तथा बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रेसीडेन्सियों का गवर्नर जनरल बना दिया गया । मद्रास और  बम्बई के गवर्नर को गवर्नर जनरल के अधीन कर दिया गया तथा इन प्रांतीय सरकारों पर उसे नियंत्रण करने का अधिकार प्रदान कर दिया गया। इस प्रकार बंगाल के गवर्नर कों अब समस्त अंग्रेजी क्षेत्रों का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा। गवर्नर जलरल को युद्ध तथा संधि एवं राजस्व संबंधी अधिकार प्रदान किये गये । कंपनी के निदेशक मंडल के सदस्यों को राजस्व से संबंधित सभी मामलों तथा दीवानी एवं सैन्य  प्रशासन संबन्धी किये जाने वाले कार्यो के बारे में सरकार को अवगत कराना आवश्यक कर दिया।
  •  बंगाल का शासन गवर्नर जनरल तथा चार सदस्यीय परिषद में निहित किया गया तथा यह व्यवस्था भी की गयी कि परिषद का निर्णय बहुमत से किया जा सकता है। परिषद के सदस्यों को नागरिक तथा सैन्य प्रशासन से संबद्व कर दिया गया। परिषद में वारेन हेस्टिंग को गवर्नर जनरल के रूप में नियुक्त किया गया जबकि क्लैवरिंग, मानसन, बरबैल एवं फिलिप फ्रांसिस इस परिषद के सदस्य (पार्षद) के रूप में नियुक्त किये गये । इन सब का कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित था गवर्नर जनरल तथा उसकी परिषद सहशासी कार्यकारी सिद्धान्त पर कार्य करने के लिए अधिकृत था।
  •  गर्वनर जनरल की परिषद को कम्पनी के आधीन के प्रदेशों में शासन चलाने हेतु समय समय पर नियम, अध्यादेश तथा विनियम के निर्माण का अधिकार प्रदान किया गया । नियम, अध्यादेश तथा विनिमय का निर्माण उच्चतम न्यायालय की पूर्व स्वीकृति से किया जा सकता था। हालांकि इसे लागू करने से पूर्व भारत सचिव से अनुमति लेना अनिवार्य था।
  •  यह प्रावधान भारत में ब्रिटिश शासन की कानून बनाने की शक्ति की प्राप्ति और आधुनिक पश्चिमी प्रशासन का प्रारम्भ था
  •  कलकत्ता में उच्चतम न्यायालय की स्थापना का प्रावधान किया गया, जिसे दीवानी, फौजदारी, जल सेना तथा धार्मिक मामलों में व्यापक अधिकार दिया गया। इस न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा तीन अपर न्यायाधीश होते थे। यह अभिलेख न्यायालय भी था। उच्चतम न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध इंग्लैंड स्थित प्रिवि कौशिल में अपील की जा सकती थी।
  •  कम्पनी के संचालक मंडल के सदस्यों (जो 24 थे) का कार्यकाल 4 वर्ष कर दिया गया तथा भारत से वापसी के दो वर्ष बाद ही कोई व्यक्ति कम्पनी के संचालक मंडल का सदस्य बन सकता था।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसरण में वारेन हेस्टिंग्स को बंगाल का गवर्नर जनरल बनाया गया, जिसे भारत का प्रथम गवर्नर जनरल कहा जाता है तथा इसके साथ ही भारत में कम्पनी के प्रशासन पर ब्रिटिश संसदीय नियंत्रण के प्रयासें की शुरूआत हुई 1774 में ब्रिटिश क्राउन द्वारा जारी किये गये चार्टर के आधीन भारत में उच्चतम न्यायालय की स्थापना कलकत्ता में की गयी। सर एलीजाह  इप्पे इस न्यायालय के प्रथम न्यायाधीश तथा चेम्बर लेमीस्टर और हाइड अवर न्यायाधीश नियुक्त किये गये। इस चार्टर के द्वारा भारत में बहुमत के निर्णय को मान्यता भी मिली तथा कम्पनी के कार्यो में ब्रिटिश संसद का हस्तक्षेप व नियंत्रण प्रारम्भ हुआ । इस प्रकार 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट में भारत में कम्पनी के शासन के लिए पहली बार एक लिखित संविधान प्रस्तुत किया गया जिससे भारत में एक सुनिश्चित शासन पद्धति की शुरूआत हुई । यह अधिनियम 11 वर्षो तक अमल में रहा। इसके स्थान पर 1784 में पिट का इण्डिया ऐक्ट पारित किया गया।

