फसल चक्र
किसी निश्चित क्षेत्र में, एक निश्चित अवधि के अन्तर्गत फसलों को ऐसे क्रम में उगाया जाना, जिससे कि भूमि की उर्वरा-शक्ति का न्यूनतम ह्रास हो, फसल चक्र कहलाता है ।
फसल चक्र के निर्धारण में यह यह ध्यान रखा जाता है कि, कम गहरी जड़ वाली फसलों के बाद गहरी जड़ वाली फसल उगाना चाहिए ; जैसे-अरहर के बाद गेहूँ और दलहनी फसल के बाद गैर-दलहनी फसलें बोना चाहिए । अधिक खाद एवं पानी की आवश्यकता वाली फसलों के बाद कम खाद व कम पानी की आवश्यकता वाली फसलों की खेती करनी चाहिए । फसल चक्र को अपनाने से मृदा की उर्वरा शक्ति बनी रहती है तथा रोग,कीट एवं खरपतवार के नियंत्रण में सहायता मिलती है । इसके अतिरिक्त सीमित साधनों का अधिकतम उपयोग कर अधिक उत्पादन करना संभव होता है ।
शस्य प्रतिरूप के आधार पर देश में तीन प्रकार की कृषि पायी जाती है-एक फसली, दो फसली एवं बहु फसली । फसल चक्र सघनता ज्ञात करने का सत्र निम्नलिखित है-
फसल चक्र में फसलों की संख्या
फसल चक्र सघनता = ----------------------------------------x 100%
फसल चक्र के वर्ष
फसल चक्र के उदाहरण
एक वर्षीय:चरी,बरसीन, धान-गेहूँ-मूंग एवं टिण्डा-आलू-मूली करेला ।
द्विवर्षीय: कपास-मटर-परती-गेहूँ,चरी-गेहूँ कम चरी-मटर ।
तीन वर्षीयः हरी खाद-आलू-गन्ना-पेडी,मूंगफली-अरहर गन्ना मूंग-गेहूँ ।
भारत में फसलों का वर्गीकरण
भारतीय कृषि प्रणाली में वर्ष में मुख्यतः तीन फसलें उगाई जाती हैं,जो निम्नलिखित हैं-
रबी की फसल
खरीफ की फसल
जायद की फसल
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