सौरमण्डल की संरचना
‘सौरमण्डल’ सूर्य, पृथ्वी सदृश ग्रहों, विभिन्न उपग्रहों तथा अन्य खगोलीय पिंडों का एक परिवार है, जिसमें सूर्य एक तारा है तथा इसके आठ ज्ञात ग्रहों में क्रमशः बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरूण व वरूण है। ये ग्रह परवलयाकार मार्ग में सूर्य की परिक्रमा करते हैं।
सूर्य हमारे सौरमण्डल के केन्द्र में स्थित है, जो सौर परिवार के लिए ऊर्जा एवं प्रकाश का प्रमुख स्रोत है। इस आधार पर खगोलीय पिंडों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है-
- ऐसे खगोलीय पिंड जिनके पास अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश होता है, जैसे-तारे।
- ऐसे खगोलीय पिंड जिनके पास अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश नहीं होता, ये प्रकाश के लिए सूर्य समान तारों पर निर्भर रहते हैं, जैसे-ग्रह।
सूर्य
- सूर्य एक मध्यमा आयु का मध्यम तारा है। इसका व्यास लगभग 13.9 लाख किमी. है। सूर्य की वर्तमान आयु लगभग 4.7 अरब वर्ष है।
- सूर्य के द्रव्यमान का 70.6 प्रतिशत भाग हाइड्रोजन और 27.4 प्रतिशत भाग हीलियम से बना है।
- सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर लगभग 8 मिनट 20 सेकंड में पहुंचता है।
- सूर्य अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमता है। इसकी घूर्णन अवधि भूमध्य रेखा पर 25 पृथ्वी दिवस है।
- सूर्य का अपना कोई चंद्रमा नहीं है। साथ ही, सूर्य पर किसी छल्ले की भी विद्यमानता नहीं है।
- सूर्य की संरचना को छः क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है-केन्द्र, विकिरण क्षेत्र, संवहनी क्षेत्र, प्रकाशमण्डल, क्रोमोस्फीयर एवं कोरोना।
- सूर्य के केन्द्र का तापमान 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस है जो नाभिकीय संलयन के अनुकूल है। सूर्य के केन्द्र का तापमान बाह्य परत (प्रकाशमण्डल) से अधिक होता है।
- सूर्य का जो भाग हमें दृष्टिगोचर होता है, उसे ‘प्रकाशमण्डल’ कहते हैं। इसका तापमान लगभग 5,5000 सेल्सियस है। प्रकाशमण्डल में ही सौरकलंक पाये जाते हैं।
- क्रोमोस्फीयर का आरंभ प्रकाशमण्डल की उस ऊपरी परत से होता है जहाँ ऋणात्मक हाइड्रोजन कम हो जाते हें। क्रोमोस्फीयर में गैसों के उठते प्रवाह को ‘स्पिक्यूल’ कहा जाता है। कभी-कभी इस मण्डल में तीव्र गहनता का प्रकाश उत्पन्न होता है, जिसे ‘सौर ज्वाला’ की संज्ञा दी जाती है।
- क्रोमोस्फीयर और कोरोना के बीच 100 किलोमीटर की एक संकीर्ण पट्टी पाई जाती है जहाँ पर तापमान अचानक से बढ़ता है।
- प्रकाशमण्डल का बाहरी भाग, जो केवल सूर्यग्रहण के समय दिखाई पड़ता है, ‘किरीट’ या ‘कोरोना’ कहलाता है।
- सम्पूर्ण सौर तंत्र से होकर प्रवाहित होने वाली पवन को ‘सौर पवन’ कहते हैं।
फोटोस्फीयर
- यह एक गैसीय संरचना है, जिसमें 90 प्रतिशत हाइड्रोजन, 9 प्रतिशत हीलियम तथा 1 प्रतिशत भारी तत्व होते हैं।
- फोटोस्फेयर ,सूर्य की बाह्य प्रकाशित सतह को कहा जाता है। यहां फोटान की अधिकता पाई जाती है।
- फोटोस्फीयर की सतह समान मोटाई वाली न होकर असमान है, जिसमें अनगिनत छोटे-छोटे प्रकाशित कण होते हैं, इन्हें ‘ग्रैनूल’ कहा जाता है।
- फोटोस्फीयर में ठंडे एवं काले धब्बों को ‘सौरकलंक’ या ‘सौरधब्बा’ कहते हैं तथा गर्म एवं प्रकाशित भाग को ‘फैकुला’ कहा जाता है।
- सौरकलंक की सर्वप्रथम खोज ‘गैलीलियो’ ने की थी।प्रकाशमण्डल में पाये जाने वाले सौरकलंक में काले केन्द्र को अम्ब्रा कहते हैं, तथा इसके चारों ओर हल्के रंग का क्षेत्र होता है, जिसे ‘पुनुम्ब्रा’ कहते हैं।