1781 का संशोधित अधिनियम- सर्वोच्च न्यायालय कंपनी के कर्मचारियों के विरूद्ध उन कार्यो के लिऐ कार्रवाई नहीं कर सकता, जो उन्होने एक सरकारी अधिकारी की हैसियत से किये हों। कंपनी के राजस्व कलेक्टरों एवं कानूनी अधिकारियों को भी सरकारी अधिकारी के रूप में किये गए कार्यो के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के कार्यक्षेत्र से मुक्त कर दिया गया।

  •  गवर्नर-जनरल एवं उसकी परिषद के सदस्यों को भी यह उन्मुक्तता प्रदान की गई।
  •  कानून बनाते तथा उनका क्रियान्वयन करते समय भारतीयों के सामाजिक तथा धार्मिक रीति रिवाजों का सम्मान किये जाने के निर्देश दिये गये।

1784 ई. का पिट्स इंडिया एक्ट-

गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग की साम्राज्यवादी नीतियों को लेकर कंपनी एवं संसद के बीच मतभेद पैदा हो गये थे। इसी कारण 1782 में हाउस आफ काॅमंसमें हेस्टिंग्स को वापस बुला लेने का प्रस्ताव भी पारित हुआ । परंतु कोर्ट आफ डाइरेक्टर्स ने संसद की इच्छा की अवहेलना कर दी इन स्थितियों से निबटने के लिए कंपनी पर नियंत्रण के लिए 1783 ई0 में इंग्लैंड के  तत्कालीन नाॅर्थ फाॅक्स मंत्रिमंडल ने फाॅक्स इंडिया बिलसंसद में पेश किया । हाउस आफ कामंस में विधेयक पारित हो जाने के बावजूद सम्राट जार्ज तृतीय के विरोध के कारण हाउस आफ लार्डस द्वारा विधेयक अस्वीकार कर दिया गया और फाॅक्स मंत्रिमंडल को त्याग-पत्र देना पड़ा । अगली सरकार पिट द यंगर ने बनायी, जिसने 1784 में संसद में फिर से इंडिया बिल पेश किया इस पर फाक्स के विरोध के कारण विधेयक गिर गया । संसद भंग कर चुनाव कराये गये, जिसमें पिट्स भारी बहुमत से विजयी हुआ । उसने कुछ संशोधनों के साथ अपना इंडिया बिल फिर से संसद में रखा, जो पारित हो गया और 1784 के पिट्स इंडिया एक्ट के नाम से प्रसिद्व हुआ । इस अधिनियम में निम्नलिखित प्रावधान किये गये थे। -

