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Study Material



जैव विविधता

भूमिका (Introduction)

पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के जीव, वनस्पति प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनकी अनुमानित संख्या लगभग 50 लाख से 5 करोड़ के मध्य है । प्रत्येक वर्ष लगभग 15,000 नई प्रजातियों की खोज होती है जिनमें कुछ प्रजातियाँ दुनियाभर में पाई जाती हैं स्थान विशेष तक सीमित रहती हैं । औद्योगीकरण, नगरीकरण एवं वैश्विक स्तर पर विकास की प्रक्रिया तीव्र होने के कारण पिछले 30 वर्षों में विवाद जैव विविधता का तेजी से ह्रास हुआ है । जीवों के आवास, पर्यटन एवं औषधीय उपयोग के अलावा पृथ्वी के धरातल का सौन्दर्य बढ़ाने में जैव विविधता का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है ।

जैव विविधता से तात्पर्य पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवों की विविधता से है । साधारण शब्दों में  जैव विविधता का अर्थ किसी निश्चित भौगोलिक विविधता क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों एवं वनस्पतियों की संख्या से है तथा इसका संबंध पौधों के प्रकारों, प्राणियों एवं सूक्ष्म जीवों से है । किन्तु जैव विविधता जीवों की विविधताओं तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके अंतर्गत उस पर्यावरण को भी सम्मिलित किया जाता है जिसमें वे निवास करते हैं । जैव विविधता के अंतर्गत जीवों के अन्दर तथा उनके मध्य विविधताओं को दृष्टिगत रखा जाता है । इस दृष्टि से देखें तो जैव विविधता विभिन्न पारिस्थितिकीय तंत्रों में उपस्थित जीवों के बीच तुलनात्मक विविधता का आकलन है । 1992 में रियो डि जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन में जैव विविधता की मानक परिभाषा अपनाई गई । इस परिभाषा के अनुसार, जैव विविधता समस्त स्रोतों यथा-अन्तक्षेत्रीय, स्थलीय, सागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिक तंत्रों के जीवों के मध्य अन्तर और साथ ही उन सभी पारिस्थितिक समूह जिनके ये भाग हैं, में पाई जाने वाली विविधताएँ हैं । इसमें एक प्रजाति के अन्दर पाई जाने वाली विविधता, विभिन्न जातियों के मध्य विविधता तथा पारिस्थितिकीय विविधता सम्मिलित है । "

विश्व के कुछ क्षेत्रों में प्रजातियों की अत्यधिक संख्या होती है । जिसे हॉटस्पॉट या मेगा डाइवर्सिटी (Hotspot or Megadiversity) क्षेत्र कहते हैं । विश्व के लगभग 60% उभयचर, पक्षी, जानवर तथा पेड़-पौधे इन्हीं क्षेत्रों में पाए जाते हैं, किन्तु ऐसा भी नहीं है कि केवल विश्व के कुछ क्षेत्रों में ही उच्च जैव विविधता पाई जाती है । लम्बे समय तक इंसान ने अपने आस-पास के क्षेत्र को जीवन-यापन के अनुकूल बनाने के क्रम में प्रभावित किया है,  जैसे-उपयोगी क्षेत्रों को कृषि और चारागाह के लिये, घास के मैदान और विभिन्न उपयोग के लिये जंगलों को प्रभावित किया, इसी क्रम में उसने इनकी देखभाल और संरक्षण भी किया । ऐसे सुरक्षित क्षेत्र में     बहुत-सी प्रजातियाँ निवास करती हैं और वे इन्हीं आवासों पर निर्भर होती हैं । परंतु दुनिया के कई हिस्सों में शहरों और उद्योगों का तीव्र गति से विस्तार और बढ़ती जनसंख्या जैव विविधता के लिये संकट बन गए हैं ।