ग्रह
- अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने वर्ष 2006 में ग्रह की नई परिभाषा दी जिसके अनुसार, ग्रह उन्हीं आकाशीय पिंडों को माना जाएगा, जो-
- अपनी निश्चित कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करते हो;
- ऐसे खगोलीय पिंड जो अपनी गुरूत्वाकर्षण शक्ति से अपनी कक्षा के आस-पास अवस्थित अन्य पिंडों (उल्का पिंड, क्षुद्र ग्रह, धूमकेतु) को या तो खुद में समाहित कर ले या कक्षा से पूर्णतया बाहर कर दे या फिर कुछ उनमें से चंद्रमा बन जाये;
- ऐसा खगोलीय पिंड जिसमें पर्याप्त द्रव्मान हो ताकि वह अपनी गुरूत्वाकर्षण शक्ति के माध्यम से अपने लगभग गोलाकार स्वरूप को संतुलित रख सकें।
- ग्रहों के पास अपना कोई प्रकाश या ऊष्मा नहीं होती। ये सूर्य से ही ऊष्मा एवं प्रकाश प्राप्त करते हैं।
- ग्रहों का अपने अक्ष पर घूमना ‘घूर्णन’ या ‘परिभ्रमण’ कहलाता है जबकि उनका सूर्य के चारों तरह चक्कर लगाना ‘परिक्रमण’ कहलाता है।
- वर्तमान समय में सौरमण्डल में पृथ्वी सहित 8 ग्रह हैं, जिनका वर्गीकरण निम्न है-
बुध
- यह सूर्य के सबसे निकट का ग्रह है एवं सौरमण्डल का सबसे छोटा ग्रह है।
- यह सूर्य के परिक्रमा सबसे कम समय (88 दिन) में पूरा कर लेता है।
- इसकी कक्षीय गति सौरमण्डल के अन्य ग्रहों की अपेक्षा सर्वाधिक है। यह 48 किमी. प्रति सेकंड की गति से सूर्य की परिक्रमा करता है। (कुछ अन्य स्रोतों में 50 किमी. प्रति सेकंड)
- यहाँ दिन अत्यधिक गर्म तथा रातें बर्फीली होती हैं, अतः बुध का तापांतर अन्य ग्रहों की अपेक्ष सर्वाधिक है।
- बुध के पास अपना कोई उपग्रह नहीं है। बुध पर वायुमण्डल का अभाव है।
शुक्र
- यह पृथ्वी के सर्वाधिक नजदीक है, जो सूर्य एवं चंद्रमा के बाद तीसरा सबसे चमकीला खगोलीय पिंड है।
- शाम को पश्चिम में एवं सुबह को पूरब में दिखाई देने के कारण ही इसे क्रमशः ‘सांझ का तारा’ तथा ‘भोर का तारा’ भी कहते हैं।
- इसे ‘पृथ्वी की बहन’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह आकार, घनत्व एवं व्यास में पृथ्वी के लगभग बराबर है।
- शुक्र के वायुमण्डल में अधिकतम कार्बन डाइआक्साइड (90-95 प्रतिशत) होने के कारण ही इस पर ‘प्रेशरकुकर’ जैसी स्थिति उत्पन्न होती है इसलिए यह सबसे गर्म ग्रह है। इसके चारों तरफ सल्फर डाइआक्साइड के घने बादल हैं।
- ‘शुक्र एवं अरूण’ की परिक्रमण दिशा विपरीत (पूरब से पश्चिम) अर्थात दक्षिणावर्त है, जबकि अन्य सभी ग्रहों की वार्मावर्त है।
- बुध के समान इसका भी कोई उपग्रह नहीं है।
- इसका परिक्रमण काल 225 दिनों (अन्य स्रोतों में 255 दिन) का तथा घूर्णन काल 243 दिनों का होता है अर्थात हमारे सौरमण्डल के अन्य ग्रहों की अपेक्षा सर्वाधिक लंबे दिन-रात यहां होते हैं।
पृथ्वी
- पृथ्वी सौरमण्डल का एकमात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन है।
- आकार की दृष्टि से यह पांचवा बड़ा ग्रह तथा पार्थिव ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है, वहीं सूर्य से दूरी के क्रम में तीसरे स्थान पर है।
- पृथ्वी अपने अक्ष पर 23½ डिग्री झुकी हुई है। धु्रवों के पास थोड़ी चपटी होने के कारण इसके आकार को ‘भूआभ’ कहा जाता है।
- पृथ्वी पर जल की अधिकता होने के कारण अंतरिक्ष से देखने पर यह ‘नीला’ दिखाई देता है, इसलिए इसे ‘नीला ग्रह’ भी कहते हैं।
