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प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना

  • यह योजना 1 जुलाई, 2015 से प्रारंभ की गई । इसके अन्तर्गत पहले से चल रही सिंचाई योजनाओं; जैसे त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम, समन्वित जलसंभर प्रबंधन कार्यक्रम तथा खेत में जल प्रबंधन को समन्वित कर दिया गया है।
  • इसका उदेश्य समुचित प्रौद्योगिकी एवं पद्धति के माध्यम से जल का दक्ष उपयोग एवं क्षेत्रीय स्तर पर सिंचाई में निवेश सहबद्धता को प्रोत्साहित करना है ।
  • इस योजना के अन्तर्गत 5 वर्षों (2015-16 से 2019-20) के दौरान 50,000 करोड़ रुपये के व्यय का प्रावधान किया गया है ।
  • बजट 2018-19 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना को अन्तर्गत 9429 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है ।
  • इस योजना में केन्द्र एवं राज्यों के व्यय का अनुपात 75:25 है जबकि विशेष राज्यों में यह अनुपात 90:10 है ।

 

एग्री पोर्टल

किसानों को कृषि प्रणाली,उर्वरकों की गुणवत्ता और मृदा स्वास्थ्य कार्ड आदि में सहायता करने तथा अन्य कृषि सम्बंधी जानकारी प्रदान करने के लिए वेब आधारित तीन एग्री पोर्टल जुलाई,  2015 में शुरू किए गए हैं ।

 

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना

  • खाद्य प्रसंस्करण एवं उद्योग मंत्रालय की योजनाओं को पुनर्गठित करने हेतु 3 मई,  2017 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने कृषि समुद्रीय प्रसंस्करण और कृषि-प्रसंस्करण क्लस्टर के विकास हेतु योजना: संपदा (SAMPADA):Scheme for Agro-Marine Processing and Development of Agro-Processing Clusters) को स्वीकृति प्रदान की है । 23 अगस्त, 2017 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमडलीय समिति ने इस योजना का पुनर्नामकरण प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के रूप में करने को स्वीकृति प्रदान की ।
  • 26 मई, 2017 को असम राज्य के धेमाजी जिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान संपदा योजना का शुभारंभ किया । यह योजना 14वें वित्त आयोग के साथ वर्ष 2016-20 तक की अवधि में लागू की जाएगी ।
  • 6000 करोड़ रुपये के आवंटन से प्रारंभ हुई किसान संपदा योजना से 31400 करोड़ रुपये का निवेश होने का अनुमान है । साथ ही योजना से 1,04,125 रुपये मूल्य का 334 लाख मीट्रिक टन प्रसंस्कृत कृषि उत्पादन भी प्राप्त होगा ।
  • इसके अतिरिक्त वर्ष 2019-20 तक देश में 5,30,500 प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रोजगार का सृजन होगा ।

 

ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM)

  • कृषि विपणन में मध्यस्थों की भूमिका को कम से कम करके कृषकों को उनकी उपज का अधिकतम मूल्य दिलाने के उद्देश्य से 14 अप्रैल,  2016 को प्रधानमंत्री ने e-NAM नामक राष्ट्रीय कृषि बाजार का शुभारम्भ किया ।
  • इस बाजार के माध्यम से देश की प्रमुख 21 बड़ी मंडियों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से आपस में जोड़ दिया गया । e-NAM  एकीकृत बाजार प्रणाली है,जिसमें देश की 2477 प्रमुख मडियाँ और 4,843 छोटी मडियाँ आपस में जुड़ जाएँगी । इस बाजार का सभी लेन-देन इलेक्ट्रॉनिक रूप से ऑनलाइन होगा,मंडियों में लाए जाने वाले उत्पाद की गुणवत्ता एवं श्रेणी निर्धारण की व्यवस्था की जाएगी ।

 

पूर्वोत्तर भारत पर विशेष ध्यान

  • खाद्य सुरक्षा संबंधी चुनौतियों के संदर्भ में हरित क्रांति से वंचित क्षेत्रों की उत्पादन क्षमता का दोहन अनिवार्य माना जाने लगा है । परंतु देश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में विशिष्ट भौगोलिक व जलवायु परिस्थितियों वाले पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए वह पैकेज लागू करना संभव नहीं है जो बिहार, बंगाल, ओडिशा या उत्तर प्रदेश व हिस्सों में लागू किया जा सकता है ।
  • प्राय: मांसाहार और झूम खेती के लिए प्रसिद्ध पूर्वोत्तर क्षेत्र में खाद्यान्न आत्मनिर्भरता नहीं है । ऐसे में सम्पूर्ण पूर्वोत्तर भारत के लिए अलग से कृषि सम्बंधी ज्ञान, जानकारी और क्षेत्र विशेष के लिए सार्थक व सुसंगत टेक्नोलॉजी तैयार करना आवश्यक हो गया है । 