'जैव विविधता' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया इस पर विवाद है । माना जाता है कि 1980 में ई. ए. नोर्स एवं आई. ई मैकमेनस द्वारा ‘जैविक विविधता' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया गया । जैव विविधता 'जैविक विविधता' (Biological Diversity) का संक्षिप्त रूप है । जैव विविधता शब्द का प्रयोग वाल्टर जी. रोजेन द्वारा 1985 में किया गया । यह पृथ्वी पर विभिन्न समुदायों की प्रजातियों की विविधता और जीवन की परिवर्तनशीलता को दर्शाती है । यह प्रजातियों के भीतर, प्रजातियों के मध्य और समुदाय के बीच परिवर्तनशीलता को प्रदर्शित करती  है । विश्व के प्रत्येक क्षेत्र में पर्यावरण भिन्नता के कारण किसी-न-किसी रूप में विविधता पाई जाती है । जलवायु परिवर्तन के साथ ही भौगोलिक क्षेत्रों के पर्यावरणीय दशाओं में भी परिवर्तन होते रहते हैं जिसके कारण वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं में आनुवंशिक तथा प्रजातीय परिवर्तन होते हैं जो एक स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र या पारितंत्र का निर्माण करते हैं । जैव विविधता प्रकृति एवं जीवों के संपोषणीय विकास के लिये अत्यंत आवश्यक है ।

जैव विविधता के प्रकार (Types of Biodiversity)

जैव विविधता किसी जैविक तंत्र के स्वास्थ्य का द्योतक है । यह किसी दिये गए पारिस्थितिकीय तंत्र, बायोम या एक पूरे ग्रह में जीवन के रूपों की विभिन्नता का परिमाण है । एक समुदाय में रहने वाले जीव-जन्तु व वनस्पति दूसरे समुदाय के जीव-जन्तुओं से आवास, खाद्य श्रृंखला के आधार पर अत्यधिक भिन्न होते हैं । एक ही प्रजाति में उसके प्रजातियों आनुवंशिकी के आधार पर भी भिन्नता हो सकती है । जैव विविधता का अध्ययन समुदाय, प्रजाति एवं प्रजातियों की आनुवंशिकी में विविधता के आधार पर तीन प्रकार से किया जाता है ।

आनुवंशिक विविधता(Genetic Diversity)

आनुवंशिक विविधता का आशय किसी समुदाय के एक ही प्रजाति के जीवों के जीन में होने वाले परिवर्तन से है । पर्यावरण में वनस्पति, जीव-जंतुओं की विभिन्न प्रजातियों में परिवर्तन के साथ अपने आप को अनुकूलित करने की प्रक्रिया में जीन में परिवर्तन होता है । प्रजातियों में जलवायु परिवर्तन को सहन करने की क्षमता होती है । जलवायु परिवर्तन के क्रम में इनके जीन में बदलाव आ जाता है । एक ही प्रजाति के वनस्पति, जीव-जंतुओं के रूप और गुणसूत्रों में समानता होती है जो निर्धारित करती है कि वे कहाँ और किस प्रकार दिखेंगे । एक प्रजाति के सदस्यों के बीच बहुत कम अंतर होता है । कुछ विलुप्त हो चुके पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं की प्रजातियों की जानकारी उनके जीन के अध्ययन से हुई है ।

एक जाति या इसकी एक समष्टि में कुल आनुवंशिक विविधता जीन पूल (Gene pool) कहलाती  है । पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के जीन की संख्या का अनुमान जीनोम विश्लेषण द्वारा किया गया । अभी तक कुछ ही वनस्पतियों व जीवों के जीनोम का पूरा अनुक्रमण हो पाया है,

जैसे-माइकोप्लाज्मा जीनों की संख्या लगभग 450-700, ई. कोलाई (Esclherichia coli) में 4000 एवं मानव में लगभग 35000-45000 जीन हैं । आनुवंशिक विविधता बढ़ने के साथ ही जातियों में पर्यावरणीय दशाओं में परिवर्तन के सापेक्ष अनुकूलन बढ़ जाता है । अगर आनुवंशिक विविधता कम होगी तो जातियों के रूप में अत्यधिक समानता पाई जाएगी ।

प्रजातीय विविधता (Species Diversity)