- पृथ्वी का घूर्णन काल 23 घंटे, 56 मिनट एवं 4 सेकंड अर्थात लगभग एक दिन का होता है तथा सूर्य के चारों ओर एक परिक्रमण 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट एवं 46 सेकंड अर्थात लगभग एक वर्ष का होता है। पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में लगे समय को ‘सौर वर्ष’ कहते हैं।
- सौरमण्डल में सक्रिय ज्वालामुखी पाये जाने वाले पांच ग्रहों में से यह भी एक है। इसके अलावा बृहस्पति, शनि, शुक्र और वरूण ग्रहों पर सक्रिय ज्वालामुखी हैं।
- ‘चंद्रमा’ पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह है।
मंगल
- यह ग्रह आकार की दृष्टि से सातवां बड़ा तथा सूर्य से दूरी के क्रम में चैथे स्थान पर है।
- इसे सूर्य की परिक्रमा करने में लगभग 687 दिन लगते हैं।
- मंगल आंतरिक ग्रहों में सबसे बाहरी ग्रह है।
- मंगल ग्रह की मिट्टी में ‘आयन आक्साइड’ की अधिकता होने के कारण यह लाल रंग का दिखाई देता है इसीलिए मंगल को ‘लाल ग्रह’ भी कहते हैं।
- मंगल के वायुमण्डल में 95 प्रतिशत कार्बन डाइआक्साइड तथा अन्य गैसों के रूप में नाइट्रोजन, आर्गन व कार्बन मोनोआक्साइड जैसे गैसों की विद्यमानता पाई जाती है।
- अपने अक्ष पर 25 डिग्री झुके होने के कारण मंगल पर पृथ्वी के समान ही लगभग समान अवधि के दिन और रात होते हैं।
- ‘फोबोस’ तथा ‘डीमोस’ मंगल के दो उपग्रह हैं तथा डीमोस सौरमण्डल का सबसे छोटा उपग्रह है।
- सौरमण्डल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी ‘ओलम्पस मोन्स’ तथा सबसे ऊँचा पर्वत ‘निक्स ओलंपिया मंगल ग्रह पर ही मौजूद हैं। निक्स ओलंपिया पर्वत एवरेस्ट से तीन गुना ऊँचा है।
बृहस्पति
- यह सौरमण्डल का सबसे बड़ा और सबसे भारी ग्रह है तथा सूर्य से दूरी के क्रम में पांचवें स्थान पर है।
- यह लगभग 12 वर्षों में सूर्य की परिक्रमा पूर्ण करता है। अपने अक्ष पर यह लगभग 9 घंटे, 56 मिनट में एक चक्कर लगाता है।
- यह सर्वाधिक उपग्रहों वाला ग्रह है, हालांकि इसके कुल 79 उपग्रहों में से ज्यादातर उपग्रह बहुत छोटे आकार के हैं।
- गैनीमीड, कैलिस्टो, लो (आयो) तथा यूरोपा इसके सबसे बड़े उपग्रह हैं तथा गैनीमीड इस सौरमण्डल का सबसे बड़ा उपग्रह है।
- हमारे सौरमण्डल में सर्वाधिक सक्रिय ज्वालामुखी वाला पिंड है।
- बृहस्पति ग्रह की खोज गैलीलियो ने की थी।
- बृहस्पति का पलायन वेग सौरमण्डल का सर्वाधिक अर्थात 59.6 किमी./सेकंड है।
- इसके बड़े आकार के कारण इसे ‘तारा सदृश’ ग्रह भी कहा जाता है तथा इसे ‘मास्टर आफ गाड्स’ की भी उपमा प्रदान की गई है।
- यह तारा एवं ग्रह दोनों के गुणों से युक्त है, क्योंकि इसके पास स्वयं की रेडियों ऊर्जा है और इसके वायुमण्डल में हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन एवं अमोनिया गैसें पाई जाती हैं इसलिए बृहस्पति को ‘लघु सौर तंत्र’ भी कहते हैं।
- नासा द्वारा बृहस्पति के अध्ययन हेतु 2011 में ‘जूनों’ नामक अंतरिक्ष यान भेजा गया था।
शनि
- यह आकार में दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है तथा सूर्य से दूरी के क्रम में छठवें स्थान का ग्रह है।
- इसके चारों ओर वलयों का पाया जाना इसकी प्रमुख विशेषता है।
- इसका घनत्व 0.7 ग्राम प्रति घन सेमी. है जो अन्य सभी ग्रहों में सबसे कम है।
- शनि का ऊपरी वायुमण्डल पीली अमोनिया कणों की परत से घिरा है, जिससे यह पीले रंग का दिखाई देता है।
- लगभग प्रत्येक 14.7 वर्ष में एक खगोलीय घटना में शनि ग्रह के छल्ले कुछ समय के लिए लुप्त प्रतीत होते हैं, जिसे ‘रिंग-क्रासिंग’ की घटना कहते हैं।
- इसके वायुमण्डल में भी बृहस्पति के समान हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन तथा अमोनिया गैसें पाई जाती हैं। इस कारण इसे ‘गैसों का गोला’ भी कहते हैं।