  • 6 कमिश्नरों के एक नियंत्रण बोर्ड की स्थापना की गयी, जिसे भारत में अंग्रजी अधिकृत क्षेत्र पर पूरा अधिकार दिया गया । इसे बोर्ड ऑफ़ कंट्रोलके नाम से जाना जाता था, इसके सदस्यों की नियुक्त ब्रिटेन के सम्राट द्वारा की जाती थी । इसके 6 सदस्यों में-एक ब्रिटेन का अर्धमंत्री, दूसरा विदेश सचिव तथा 4 अन्य सम्राट द्वारा प्रिवि कौशिल के सदस्यों में से चुने जाते थे।  
  •  बम्बई तथा मद्रास के गवर्नर पूर्णरूपेण गवर्नर-जनरल के अधीन कर दिये गये।
  • भारत में गवर्नर जनरल के परिषद की सदस्य संख्या चार से घटाकर तीन कर दी गयी। इन तीन में से एक स्थान मुख्य सेनापति को दिया गया ।
  •  भारत में कंपनी के अधिकृत प्रदेशों को पहली बार नया नाम ब्रिटिश अधिकृत भारतीय प्रदेश दिया गया ।
  •  संचालन मंडल द्वारा तैयार किये जाने वाले पत्र व अज्ञायें नियंत्रण बोर्ड के सम्मुख रखे जाते थे । संचालन मंडल को भारत से प्राप्त होने वाले पत्रों को भी  नियंत्रण बोर्ड के सम्मुख रखना आवश्यक था । नियंत्रण बोर्ड, पत्रों में परिवर्तन कर सकता था।
  •  कम्पनी के डाइरेक्टरों की एक गुप्त सभा बनायी गयी, जो अधिकार सभा या संचालन मंडल के सभी आदेशों को भारत भेजती थी ।
  •   मद्रास तथा बम्बई के गवर्नरों की सहयता के लिए तीन-तीन सदस्यीय परिषदों का गठन किया गया ।
  •   देशी राजाओं से युद्ध तथा संधि से पहले गवर्नर-जनरल को कम्पनी के डाइरेक्टरों से स्वीकृति लेना अनिवार्य था ।
  •  भारत में अंग्रेज अधिकारियों के ऊपर मुकदमा चलाने के लिए इंग्लैण्ड में एक कोर्ट की स्थापना की गयी।

1786 का अधिनियम- 

  • इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल को प्रधान सेनापति की शक्तियां प्रदान की गई तथा साथ ही गवर्नर जनरल को विशेष परिस्थितियों में अपनी परिषद के निर्णयों को रद्द करने तथा अपने निर्णय लागू करने का अधिकार दिया गया ।
  • यह अधिनियम मूलरूप ये लार्ड कार्नवालिस को भारत के गवर्नर जनरल का पद स्वीकार करने के लिए मनाने के उद्देश्य से लाया गया था जैसा की कार्नवालिस गवर्नर जनरल तथा मुख्य सेनापति दोनो की शक्तियां प्राप्त करना चाहता था।

1793 का राजलेख- 

  • कम्पनी के कार्यो और संगठन में सुधार करने के लिए यह अधिनियम पारित किया गया था ।
  • इस अधिनियम की एक मुख्य विशेषता यह थी कि इसमें पूर्व अधिनियमों की सभी महत्वपूर्ण प्रावधानों को शामिल किया गया था।
  • कम्पनी के व्यापारिक अधिकारों को अगले 20 वर्षो के लिए बढ़ा दिया गया ।
  • शासको के व्यक्तिगत नियमो की जगह ब्रिटिश भारतीय क्षेत्र में लिखित विधि-विधानों द्वारा प्रशासन की आधारशिला रखी गयी, इन लिखित नियमों और विधियों की व्याख्या न्यायालय द्वारा किया जाना निर्धारित किया गया ।
  • गवर्नर जनरल एवं गवर्नरों के परिषदों के सदस्यों की योग्यता के लिए सदस्य को कम से कम 12 वर्षो तक भारत में रहने का अनुभव आवश्यक कर दिया गया ।
  • इस अधिनियम के द्वारा नियंत्रक मंडल के सदस्यों को भारतीय राजस्व से वेतन देने का प्रावधान किया गया तथा सभी कानूनो एवं विनियमों की व्याख्या का अधिकार न्यायालय को दिया गया।

1813 का राजलेख -    कम्पनी के एकाधिकार को समाप्त करने, ईसाई मिशनरियों द्वारा भारत में धार्मिक सुविधाओं की मांग, लार्ड वेलजली का भारत में आक्रामक नीति तथा कम्पनी की शोचनीय आर्थिक स्थित के कारण 1813 का चार्टर अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किया गया, जिसमें निम्नलिखित प्रावधान किये गये थे।