प्रजातीय विविधता से आशय किसी पारिस्थितिक तंत्र के जीव-जन्तुओं के समुदायों की प्रजातियों में विविधता से हैं । "प्रजाति विविधता किसी समदाय में प्रजाति की विभिन्न किस्म को बताता है ।" समुदाय में प्रजाति की संख्या क्षेत्र या स्थान के क्षेत्रफल के सापेक्ष बढ़ती है । सामान्यतः प्रजातियों की संख्या बढ़ने के साथ प्रजाति विविधता भी बढ़ती है ।

जलवायु परिवर्तन के कारण जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों के एक समुदाय की प्रजातियों में भिन्नता पाई जाती है । पर्यावरणीय परिवर्तन के साथ ही समुदाय की प्रजातियों में भी परिवर्तन होते रहते हैं, इससे प्रजातियों की संख्या में वृद्धि होती है जिससे खाद्य श्रृंखला और जटिल हो जाती है । खाद्य श्रृंखला की जटिलता जैव विविधता के लिये अत्यंत ही आवश्यक तत्त्व है । विभिन्न खाद्य श्रृंखलाओं के माध्यम से ही जीव-जंतुओं, वनस्पतियों और अन्य सूक्ष्म जीवों का जीवन संभव हो पाता है । जीव-जंतुओं की प्रजातियों में वृद्धि, पर्यावरण की उत्पादकता और स्थिरता को और मजबूत करती है ।

सामुदायिक या पारितंत्र विविधता

(Community or Ecosystem Diversity)

पारिस्थितिक तंत्र में जीव समुदाय विभिन्न प्रकार के आवासों (habitats) में एक साथ रहते हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं । विश्व में भिन्न-भिन्न प्रकार के आवास पाए जाते हैं,   जैसे-घास के मैदान, पर्वतीय आवास क्षेत्र, झील, मरुस्थल क्षेत्र, उष्णकटिबंधीय वर्षा वन आदि । इन आवासों में बहुत सारी प्रजातियाँ एक साथ रहती हैं और क्रियाशील रहती हैं । प्रत्येक आवास की पर्यावरणीय दशाओं में अंतर होने के साथ ही जीव-जंतुओं के समुदाय एवं उनकी प्रजातियों में भी अंतर पाया जाता है ।  

"एक समुदाय के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों एवं दूसरे समुदाय के जीव-जंतुओं व वनस्पतियों के बीच पाई जाने वाली विविधता सामुदायिक विविधता या पारितंत्र विविधता कहलाती है ।"

सामुदायिक विविधता आवास, निकेतों (Niches) के प्रकार एवं पारिस्थितिक प्रक्रियाओं, जैसे-पोषण चक्र, खाद्य श्रृंखला तथा ऊर्जा प्रवाह में होने वाले परिवर्तन के कारण होती है । सामुदायिक जैव विविधता ज्यादा उत्पादक और स्थिर पारितंत्र का निर्माण करती है जो प्राकृतिक पर्यावरण प्रजाति को स्वस्थ एवं संतुलित बनाए रखने में सहायक होता है ।

जैव विविधता का मापन (Measurement of Biodiversity)

जैव विविधता के मापन से आशय प्रजाति की संख्या और उसकी समृद्धि के आकलन से है । जैव विविधता के मापन के अंतर्गत प्रजातियों की संख्या और उनके बीच समता के आँकड़ों को संकलित किया जाता है । प्रजातियों की क्षेत्र विशेष में प्रचुरता (Richness) का आकलन एवं प्रजातियों में समता (Evenness) का आकलन जैव विविधता मापन का अनिवार्य अंग है । प्रजातियों की प्रचुरता के अंतर्गत यह देखा गया है । कि समुदाय या पारितंत्र में प्रजातियों की कुल कितनी संख्या है जबकि समता के अंतर्गत यह देखा जाता है कि पारितंत्र में प्रजातियों के मध्य कितनी समता है और यदि समता कम, भिन्नता अधिक है तो उस क्षेत्र में कुछ ही प्रजातियों का प्रभाव (Dominance) अधिक हो सकता है । जैव विविधता का मापन निम्नलिखित तीन विधियों से किया जाता है