- शनि का घूर्णन काल 10 घंटा, 40 मिनट तथा परिक्रमण काल 29 वर्ष (कुछ स्रोतों में 29 वर्ष, 5 माह) का होता है।
- शनि ग्रह का सबसे पहला खोजा गया उपग्रह ‘टाइटन’ है।
- इसके 82 उपग्रह हैं, जिसमें ‘एंसेलेडस’ नामक उपग्रह पर सक्रिय ज्वालामुखी पाये गए हैं।
- यह अंतिम ग्रह है, जिसे आंखों से देखा जा सकता है।
- ‘टाइटन’ शनि का सबसे बड़ा उपग्रह जबकि सौरमण्डल का द्वितीय बड़ा उपग्रह है।
- ‘फोबे उपग्रह’ शनि के अन्य उपग्रहों की अपेक्षा विपरीत दिशा में परिभ्रमण करता है।
अरूण
- यह ग्रह आकार में तीसरा बड़ा तथा सूर्य से दूरी के क्रम में सातवें स्थान पर है।
- इस ग्रह की खोज ‘सर विलियम हर्शेल’ ने की थी।
- इसे सूर्य की परिक्रमा करने में 84 वर्ष लगते है। इस ग्रह के 27 ज्ञात उपग्रह हैं।
- मीथेन गैस की अधिकता के कारण यह नीले-हरे रंग का दिखाई देता है।
- अक्षीय झुकाव अधिक होने के कारण इसे ‘लेटा हुआ ग्रह’ भी कहते हैं।
- यह अपने अक्ष पर पूरब से पश्चिम (दक्षिणावर्त) दिशा में घूमता है, इसलिए यहां सूर्योदय पश्चिम में एवं सूर्यास्त पूरब में होता है।
- अरूण ग्रह में शनि की तरह चारों ओर वलय पाये जाते हैं।
वरूण
- यह ग्रह आकार में चैथा तथा सूर्य से दूरी के क्रम में आठवें स्थान पर है।
- इसे सूर्य की परिक्रमा करने में लगभग 165 वर्ष (कुछ स्रोतों में 164 वर्ष) लगते हैं
- जॉन काउच एडम्स, अर्बेन ली वेरियर ने इस ग्रह की परिकल्पना तैयार की। 1846 ई. में ली वेरियर के मापदंडों के आधार पर (एडम्स ने कभी अपनी परिकल्पना प्रकाशित नहीं की) जॉन गाले ने इस ग्रह की खोज की।
- यह हरे-नीले रंग का प्रतीत होता है तथा सर्वाधिक ठंडा ग्रह है।
- इसके 13 ज्ञात उपग्रह हैं। ‘ट्राइटन’ इसका प्रमुख उपग्रह है। ट्राइटन पर उष्णोत्स (गीजर) के प्रमाण मिले हैं।
ग्रहों का विभाजन
आंतरिक पार्थिव ग्रह- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल
बाह्य/जोवियन ग्रह- बृहस्पति, शनि, अरूण, वरूण
क्रम (सूर्य से दूरी) के अनुसार- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरूण, वरूण
आकार के अनुसार (बढ़ते क्रम में)- बुध, मंगल, शुक्र, पृथ्वी, वरूण, अरूण, शनि, बृहस्पति
पार्थिव एवं जोवियन ग्रहों में अन्तर
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पार्थिव ग्रह
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जोवियन ग्रह
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- पार्थिव ग्रहों का निर्माण सूर्य के निकट हुआ।
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- जोवियन ग्रहों का निर्माण सूर्य से अधिक दूरी पर हुआ।
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- पार्थिव ग्रहों की सूर्य से निकटता के कारण यहां अत्यधिक तापमान है।
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- जोवियन ग्रहों के सूर्य से कम निकटता के कारण यहां पार्थिव ग्रहों की अपेक्षा तापमान कम है।
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- सूर्य के निकट सौर वायु अधिक शक्तिशाली होने के कारण यह पार्थिव ग्रहों से धूलकण और गैसों को उड़ाकर ले गई। अर्थात इन ग्रहों में इनकी अत्यधिक कमी पाई जाती है।
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- सूर्य से अधिक दूरी पर सौर वायु शक्ति कम प्रभावशाली होती है, अतः जोवियन ग्रहों पर धूलकण एंव गैसों की अधिकता पाई जाती है।