नामा ( NAMA )

  • गैर-कृषिगत उत्पाद बाजार पहुंच (Non Agricultural Produce Market Access-NAMA) विश्व व्यापार संगठन के ऐसे प्रावधान हैं,जो सदस्य देशों के बाजारों में गैर-कृषिगत उत्पादों की पहुँच स्थापित करने से जुड़े हैं । परन्तु विकासशील देशों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है । इस विरोध का कारण विकासशील देशों के उत्पाद पर विकसित देशों द्वारा लगाए जाने वाले गैर-प्रशुल्क अवरोधक (Non-tariff Barriers) है ।
  •  दोहा मत्रिस्तरीय वार्ता (नवंबर 2001) में गैर-कृषिगत उत्पादों के व्यापार को अधिक उदारीकृत बनाने हेतु वार्ताओं को आरंभ करने पर सहमति हुई ।
  • वर्ष 2002 के प्रारम्भ में नामा पर वार्ता करने वाले एक दल की स्थापना की गई । वार्ता के दौरान सदस्यों ने गैर-कृषिगत उत्पादों पर लगाए गए सीमा शुल्कों को स्विस सूत्र (Swiss Formula) के अन्तर्गत कम करने का निर्णय लिया । सदस्य देशों के बीच नामा (NAMA) पर वार्ताओं का दौर अब भी जारी है ।

किसान कॉल सेण्टर

  • किसान कॉल सेण्टर 21 जनवरी, 2004 से कार्य कर रही है और यह देश के लगभग सभी राज्यों में 25 विभिन्न स्थानों पर सक्रिय है । इन सभी किसान कॉल सेण्टरों में एक ही टोल फ्री नम्बर- 1880-180-1551 डायल करके बात की जा सकती है ।
  •  इन कॉल सेण्टर पर प्रदान की जाने वाली सुविधाएँ देशभर में सप्ताह के सातों दिन प्रातः 7 बजे से शाम 7 बजे तक उपलब्ध हैं । प्रत्येक किसान कॉल सेण्टर पर किसान कॉल सेण्टर एजेण्ट काम करते हैं,जिसे एल-1 एजेण्ट के रूप में जाना जाता है और वे किसानों के प्रश्नों का तत्काल उत्तर देते हैं ।

 

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना

  • केंद्र सरकार ने 13 जनवरी,  2016 को नई फसल बीमा योजना (NIS) को मंजूरी प्रदान की । इसने वर्तमान सभी फसल बीमा योजनाओं का स्थान लिया है ।
  • इसके अंतर्गत सभी प्रकार की फसलों (रबी, खरीफ, वाणिज्यिक और बागवानी की फसलें) को शामिल किया गया है ।
  • खरीफ (धान या चावल,मक्का,ज्वार,बाजरा आदि) की फसलों के लिए 2% प्रीमियम का भुगतान किया जाएगा ।
  • रबी (गेहूँ,जौ,चना सरसों आदि) की फसल के लिए 1.5% प्रीमियम का भुगतान किया जाएगा ।
  • वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के बीमा के लिए 5% प्रीमियम का भुगतान किया जाएगा ।
  • सरकारी सब्सिडी पर कोई ऊपरी सीमा नहीं है । यदि बचा हुआ प्रीमियम 90% या उससे कम होता है,  तो ये सरकार द्वारा वहन किया जाएगा ।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत,आने वाले 3 वर्षों में सरकार द्वारा 8,000 करोड़ रुपये व्यय करने के साथ ही 50% किसानों को बीमा योजना में कवर करने का लक्ष्य रखा गया है ।

 

नई यूरिया नीति, 2015

  • 13 मई,  2015 को नई यूरिया नीति को स्वीकृति प्रदान की गई । नई यूरिया नीति के प्रमुख उद्देश्यों में स्वदेशी यूरिया उत्पादन में वृद्धि करने और यूरिया इकाइयों की ऊर्जा दक्षता में वृद्धि करने के साथ सरकार पर सब्सिडी के बोझ को कम करना शामिल है ।
  • यह नीति घरेलू क्षेत्र की 30 यूरिया उत्पादन इकाइयों को अधिक ऊर्जा कुशल बनाने में सहायता करेगी और सब्सिडी बोझ को तार्किक बनाने के साथ यूरिया इकाइयों को अपने उत्पादन में वृद्धि करने के लिए प्रोत्साहित करेगी । इससे किसानों को समान अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर समय से यूरिया आपूर्ति सुनिश्चित होगी तथा आयात पर निर्भरता भी कम होगी ।  

 

 

 

 

 

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