a. विविधता

अल्फा विविधता किसी एक निश्चित क्षेत्र के समुदाय या पारितंत्र की जैव विविधता है । यह किसी एक समुदाय या पारितंत्र में प्रजातियों की कुल संख्या को बताती है । अल्फा मापन द्वारा किसी पारितंत्र के अंदर एक समुदाय की कुल प्रजातियों की संख्या और प्रजातियों की आनुवंशिकी के आधार पर उनमें पाई जाने वाली समरूपता का भी आकलन किया जाता है । अल्फा मापन द्वारा प्रजातियों की संख्या का आकलन करने से उनकी संख्या में वृद्धि एवं संवृद्धि का भी आकलन हो जाता है ।

b. विविधता

बीटा विविधता जैव विविधता का वह मापन है जिसके अंतर्गत पर्यावरणीय प्रवणता (Environmental Gradient) के साथ परिवर्तन के बीच प्रजातियों की विविधता की तुलना की जाती है । इसके अंतर्गत समुदाय की विशिष्ट प्रजातियों की तुलना की जाती है और देखा जाता है कि किस समुदाय से प्रजातियों का कितना पलायन हुआ है । जलवायु परिवर्तन  के साथ ही आवास या समुदाय की पर्यावरणीय दशाएँ भी परिवर्तित हो जाती हैं । आवास या समुदायों में परिवर्तन के साथ ही कई प्रजातियाँ भी परिवर्तित हो जाती हैं । ये परिवर्तित प्रजातियाँ अनुकूल परिस्थिति प्राप्त करने के लिये एक समुदाय से दूसरे समुदाय की ओर प्रतिस्थापन करने लग जाती हैं । आवासों या समुदायों के एक प्रवणता के साथ जातियों के विस्थापन होने की दर b - विविधता कहलाती है । 

y. विविधता

गामा विविधता एक भौगोलिक क्षेत्र या आवासों की प्रजातियों की प्रचुरता को बताती है । इसके अंतर्गत आवासों की विषमता या भिन्नता का पता चलता है । गामा विविधता a एवं B विविधता अवयवों का गुणनफल है । गामा विविधता को समुदायों के अवयवों एवं प्रजातियों की प्रचुरता के आधार पर इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है ।

y=s1 + s2-c

S1 = प्रथम समुदाय में प्रजातियों की कुल आकलित (Recorded) संख्या

s2 = द्वितीय समुदाय में प्रजातियों की कुल आकलित संख्या

C = दोनों समुदायों में उभयनिष्ठ (Common) प्रजातियाँ

 जैव विविधता की प्रवणता (Gradient of Biodiversity)

अक्षांशों में प्रायः उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश की ओर तथा पर्वतीय क्षेत्रों में ऊपर से नीचे की ओर आने पर प्रजातियों की संख्या में अंतर जैव विविधता की प्रवणता कहलाती है । विश्व के विभिन्न क्षेत्रों के आवासों में अत्यधिक अंतर पाया जाता है । कहीं प्रजातियों के लिये विकास की परिस्थितियाँ पर्याप्त हैं तो कहीं बहुत कठिन परिस्थितियाँ हैं । जहाँ प्रजातियों को जीवित रहने के लिये संघर्ष करना पड़ता है । उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांश (ध्रुवों से भूमध्य रेखा) की ओर परिस्थितियाँ अनुकल होने के कारण जैव विविधता में वृद्धि होती है ।

टुंड्रा एवं टैगा जलवायु क्षेत्रों में परिस्थितियाँ अत्यंत ही प्रतिकूल हैं । ये विश्व के सर्वाधिक ठंडे जलवायु प्रदेश हैं जहाँ वर्ष भर तापमान निम्न बना रहता है । इन जलवायु क्षेत्रों में पौधों एवं अन्य जीवों का वद्धिकाल अत्यंत कम होता है । ऐसी स्थिति में प्रजातियों को जीवित रहने प्रजनन एवं वृद्धि करने हेतु संसाधनों को प्राप्त करना और लम्बे समय तक जीवित रहना चुनौती भरा होता है । वहीं निम्न अक्षांशों जैसे उष्णकटिबंधीय वर्षा वन वाले क्षेत्रों में जहाँ मौसम वर्ष भर वृद्धि और विकास के लिये अनुकूल बना रहता है, ऐसे क्षेत्रों में जातियों को वृद्धि एवं विकास के लिये ज्यादा प्रयास करने की जरूरत नहीं पड़ती जिससे प्रजातियों की संख्या में अत्यधिक विविधता दिखाई देती है, जैसे-चीटियों की प्रजातियों की संख्या यदि विषुवतरेखीय वर्षा वन क्षेत्र के एक निश्चित क्षेत्र में 200 है तो उच्च अक्षांशों या हिम क्षेत्रों में यह 10 से भी कम होती है ।