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- पार्थिव ग्रहों के छोटे आकार के कारण इनकी गुरूत्वाकर्षण शक्ति कम है, जिससे यह गैसों को अपनी ओर अधिक मात्रा में आकर्षित नहीं कर पाये।
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- जोवियन ग्रहों के बड़े आकार के कारण इनकी गुरूत्वाकर्षण शक्ति अधिक है, जिस कारण गैसों का संकेंद्रण यहां अधिक पाया गया।
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- इसके साथ-साथ इन ग्रहों पर बाहरी धातु, जैसे-लोहा और निकेल अत्यधिक मात्रा में हैं।
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- जोवियन ग्रहों के उदाहरण-बृहस्पति, शनि, यूरेनस (अरूण) तथा नेप्च्यून (वरूण) हैं। ये गैसीय ग्रह हैं।
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- पार्थिव ग्रह के उदाहरण-बुध, शुक्र, पृथ्वी तथा मंगल हैं। ये ठोस ग्रह हैं।
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गोल्डीलाक्स जोन
- ‘गोल्डीलाक्स जोन’ को निवास योग्य क्षेत्र या जीवन क्षेत्र (पृथ्वी सदृश) भी कहा जाता है। किसी तारे से उस दूरी वाले क्षेत्र को गोल्डीलाक्स जोन कहा जाता है, जहां पर किसी ग्रह की सतह पर तरल जल काफी मात्रा में मौजूद हो सकता है।
- यह निवास योग्य क्षेत्र अंतरिक्ष में किन्हीं दो क्षेत्रों का प्रतिच्छेदन बिन्दु क्षेत्र होता है, जिन्हें जीवन हेतु सहायक होना चाहिए।
बौने ग्रह
- ऐसे ग्रह जो आकार, द्रव्यमान, गुरूत्वाकर्षण बल एवं अपने परिभ्रमण चक्र में अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (आई.ए.यू.) द्वारा 2006 में निर्धारित ग्रहों की परिभाषा से भिन्नता रखते हों, उन्हें बौने ग्रह की श्रेणी में रखा जाता है।
- वर्तमान में सेरेस, प्लूटो (यम), एरीस, हौमिया, मेकमेक आदि को बौना ग्रह माना जाता है।
प्लूटो
- प्लूटो की खोज 1930 में ‘क्लाइड टाबैग’ ने की थी। 2006 से पहले तक इसे सौरमण्डल का नौवां एवं सबसे छोटा ग्रह माना जाता था।
- वर्ष 2006 में ‘प्राग’ में हुए अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (आई.ए.यू.) के सम्मेलन में ग्रहों की निर्धारित नई परिभाषा के आधार पर प्लूटो से ग्रह का दर्जा छीन लिया गया।
- प्राग सम्मेलन में 75 देशों के लगभग 2,500 वैज्ञानिकों ने ग्रहों की नई परिभाषा दी। उनके अनुसार, ऐसे पिंड जिसमें पर्याप्त गुरूत्वाकर्षण बल हो जिससे वह गोल स्वरूप धारण कर सके, वह सूर्य का चक्कर काटता हो, साथ ही उसके आस-पास अन्य खगोलीय पिंडों की अधिक भीड़-भाड़ न हो, ग्रहों के दर्जे में आएंगे।
- प्लूटो को ग्रह की श्रेणी से अलग करने के पीछे वैज्ञानिकों का तर्क था कि यह नेप्च्यून की कक्षा से होकर गुजरता है, इसका गुरूत्वाकर्षण बल कम है, व आकार की दृष्टि से यह कई उपग्रहों से भी छोटा है। अतः इसे ग्रह की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
- ग्रह की श्रेणी से अलग किये जाने के बाद प्लूटो को सौरमण्डल के बाहरी ‘क्यूपर घेरे’ की सबसे बड़ी संरचना (खगोलीय वस्तु) माना जा रहा है।
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ग्रह
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घूर्णन की अवधि
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परिक्रमण की अवधि
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बुध
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58.65 दिन
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88 दिन
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शुक्र
