भारत में शिक्षा का विकास 19वीं शताब्दी की महत्वपूर्ण घटना है। ब्रिटिश शासन ने भारत में अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए अनेक नीतियों का क्रियान्वयन किया, जिसके फलस्वरूप भारत में राजनीतिक चेतना का विकास हुआ। पश्चिमी शिक्षा और पाश्चात्य जगत से संपर्क की, राजनीतिक चेतना एवं राष्ट्रीयता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अंग्रेजी प्रचार प्रसार ने उस जनभाषा तो नहीं बनाया, लेकिन संपर्क भाषा के रूप में अवश्य स्थापित कर दिया। इस संपर्क भाषा ने यह मुमकिन बनाया कि विभिन्न भाषायी समुदाय के भारतीय आपस में विचारों का आदान-प्रदान कर वैचारिक, बौद्धिक एकता की स्थापना कर सकें।
विभिन्न समयांतरालों में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों के हितों के विरूद्ध उठाए गए कदम की राष्ट्रीयता के विकास में सहायक सिद्व हुए। इस दृष्टि से लार्ड लिटन का शासन विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है लिटन ने भारतीय शस्त्र अधिनियम (आर्म्स एक्ट-1878) द्वारा भारतीयों को निःशस्त्र कर दिया। इससे पहले वर्नाकुलर प्रेस एक्ट (1878) द्वारा भारतीय भाषा में समाचार पत्रों पर कठोर नियंत्रण स्थापित कर दिये गए। सिविल सर्विसेज की परीक्षा केवल इंगलैंड में आयोजित करना तथा आयु-सीमा को घटाकर 21 वर्ष से 19 वर्ष कर देना, ऐसे कदम थे जो भारतीय शिक्षा वर्ग की आकांक्षाओं और हितों पर चोट करते थे। परिणामतः जनता में आक्रोश बढ़ा, जिसने राजनीतिक चेतना के विकास में सहायता की। भारतीय प्रेस एवं साहित्य के प्रचार-प्रसार ने भी राजनीतिक चेतना के विकास में येगदान दिया।