• Have Any Questions
  • +91 6307281212
  • smartwayeducation.in@gmail.com

Study Material



भारत में आधुनिक शिक्षा का विकास

  • ईस्ट इंडिया कंपनी प्रारंभ में एक विशुद्ध व्यपारिक कंपनी थी। प्रारंभ में शिक्षा के लिये जो भी प्रयास किये गए, वे व्यक्तिगत तौर पर किये गए थे, जैसे- वारेन हेस्टिंग्स ने 1781 में अरबी फारसी भाषा के अध्ययन हेतु कलकत्ता मदरसा की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य मुस्लिमों और उनके कानूनों इससे संबंधित अन्य विषयों की जानकारी देना था।
  • 1784 में सर विलियम जोन्स ने कलकत्ता में एशियाटिक सोसायटी आफ बंगाल की स्थापना की, जिसने प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन हेतु महत्वपूर्ण योगदान दिया चार्ल्स  विल्किंस ने भगवद्गीता का अंग्रेजी अनुवाद किया। विलियम जोंस द्वारा कालिदास कृत अभिज्ञानशाकुंतलम का अंग्रेजी अनुवाद किया गया।
  • बनारस के ब्रिटिश रेेजिडेंट जोनाथन डंकन के प्रयत्न से 1791 में बनारस में संस्कृत कालेज की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य  हिंदु विधि एवं दर्शन का अध्यन करना था।
  • कालांतर में लार्ड वेलेजली ने कंपनी के असैन्य अधिकारियों की शिक्षा के लिये 1800 में कलकत्ता में फोर्ट विलियम कालेज की स्थापना की।
  • भारतीय रियासतों के साथ पत्र व्यवहार के लिये कंपनी को अरबी, फारसी एवं संस्कृत के ज्ञाताओं की आवश्यकता थी। इसी समय प्रबुद्ध भारतीयों एवं मिशनरियों ने सरकार पर आधुनिक, धर्म निरपेक्ष एवं पाश्चात्य शिक्षा को प्रोत्साहित करने का दबाव डालना प्रारंभ कर दिया।
  • कलकत्ता मदरसा एवं संस्कृत कालेज में शिक्षा पद्धति के ढाँचे को इस प्रकार तैयार किया गया था कि कंपनी को ऐसे शिक्षित वफादार वर्ग की प्राप्ति हो सके जो शास्त्रीय स्थानीय भाषा के अच्छे ज्ञाता होने के साथ-साथ कंपनी के प्रशासन में मदद कर सकें। न्यायालयों में अंग्रेज न्यायाधीशों को ऐसे परामर्शदाताओं की आवश्यकता थी जो हिंदी, अरबी, उर्दू फारसी और संस्कृत भाषाओं के ज्ञाता हों मुस्लिम हिंदू कानूनों की व्याख्या करने में सक्षम हों।
  • प्रबुद्ध भारतीयों ने निष्कर्ष निकाला कि पाश्चात्य शिक्षा के प्रचार-प्रसार से भारतीय की उनके परंपरागत धर्म में आस्था समाप्त हो जाएगी तथा वे ईसाई धर्म की ओर प्रेरित होने लगेंगे, जिससे भारत में ब्रिटिश समर्थकों का एक बड़ा वर्ग तैयार हो जाएगा।
  • मिशनरियों ने यह निष्कर्ष निकाला की पाश्चात्य शिक्षा के प्रचार-प्रसार से भारतीयों की उनके परंपरागत धर्म में आस्था समाप्त हो जाएगी तथा वे ईसाई धर्म की ओर प्रेरित होने लगेंगे, जिससे भारत में बिटिश समर्थकों का बड़ा वर्ग तैयार हो जायेगा।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक प्रयास 1813 के चार्टर अधिनियम के तहत शुरू किया गया।
  • 1813 के चार्टर एक्ट में गवर्नर जनरल को अधिकार दिया गया कि वह एक लाख रूपये, साहित्य के पुनरूद्धार और भारत में स्थानीय विद्धानों को प्रोत्साहन देने के लिए एवं ब्रिटिश शासित प्रदेशों के वासियों को विज्ञान दर्शन की शिक्षा प्रदान करने हेतु खर्च करें।
  • वस्तुतः ब्रिटिश सत्ता द्वारा भारत में आधुनिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य छोटे प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति हेतु भारतीयों की आवश्यकता थी।
  • राजा राम मोहन राय तथा डेविड हेयर के प्रयत्नों से 1817 में बना हिंदू कालेज पाश्चात्य पद्धति पर उच्च शिक्षा देने का प्रथम कालेज था
  • सरकार ने कलकत्ता, आगरा और बनारस में तीन संस्कृत कालेजों की स्थापना करवाई इसके अतिरिक्त यूरोपीय वैज्ञानिक पुस्तकों का प्राच्य भाषाओं में अनुवाद किया गया।