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243 दिन
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225 दिन (कुछ अन्य स्रोतों में 255 दिन)
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पृथ्वी
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23 घंटे, 56 मिनट, 4 सेकंड
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365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट, 46 सेकंड
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मंगल
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24 घंटे, 37 मिनट, 23 सेकंड
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लगभग 687 दिन
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बृहस्पति
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9 घंटे, 55 मिनट
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लगभग 12 वर्ष
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शनि
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10 घंटे, 40 मिनट
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लगभग 29 वर्ष
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अरूण (यूरेनस)
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17 घंटे, 14 मिनट
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लगभग 84 वर्ष
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वरूण (नेप्च्यून)
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16 घंटे
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165 वर्ष (कुछ स्रोतों में 164 वर्ष)
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विभिन्न ग्रहों पर उपस्थित गैसें
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ग्रह
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गैसें
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बुध
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(वायुमण्डल रहित), हाइड्रोजन का हल्का आवरण
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शुक्र
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CO2, SO2
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पृथ्वी
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N2, O2, CO2, अन्य
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मंगल
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CO2, N2, Ar
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बृहस्पति
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He, H2, CH4, NH3
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शनि
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NH3, CH4
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अरूण
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CH4
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वरूण
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CH4
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प्राकृतिक उपग्रह
- वे आकाशीय पिंड जो अपने ग्रह की परिक्रमा करने के साथ-साथ सूर्य की भी परिक्रमा करते हैं, ‘उपग्रह’ कहलाते हैं।
- ग्रहों की भांति इनमें भी अपनी चमक (प्रकाश) नहीं होती। अतः ये भी सूर्य (तारों) के ही प्रकाश से प्रकाशित होते हैं।