इसी प्रकार पर्वतीय क्षेत्रों में जैसे-जैसे हम ऊँचाई पर जाते हैं वहाँ जैव विविधता में कमी होती जाती है । पर्वतीय क्षेत्रों में नीचे से ऊपर जाने पर प्रति एक किलोमीटर पर तापमान में 6.5°C की कमी होती है । तापमान में कमी पर्वतीय क्षेत्रों में जैव विविधता में भिन्नता का बड़ा कारण है ।

जैव विविधता का महत्त्व (Importance of Biodiversity)

पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीव-जंतुओं में उनके आवास और गुणों के आधार पर अत्यधिक भिन्नता पाई जाती है जो मनुष्य के लिये अपना अस्तित्व बनाए रखने में अत्यधिक सहायक है । जैव विविधता से मनुष्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभ प्राप्त करता है । मनुष्य को जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों से भोजन, आवास के लिये जरूरी संसाधन, कपड़े, औषधियाँ, रबर, इमारती लकड़ी आदि की प्राप्ति के साथ ही वैज्ञानिक अनुसंधान एवं नवाचार के लिये आवश्यक संसाधनों की भी प्राप्ति होती है । जैव विविधता पृथ्वी पर जीवन का आधार है । जैव विविधता में समृद्धि पारितंत्र को स्वस्थ एवं संतुलित बनाए रखने में सहायक है । जैव विविधता के महत्त्व निम्नलिखित हैं-

उत्पादक स्रोत

जैव विविधता से अत्यधिक उत्पादों की प्राप्ति होती है जिससे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष आर्थिक लाभ अर्जित किया जाता है । मनुष्य को मृदा की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिये जैविक खाद, फसलों के बीजों की संकरण विधि द्वारा नई उन्नत प्रजातियों की प्राप्ति जैव विविधता से होती है । विश्व में कई पादपों की प्रजातियाँ हैं जिनसे भोजन तैयार किया जा सकता है । लेकिन मनुष्य अभी तक अनुमानतः 20% से कम पादप प्रजातियों का उत्पादन करता है । इन्हीं 20% प्रजातियों से विश्व की लगभग 85% मानव सभी जनसंख्या को खाद्य पदार्थों की प्राप्ति होती है । कृषि पादप प्रजातियों में विशेषकर गेहूँ एवं मक्का, चावल, बाजरा, दाल मनुष्य को जीवित रहने के लिये दो-तिहाई भोजन प्रदान करते हैं । कुछ प्रजातियों का व्यापारिक दृष्टिकोण से उत्पादन किया जाता है तथा उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ाने हेतु स्थानीय प्रजातियों का किसी विकसित एवं अधिक उत्पादक क्षमता वाली प्रजाति से संकरण  (Hybridization) द्वारा नई प्रजाति का निर्माण करके उनको संरक्षित किया जाता है ।

औषधियाँ

विश्व में उन पादपों की प्रचुरता है जिनमें चिकित्सा संबंधी गुण पाए जाते हैं । विश्व के अनेक क्षेत्रों जैसे भारत में ही औषधियों एवं जड़ी-बूटियों की अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिनसे अनेक रोगों का उपचार सदियों से होता आ रहा है । कई पादपों से प्राप्त पदार्थों से दर्द निवारक, मलेरिया के उपचार से संबंधित, कैंसर आदि जैसी जटिल बीमारियों के उपचार की दवाएँ बनाई जाती हैं । दर्द निवारक दवाओं में मॉर्फीन, कैंसर के लिये टैक्सोल दवा का निर्माण इन्हीं पादपों से एवं कई एन्टी बायोटिक दवाएँ सूक्ष्म जीवों के प्रयोग से बनाई जाती हैं । विश्व की लगभग 25% दवाओं का निर्माण केवल पादपों की 120 प्रजातियों से होता   है । विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में औषधीय पादपों की प्राप्ति होती है । विषुवतरेखीय प्रदेश व उष्णकटिबंधीय वर्षा वन में सबसे ज्यादा औषधीय पादप पाए जाते हैं ।