आंग्ल-प्राच्य विवाद 

  • लोक शिक्षा के लिए स्थापित सामान्य समिति के 10 सदस्यों में दो गुट बन गए थे, जिसमें एक प्राच्य शिक्षा समर्थक था और दूसरा आंग्ल शिक्षा समर्थक।
  • प्राच्य विद्या के समर्थक लोगों का नेतृत्व समिति के सचिव एच.टी. प्रिंसेप ने किया, जिनका समर्थन समिति के मंत्री एच.एच. विल्सन ने भी किया।
  • प्राच्य शिक्षा समर्थकों का तर्क था कि जहाँ रोजगार के अवसरों में वृद्धि के लिए पश्चात्य विज्ञान एवं साहित्य को बढ़ावा परंपरागत भारतीय भाषाओं अर्थात् अरबी, फारसी, में दिया जाना चाहिए, जो भारतीयों की परिचित भाषा थी। उनका तर्क था कि पाश्चात्य ज्ञान विचारों के संपर्क में आने से भारतीय संस्कृति का विनाश हो जाएगा। उन्होंने कहा कि आधुनिक युग की उपलब्धियां और आविष्कार, आधुनिक भौतिक, रसायन, प्राणिशास्त्र के सिद्वांत और निष्कर्ष वेदों में उल्लिखित हें। उन्हें ठीक तरह से समझने और व्याख्या करने की आवश्यकता है।
  • दूसरी ओर पश्चात्य या आंग्ल शिक्षा समर्थकों का नेतृत्व मुनरों एलिफिंस्टन ने किया। इनका समर्थन लार्ड मैकाले ने भी किया उनका तर्क था कि प्राच्य शिक्षा-पद्धति मरणासन्न है और उसको पुनर्जीवित करना असंभव है। अरबी-फारसी और संस्कृत साहित्य में रूढ़िवादी एवं संकुचित विचारों के अतिरिक्त कोई लाभप्रद ज्ञान नहीं है।
  • प्राच्य-पाश्चात्य विवाद की बढ़ती हुई उग्रता देख तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक ने अपनी काउंसिल के विधि सदस्य लार्ड मैकाले को लोक शिक्षा समिति का प्रधान नियुक्त कर उन्हें भाषा संबंधी विवाद पर अपना विवरण-पत्र प्रस्तुत करने को कहा।
  • 2 फरवरी, 1835 को मैकाले ने आंग्ल दल का समर्थन किया उसने अंग्रेजी भाषा साहित्व की प्रशंसा करते हुए भारतीय भाषा साहित्य की आलोचना की और कहा कि यूरोप के एक अच्छे पुस्तकालय की आलमारी का एक कक्ष भारत एवं अरब के समस्त साहित्य से ज्यादा मूल्यवाद है।’’
  • मैकाले भारत में अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से ऐसा वर्ग तैयार करना चाहता था, जो रक्त रंग से भले ही भारतीय हो, परंतु विचार, नैतिक मापदंड और प्रवृति अंग्रेजों जैसी हो अर्थात वह "काली चमड़ी में अंग्रेजों का एक वर्ग चाहता था।’’
  • मैकाले के स्मरणार्थ लेख को 1835 में बेंटिक ने स्वीकार कर आदेश दिया कि भविष्य में सरकार यूरोपीय साहित्य को अंग्रेजी माध्यम द्वारा उन्नत करे तथा शिक्षा संबंधी सभी खर्च इसी उद्देश्य से किए जाएं
  • मैकाले के इन सुझाओं के पश्चात सरकार ने शीघ्र ही स्कूलों कालेजों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बना दिया, जिसके जनसाधारण की शिक्षा उपेक्षित होने लगी। सरकार की योजना उच्च वर्ग को अंग्रेजी शिक्षित बनाने की थी।

शिक्षा का अधोमुखी निस्यंदन सिद्वांत

  • शिक्षा के अधोमुखी निस्यंदन सिद्वांत का तात्पर्य यह था कि शिक्षा समाज के उच्च वर्ग को ही दी जाए, इस वर्ग के शिक्षित होने पर शिक्षा का प्रभाव छन-छन कर जनसाधारण तक पहुँचेगा। किंतु अंग्रेजों की नीति असफल साबित हुई क्योंकि अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने वाला प्रत्येक व्यक्ति सरकारी पद प्राप्त होने के उपरांत कर्तव्य से विमुख ही रहता था।
  • इन अंग्रेजी विद्यालयों में शिक्षित व्यक्ति की विचारधारा में परिवर्तन हुआ तथा वह अपने देश के लोगों की सहानुभूति प्राप्त करने में असफल रहा देशी विद्यालयों की अवहेलना की गई तथा इस प्रकार सार्वजनिक शिक्षा के कार्यों को क्षति पहुंची।

Videos Related To Subject Topic

Coming Soon....