- सबसे अधिक उपग्रह बृहस्पति के हैं तथा ‘बुध एवं शुक्र’ का कोई उपग्रह नहीं है।
धूमकेत/पुच्छल तारे
- धूमकेतु आकाश में धूल, बर्फ और गैस से निर्मित पिंड होते हैं, जो सूर्य के परवलयाकार पथ पर अनियमित परिक्रमा करते हैं। जब भी कोई धूमकेतु सूर्य के नजदीक पहुंच जाता है तो गर्म होने के बाद उनसे गैसों के फुहारे निकलने लगते हैं, जिससे पूंछ जैसी संरचना का निर्माण होता है, इसे ही ‘पुच्छल तारा’ कहते हैं।
- पुच्छल तारे की पूंछ सूर्य के विपरीत दिशा में रहती है। ‘हैली’ एक पुच्छल तारा है। यह पृथ्वी से प्रायः 76 वर्ष बाद दिखाई देता है, जो पृथ्वी के पास से गुजरने वाले किसी भी धूमकेतु के लिए सबसे कम अवधि है।
इस प्रकार धूमकेतु के तीन भाग होते हैं-
नाभि
- यह धूमकेतु का मुख्य स्थायी भाग है, जो धूल, बर्फ एवं अन्य ठोस पदार्थों से मिलकर बना है।
कोमा
- यह धूमकेतु का शीर्ष भाग है, जिससे जल, कार्बन डाइआक्साइड तथा अन्य गैसों का घना बादल केन्द्र से उत्सर्जित होता रहता है।
पूँछ
- यह धूमकेतु के पीछे का हिस्सा है, जो फुहारे के रूप में गैसों के अवशेष होते हैं।
क्षुद्र ग्रह
- क्षुद्र ग्रह भिन्न-भिन्न आकार के पिंडों की पट्टी के रूप में मंगल और बृहस्पति ग्रह के मध्य करोड़ों किलोमीटर क्षेत्र में पाये जाते हैं।
- क्षुद्र ग्रह सूर्य के चारों तरफ अन्य ग्रहों के समान ही दीर्घवृत्तीय कक्षा में पश्चिम से पूर्व (घडी की सुई के विपरीत) दिशा में परिक्रमा करते हैं।
- विदित है कि 2006 में अन्तर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा ‘प्लूटो’ को ग्रह की श्रेणी से बाहर निकालकर क्षुद्रग्रह की श्रेणी में रखा गया एवं प्लूटो तथा उसके जैसे अन्य क्षुद्र ग्रहों के लिए एक नई श्रेणी ‘प्लूटाॅइड’ बना दी गई।
- ‘सेरेस’ सबसे बड़ा एवं सर्वाधिक चमकीला क्षुद्र ग्रह है जबकि 4 वेस्टा, 52 यूरोपा, 243 इडा, 1862 अपोलो, 511 डेविडा अन्य क्षुद्र ग्रह हैं।
उल्का/उल्कापिंड
- मंगल एंव बृहस्पति के मध्य क्षुद्र ग्रहों के साथ अरबों की संख्या में उल्का पाये जाते हैं परन्तु वरूण ग्रह के पश्चात क्यूपर बेल्ट उल्काओं का सबसे बड़ा स्रोत है।
- जब उल्का पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश करते हैं तो गैसों से होने वाले घर्षण के कारण अग्नि प्रज्वलित अवस्था में दृष्टिगत होते हैं, इसे ही ‘टूटता हुआ तारा’ कहते हैं। इनमें से कुछ पृथ्वी पर पहुंचने से पूर्व ही जलकर राख हो जाते हैं जो कि ‘अल्काश्म’ कहलाते हैं। जबकि कुद उल्कायें जो चट्टानों के रूप में पृथ्वी पर जाकर गिरते हैं वे ‘उल्कापिंड’ कहलाते हैं।
ग्रह
|
सूर्य से दूरी (*)
|
घनत्व(gm/cm3)
|
अर्द्धव्यास (#)
|
उपग्रहों की संख्या
|
बुध
|
0.387
|
5.44
|
0.383
|
0
|
शुक्र
|
0.723
|
5.245
|
0.949
|
0
|
पृथ्वी
|
1.000
|
5.517
|
1.000
|
1
|
मंगल
|
1.524
|
3.945
|
0.533
|
2
|
बृहस्पति
|
5.203
|
1.33
|
11.19
|
79
|
शनि
|
9.539
|
0.70
|
9.460
|
82
|
यूरेनस (अरूण)
|
19.182
|
1.17
|
4.11
|
27
|
नेप्चूयन (वरूण)
|
30.058
|
1.66
|
3.88
|
13
|
* सूर्य से दूरी खगोलीय इकाई में है।अर्थात पृथ्वी की मध्यमान दूरी 14 करोड, 95 लाख, 98 हजार किमी. एक इकाई के बराबर है।
|
अरोरा
- अंतरिक्ष से आने वाली ब्रह्मांड किरणों, सौर पवनों तथा पृथ्वी के चुम्बकीय प्रभावों के मध्य घर्षण के कारण ध्रुवों पर एक रंगीन चमक उत्पन्न होती है, जिसे ‘अरोरा’ कहते हैं।
- उत्तरी ध्रुव पर इसे ‘अरोरा बोरियालिस’ एवं दक्षिणी ध्रुव पर ‘अरोरा आस्ट्रालिस’ कहते हैं।