सौन्दर्यपरक महत्त्व (Aesthetic Importance)

प्रकृति से मनुष्य को फूल व फल की प्राप्ति हमेशा से होती रही है । मनुष्य आज पारिस्थितिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये पालतू जानवरों, पक्षियों का संरक्षण चिड़ियाघर के माध्यम से, पौधों व वृक्षों का संरक्षण और उनके प्राकृतिक सौन्दर्य को वानस्पतिक उद्यान (Botanical Garden) द्वारा संरक्षित कर रहा है । मनुष्य का सदियों से ही पशुपालन, पक्षियों के पालन से रिश्ता रहा है । ये पशु-पक्षी तथा पेड़-पौधे उसके जीवन को हमेशा से ही प्रभावित करते आए हैं । प्राचीन काल से ही मनुष्य तुलसी और पीपल के वृक्षों को सांस्कृतिक महत्त्व देता आया है । मानव का अस्तित्व हमेशा से ही जैव विविधता की इन प्रजातियों से जुड़ा रहा है ।

सामाजिक या पारितंत्र महत्त्व

जैव विविधता में ह्रास प्रत्यक्ष रूप से सामाजिक जीवन को प्रभावित करता है । जैव विविधता पारितंत्र को स्वस्थ एवं स्थिर बनाए रखती है । जैव विविधता में हास के कारण ही आज ग्लोबल वार्मिंग तथा अम्लीय वर्षा जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं । जैव विविधता से प्राप्त सभी पदार्थों के निरंतर प्रयोग को बनाए रखने के लिये इनका रख-रखाव अत्यंत ही आवश्यक है । जैव विविधता ही जीवन का आधारभूत घटक है जो पृथ्वी पर जीवन बनाए रखने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण  हैं ।

कृषि में जैव विविधता का महत्त्व

जैव विविधता, कृषि के आनुवंशिक पदार्थ का स्रोत है जो कृषि के भविष्य के लिये अत्यधिक महत्त्व रखती है । कृषि जैव विविधता कृषि पारिस्थितिक तंत्र को मजबूती प्रदान कर और उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर सभी प्रजातियों का पोषण करती है । सदियों से प्रजातियों की निर्भरता कृषि पर रही है । कृषि की लगभग 940 प्रजातियाँ, बीमारियों एवं अन्य कारणों,   जैसे-प्रदूषण से खतरे में आ चुकी हैं । जीवन और पारितंत्र के संतुलन के लिये कृषि जैव विविधिता का संरक्षण किया जाना अत्यंत आवश्यक है । शैक्षिक अनुसंधान शिक्षा और मॉनीटरिंग के द्वारा कृषि जैव विविधता को संरक्षित किया जा सकता है ।

