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  विजयनगर साम्राज्य के उत्तराधिकारी

  •  विजयनगर विजयनगर साम्राज्य में संगम वंश के बाद सालुव वंश का शासन स्थापित हुआ | विजय नगर के इतिहास में इसे ‘प्रथम  बलापहार’ कहा गया है | 1485 ई.में संगम वंश के शासक विरूपाक्ष द्वितीय की उसके ही सेनापति सालुव नरसिंह ने हत्या कर विजयनगर में दूसरे राजवंश-सालुव वंश की नींव रखी । विजयनगर के इतिहास में इसे ' प्रथम बलापहार ' कहा गया।

सालुव वंश (1485-1505 )

  • सालुव नरसिंह (1485-90 ई.) योग्य एवं प्रतिभा संपन्न शासक था , उसने विजयनगर राज्य के क्षेत्र जो संगम वंश के समय बहमनी और उड़ीसा द्वारा हड़प लिये गए थे , को पुनः प्राप्त कर लिया । ।1490 ई.में सालुव नरसिंह की मृत्यु हो गई ।
  • सालुव नरसिंह की मृत्यु के बाद उसका अल्प वयस्क पुत्र इम्माड़ि नरसिंह (1490-1505 ) शासक बना , जिसका संरक्षक नरसा नायक था ।
  •  1505 ई.में नरसा नायक के पुत्र वीर नरसिंह ने  सालुव शासक इम्माड़ि नरसिंह की हत्या कर सालुव वंश के स्थान पर तुलुव वंश की नींव रखी और इसे द्वितीय बलापहार कहा गया

तुलुव वंश (1505-1565 ई.)

  •  1505 ई.में वीर नरसिंह तुलुव वंश का प्रथम शासक हुआ ।
  •  आंतरिक अशांति और सामंतवादी सरदारों के विरोध के कारण उसका शासनकाल युद्धों में ही व्यतीत रहा ।
  •  1509 ई.में उसकी मृत्यु के बाद उसका सौतेला भाई कृष्णदेव राय शासक बना ।
  • कृष्णदेव राय (1509-1529 ई.)
  •  कृष्णदेव राय तुलुव वंश तथा विजयनगर साम्राज्य का महानतम शासक था ।
  •  कृष्णदेव राय जब शासक बना तो राज्य में अव्यवस्था और अशांति व्याप्त थी, जिस पर कृष्णदेव राय ने कठोर कानून व्यवस्था स्थापित कर नियंत्रण किया ।
  •  कृष्णदेव राय ने 1510 में बीदर के शासक महमूद शाह को पराजित किया । 1512 ई.में रायचूर-दोआब और गुलबर्गा के दुर्गों को भी जीत लिया ।1513-18 ई.के बीच उड़ीसा के गजपति शासक के विरुद्ध कई बार युद्ध अभियान किये । उड़ीसा के शासक प्रताप रूद्रदेव ने कृष्णदेव राय से संधि कर उससे अपनी पत्री का विवाह कराया।
  •  1520 ई.में कृष्णदेव राय ने गोलकुंडा को हराकर वारंगल पर अधिकार कर लिया । अत : मात्र दस वर्षों में कृष्णदेव राय ने अपने सभी विरोधियों को पराजित कर दक्षिण भारत में स्वयं एवं विजयनगर की प्रभुसत्ता को सिद्ध भी कर दिया ।
  • कृष्णदेव राय के पुर्तगाली व्यापारियों से संबंध मैत्रीपूर्ण थे । इन संबंधों में मिलने वाली सुविधाओं एवं लाभों के द्वारा पुर्तगालियों ने पश्चिमी समुद्र में अपनी नौसेना का विकास भी कर लिया था । • कृष्णदेव राय महान शासक एवं विद्वान था , जिस कारण उसे विद्वानों की परख भी थी । उसने अनेक विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया । उसके दरबार में आठ विद्वान (अष्टदिग्गज ) निवास करते थे । अष्टदिग्गज तेलुगू कवियों में पेड्डाना सर्वप्रमुख थे कृष्णदेव ने तेलुगू में ' आमुक्तमाल्यद ' नामक पुस्तक की रचना की , जो कौटिल्य के अर्थशास्त्र की तरह ही राजव्यवस्था पर आधारित थी । • कृष्णदेव राय को उसकी सांस्कृतिक उपलब्धियों के कारण ' आंध्रभोज ' कहा जाता है । उसका काल तेलुग साहित्य का क्लासिकल युग माना जाता है ।
  • डोमिंगो पायस नामक पुर्तगाली यात्री ने विजयनगर साम्राज्य की प्रशंसा करते हुए कृष्णदेव राय को ' एक महान शासक और न्यायप्रिय राजा ' कहा है ।
  • कृष्णदेव राय के शासनकाल में एक अन्य पुर्तगाली यात्री बारबोसा ने भी विजयनगर की यात्रा की । उसने कृष्णदेव राय के श्रेष्ठ प्रशासन और उसके साम्राज्य की समृद्धि का बखान खुले शब्दों में किया । बारबोसा के अनुसार कृष्णदेव राय एक धर्मनिरपेक्ष शासक था
  •  कृष्णदेव राय ने अपनी माता नागल देवी के नाम पर नागलापुर नामक नगर की स्थापना की ।
  • कृष्णदेव राय के उत्तराधिकारी
  •  कृष्णदेव राय की मृत्यु के बाद सत्ता के लिये संघर्ष हुआ और कृष्णदेव राय के पुत्रों के अल्पवयस्क होने के कारण उसका सौतेला भाई अच्युत देवराय शासक बना ।
  •  उसके पश्चात् सदाशिव राय शासक बना , जिस पर उसके मंत्री रामराय का अत्यधिक प्रभाव था ।
  •  रामराय एक योग्य शासन-प्रबंधक था परंतु सफल कूटनीतिज्ञ न था । उसने बहमनी राज्य के खंडों से बने हुए पाँच मुसलमानी राज्यों (अहमदनगर , बीजापुर , गोलकुंडा , बीदर और बरार ) में परस्पर फूट डालने और एक-दूसरे के विरुद्ध सहायता देने की नीति अपनाई ।
  •  कालांतर में रामराय के ख़िलाफ़ दक्षिण भारत के चारों मुस्लिम राज्यों (अहमदनगर , बीजापुर , गोलकुंडा और बीदर ) ने ' मुस्लिम महासंघ ' का निर्माण कर 1565 ई.में तालीकोटा या रक्षसी तंगड़ी के युद्ध में रामराय को परास्त किया ।
  •  उल्लेखनीय है कि संयुक्त मोर्चे में बरार शामिल नहीं था ।  इस युद्ध के पश्चात् रामराय को पकड़कर उसकी हत्या कर दी गई.विजयनगर को लूट कर ध्वस्त कर दिया गया । वर्तमान में कर्नाटक के हंपी नामक स्थान पर इसके अवशेष मिलते हैं ।

अराविडु वंश (1570-1652 ई.)

  • अराविडु वंश की स्थापना 1570 ई.के लगभग तिरूमल ने पेनुकोंडा में की थी । यह दक्षिण भारत के विजयनगर साम्राज्य का चौथा और अंतिम वंश था ।  इस वंश के शासक वेंकट द्वितीय ने चंद्रगिरी को अपनी राजधानी बनाई । इस वंश का अंतिम शासक श्रीरंग तृतीय था । जिसके राज्य में तंजौर , मैसूर , मदुरा आदि स्वतंत्र राज्यों का निर्माण हुआ और विजयनगर साम्राज्य का पतन हो गया ।   

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