पठार (The Plateau)
वैसी उच्च भूमि (highland) को पठार कहा जाता है , जिसका शिखर वाला भाग काफी विस्तृत एवं सपाट हो । पठारों के किनारे पर काफी तीव्र ढाल (Steep Slope) पाए जाते हैं ।
धरातल का विशिष्ट स्थल रूप , जो अपने आस - पास के स्थल से पर्याप्त ऊँचा होता है तथा शीर्ष भाग चौड़ा और सपाट होता है । सामान्यतः पठार की ऊँचाई 300 से 500 फीट होती है । कुछ अधिक ऊँचाई वाला पठार है – तिब्बत का पठार ( 16,000 फीट ) , बोलीविया का पठार ( 12000 फीट ) , कोलम्बिया का पठार ( 7,800 फीट ) ।
पठारों का वर्गीकरण (Classification of Plateau)
1. निर्माण की प्रक्रिया के अनु सार
(i) अन्तर्जात शक्तियों द्वारा उत्पन्न पठारः पटल विरूपणी पठार (Diastrophic Plateau): भू-संचलन द्वारा भू-पृष्ठ का कुछ भाग ऊपर उठकर जब पठारों का रूप धा रण कर लेता है , तो उसे पटल विरूपणी पठार कहा जाता है । जैसे-तिब्बत का पठार, पैटागोनिया का पठार, दक्षिण भारत का पठार आदि ।
भौगोलिक स्थिति (Geographical Situation) के आधार पर पटल विरूपणी पठारों को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है:
(क) अन्तरपर्वतीय पठार (Intermontane Plateau): ये पठार चारों तरफ से पर्वतों से घिरे होते हैं ।
(ख) महाद्वीपीय पठार (Continental Plateau): ये काफी विस्तृत एवं अति प्राचीन पठार हैं । इन्हें शील्ड (Shield) कहा जाता है ।
(ग) पर्वतपदीय पठार (Piedmont Plateau): ये पठार पर्वत से सटे हुए लंबी उच्च भूमि के रूप में मैदान या समुद्र तक फैले हुए हैं ।
(घ) ज्वालामुखी या लावा पठार (Volcanic Plateau): दरारी उद्भेदन (Fissure Eruption) के फलस्वरूप निकलने वाले लावा के द्वारा इस पठार का निर्माण होता है । इस प्रकार के पठार बेसाल्ट चट्टानों द्वारा निर्मित होते हैं एवं इनका रंग काला होता है ।
(ii) बहिर्जात शक्तियों द्वारा निर्मित पठार
(क) हिमानीकृत पठार: कभी-कभी हिमानी अपनी अपरदन क्रिया द्वारा उच्च पर्वतीय क्षेत्रों को एवं निक्षेपण क्रिया द्वारा निम्न स्थलखंडों को पठारों में परिवर्तित कर देती है ।
(ख) जल द्वारा निर्मित पठारः कभी-कभी नदियां उच्च मैदानी भागों को अधिक गहराई में काटकर घाटियों के बीच चौडा समतल निम्न पठार का निर्माण करती हैं, तो कभी नदियों द्वारा अपरदित या निक्षेपित क्षेत्र भू-संचलन के फलस्वरूप ऊपर उठकर पठार में परिवर्तित हो जाता है । उदाहरणः भारत में विध्यन , चेरापूंजी , मैसूर एवं रांची का पठार तथा म्यांमार के शान पठार का निर्माण इसी प्रकार हुआ है ।
(ग) पवन द्वारा निर्मित पठार: पवन द्वारा मिट्टी के बारीक कणों के निक्षेपण के फलस्वरूप भी पठार का निर्माण होता है । पाकिस्तान का पोटवार पठार एवं चीन का लोएस का पठार इसी प्रकार बना है ।
2. आकृति के अनुसार
(i) गुम्बदाकार पठार-छोटानागपुर का पठार ।
(ii) विच्छेदित (Dissected) पठार-प्रायद्वीपीय भारत का पठार ।
(iii) सीढ़ीनुमा (Step Like) पठार-विंध्य एवं कैमूर का पठार ।
(iv) सपाट पठार तिब्बत का पठार ।
(v) पुनर्युवित पठार (Rejuvenated Plateau)-रांची का पाट (Pat) पठार, यू.एस.ए. का मिसौरी पठार ।
3. पृष्ठीय धरातल के आधार पर
(i) विषम पठार- अप्लेशियन का पठार ।
(ii) गिरिप्रस्थ (Tableland) पठार- महाबलेश्वर पठार, पंचगनी पठार ।
4. जलवायु के आधार पर
(i) शुष्क पठार-पोटवार का पठार, अरब का पठार, पैटागोनिया का पठार आदि ।
(ii) आर्द्र पठार-असम का पठार, मेघालय का पठार ।
(iii) हिम से ढके हुए (Icecaped) पठार-ग्रीनलैंड, अंटार्कटिका ।
5. अपरदन चक्र के आधार पर
(i) तरुण (Young) पठार- यू.एस.ए. का इदाहो (Idaho) पठार, कोलोरेडो का पठार ।
(ii) प्रौढ़ (Mature) पठार- अप्लेशियन का पठार ।
(iii) जीर्ण (Old) पठार- मेसा (डमें) का पाया जाना जीर्ण पठार का महत्त्वपूर्ण लक्षण है । उदाहरण-रांची का पठार ।
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