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Study Material



 

मानव पर्यावरण संबंध

 

प्रारंभ में आदिमानव की भौतिक पर्यावरण की कार्यमकता दो प्रकार की होती थी -

  1. ग्राही
  2. दाता

मानव तथा पर्यावरण के मध्य बदलते संबंधो को प्रागैतिहासिक काल से वर्तमान काल तक 4 चरणों  विभाजित किया जा सकता है-

  • आदिमानव द्वारा आखेट करना एवं भोजन संग्रहण करना
  • आदिमानव द्वारा कृषि कार्य
  • आदिमानव द्वारा पशुपालन करना
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी  विकास का काल

 

मानव पर पर्यावरण का प्रभाव

 

जैविक – भौतिक सीमाएं

जैविक दृष्टि से मानव का शरीर कुछ निश्चित पर्यावरणीय दशाओं में ही अच्छी तरह कार्य करने हेतु सक्षम होता है, अत: मौसम व जलवायु के कारक सभी जीवो व पौधों के जीवन पर विशेष प्रभाव डालते है।

 

संसाधनों की सुलभता

संसाधनों की सुलभता मनुष्य के जीवन को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करती है, इससे ही मनुष्य अथवा किसी देश की आर्थिक क्षमता, सामाजिक संगठन, सामाजिक स्थिरता व अन्तराष्ट्रीय संबंध भी निर्धारित होते है।

आचारपरक नियंत्रण

विभिन्न पर्यावरणीय कारक मनुष्य की जाति विविधता को निर्धारित करते है, तथा मनुष्य के चिंतन की विचारधारा, संस्कृति, आचार व व्यवहार को प्रभावित करते है।

 

पर्यावरण पर मानव का प्रभाव

निम्नलिखित मानवीय गतिविधयों का पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है, जिनमे निम्न गतिविधियाँ शामिल है –

  • खनन (Mining)
  • औद्योगीकरण (Industrialization)
  • आधुनिक कृषि (Modern agriculture)
  • शहरीकरण (Urbanization)
  • आधुनिक प्रौद्योगिकी (Modern technology)

 

पर्यावरणीय समस्याएं एवं समाधान

  • ज्यादातर पर्यावरणीय समस्याएं पर्यावरण अवनयन व जनसंख्या द्वारा संसाधनों के उपयोग में वृद्धि से उत्पन्न हुई हैं । पर्यावरणीय समस्याएं वातावरण में होने वाले परिवर्तन है जो अवांछनीय हैं एवं स्थानीय, क्षेत्रीय तथा वैश्विक स्तर पर पर्यावरण की  धारणीयता के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं । स्थानीय स्तर पर मृदा प्रदूषण,जल जनित रोग, वन्यजीवों की प्रजातियों का विलुप्त होना इनमें प्रमुख है ।  वहीं क्षेत्रीय स्तर पर बाढ़, सूखा, चक्रवात, अम्ल-वर्षा व तेल रिसाव के कारण पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं ।
  • वैश्विक स्तर पर प्रदूषण जैव विविधता क्षरण, भूमंडलीय तापन, ओजोन क्षरण, जलवायु परिवर्तन तथा प्रजातियों का विनाश होना प्रमुख पर्यावरणीय समस्या के रूप में विश्व के सामने एक बड़ा खतरा है । वर्तमान पर्यावरणीय समस्याएं संसाधनों के कुप्रबंधन का परिणाम हैं । इन समस्याओं का स्वरूप केवल स्थानीय ना होकर वैश्विक होता है अतः इसके समाधान के प्रयास भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया जाना चाहिए । पर्यावरण की समस्या का समाधान तभी किया जा सकता है जब इस समस्या को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक तंत्र का अभिन्न हिस्सा बनाया जाए ।

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