  •  कम्पनी के भारतीय व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त करके अन्य ब्रिटिश प्रजाजनों को भी व्यापार का अधिकार प्रदान किया गया। यद्यपि उसका चीन से व्यापार एवं चाय के व्यापार पर अधिकार बना रहा।
  •  कम्पनी को अगले 20 वर्षो के लिए भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर नियंत्रण का अधिकार प्रदान किया गया।
  •  नियंत्रक मंडल की अधीक्षण तथा निर्देशन की शक्ति को स्पष्ट करते हुए उसका विस्तार किया गया
  •  कम्पनी को गवर्नर जनरल, गवर्नरों, तथा प्रधान सेनापतियों को नियुक्त करने का अधिकार दिया गया लेकिन यह नियुक्तियां ब्रिटिश राजपद की स्वीकृति से की जा सकती थीं।
  •  ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की अनुज्ञा दी गयी।
  •  भारतीयों की शिक्षा पर एक लाख रूपयें की वार्षिक धनराशि के व्यय का प्रावधान किया गया।
  •  स्थानीय स्वायत्तशासी संस्थाओं को करारोपड़ का अधिकार दिया गया और राजस्व सम्बन्धी नियमों तथा लेखांकन की व्यवस्था की गयी ।
  •  कम्पनी के व्यय पर अधिकतम 20,000 अंग्रेज सैनिक रखने की व्यवस्था की गयी ।
  • 1813 के राजलेख द्वारा भारत में अंग्रेजी सम्राज्य की संवैधानिक स्थिति पहली बार स्पष्ट हो गयी

1833 का चार्टर अधिनियम-

  •  चाय के व्यापार तथा चीन के साथ व्यापार करने संबन्धी कम्पनी के अधिकार को समाप्त कर दिया गया ।
  •  अंग्रेजो को बिना अनुमति-पत्र के ही भारत आने तथा रहने की आज्ञा दे दी गयी । वे भारत में भूमि भी खरीद सकते थे ।
  •  भारत में सरकार का वित्तीय, विधायी तथा प्रशासनिक रूप से केंद्रीयकरण करने का प्रयास किया गया ।
  •  बंगाल के साथ मद्रास, बम्बई तथा अन्य अधिकृति प्रदेशों को भी गवर्नर-जनरल के नियंत्रण में रख दिया गया ।
  •  बंगाल का गवर्नर-जनरल, भारत का गवर्नर-जनरल हो गया ।
  •   सपरिषद गवर्नर-जनरल को ही भारत के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया और मद्रास और बम्बई की कानून बनाने की शक्ति समाप्त कर दी गयी।
  •  इस अधिनियम द्वारा स्पष्ट कर दिया गया कि कम्पनी के प्रदेशों में रहने वाले किसी भारतीय को केवल धर्म, वंश, रंग या जन्म स्थान इत्यादि के आधार पर कंपनी के किसी पद से जिसके वह योग्य हो, वंचित नही किया जायेगा।
  •  भारत में दासप्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया तथा गवर्नर-जनरल को निर्देश दिया कि वह भारत से दासप्रथा को समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाये (1843 में दासप्रथा का उन्मूलन किया गया)

1853 का चार्टर अधिनियम-

  •  कार्यकारिणी परिषद के ’’कानून सदस्यको परिषद का पूर्ण सदस्य बना दिया गया ।
  • निदेशक मण्डल में सदस्यों की संख्या 24 से कम कर 18 कर दी गयी तथा इनमें से 6 सदस्यों को नियुक्त करने का अधिकार ब्रिटिश राजा को प्रदान किया गया । निदेशक मण्डल के सदस्यों के लिए योग्यता विहित की गयी 
  •  बंगाल के लिए पृथक लेफ्टिनेंट-गवर्नर की नियुक्ति की गयी ।
  • कम्पनी के कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए प्रतियोगी परीक्षा की व्यवस्था की गयी ।
  •  कम्पनी को भारतीय प्रदेशों को जब तक संसद चाहे तब तक के लिए अपने आधीन रखने की अनुमति दे दी गयी ।
  •   गवर्नर जनरल को अपनी परिषद के उपाध्यक्ष की नियुक्ति का अधिकार प्रदान किया गया ।

Videos Related To Subject Topic

Coming Soon....