जैव विविधता को खतरा

जलवायु परिवर्तन, बढ़ते प्रदूषण स्तर, मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से विभिन्न प्रजातियों के आवास नष्ट हो रहे हैं जिसके कारण बहुत सारी प्रजातियाँ या तो विलुप्त हो गई हैं या होने के कगार पर हैं । वायु एवं जल प्रदूषण के बढ़ने से अनेक बीमारियाँ पैदा हुई और इन बीमारियों ने जैव विविधता को बहुत प्रभावित किया है जिससे जैव विविधता का अत्यधिक हास हुआ है । वनों के अत्यधिक कटाव व घास के मैदानों के हास (चारण एवं कृषि) के कारण आज अनेक प्राकृतिक आपदाएँ जैव विविधता को प्रभावित कर रही हैं । प्राकृतिक आपदाओं कारण कभी-कभी जैव समुदाय के संपूर्ण आवास एवं प्रजाति का नाश हो जाता है । बढ़ते तापमान के कारण समुद्री जैव विविधता खतरे में है । समुद्र का जल प्रदूषण के कारण अधिक खारा होता जा रहा है जिससे उसमें पाई जाने वाली असंख्य प्रजातियाँ खतरे में हैं । तटीय इंजीनियरिंग निर्माण के दौरान बहुत-से जहरीले पदार्थों एवं तेल का स्राव समुद्र में हो जाता है जो जैव विविधता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं । समुद्री जल एवं नदी जल में प्रदूषण के कारण समुद्र एवं नदी के तलों पर पाई जाने वाली वनस्पतियों तक प्रकाश नहीं पहुँच पाता, परिणामस्वरूप ये वनस्पतियाँ लुप्त हो गई और उन पर आश्रित रहने वाले जीव-जंतु तथा वनस्पतियाँ संकटग्रस्त अवस्था में पहुँच गई हैं । भारत में जैव विविधता ह्रास का एक प्रमुख कारण जल एवं वायु प्रदूषण है जिसके कारण भारत के स्तनधारियों की 79, पक्षियों की 44, सरीसृपों की 15 तथा उभयचरों की 3 प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं । एक नवीनतम शोध के अनुसार वनस्पतियों की लगभग 1500 से अधिक प्रजातियाँ संकटग्रस्त हो गई हैं । जैव विविधता ह्रास के निम्नलिखित कारण हैं:

आवासों का विनाश 

प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुध दोहन की प्रक्रिया में मनुष्य ने जंगल, आर्द्रभूमि क्षेत्र, घास के मैदानों आदि को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है जिससे प्रजातियों के आवास नष्ट हो रहे हैं और कई प्रजातियाँ संकटग्रस्त भी हो गई हैं । औद्योगिक विकास, सड़क निर्माण, भवन निर्माण, कृषि के लिये घास के मैदान की जुताई, कृषि क्षेत्र को बढ़ाने की प्रक्रिया में जंगल की कटाई और वनाग्नि से ये आवासीय क्षेत्र नष्ट हो जाते हैं जिससे प्रजातियों को मजबूरन अपना आवास क्षेत्र छोड़ना पड़ता है । प्राकृतिक आवास बदल जाने व नए आवासीय क्षेत्र में प्रजातियों से टकराव के कारण इन प्रजातियों को अस्तित्व बचाने हेतु । अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है । यही कारण है कि हजारों की संख्या में जीव-जंतुओं एवं वनस्पतियों की प्रजातियाँ दिनोंदिन विलुप्त हो रही हैं ।

विदेशी प्रजातियों का प्रवेश

 जब एक क्षेत्र में दूसरे क्षेत्र विशेष से विभिन्न माध्यमों से प्रजातियाँ प्रवेश करती हैं तो वे वहाँ की मूल प्रजातियों को प्रभावित करती हैं । अपने प्रभाव एवं अत्यधिक प्रजनन क्षमता के कारण ये जल्द ही क्षेत्र विशेष पर अपना अधिकार जमा लेती हैं, जिसके कारण स्थानीय प्रजातियों में संकट उत्पन्न होने लगता है और ये प्रजातियाँ एक समय के बाद नष्ट होने लग जाती हैं । उदाहरण के लिये भारत में 1966-67 के समय आयातित गेहूँ के साथ एक घास भी आ गई जिसे कांग्रेस घास (पारथीनियम हिस्टेरोफोरस) या अमेरिकी खरपतवार के नाम से जाना जाता है । इस घास ने स्थानीय घास व वृक्ष की प्रजातियों को प्रतिस्थापित कर दिया जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी संकट उत्पन्न हो गया, जिसने पौधों पर आश्रित रहने वाले कीटों को और फसलों को अत्यधिक प्रभावित किया।

आमतौर पर भारत में तालाबों तथा झीलों में जलकुंभी दिखाई देती है । जो अपनी बनावट में जटिलता और अत्यधिक प्रतिरोधक क्षमता के कारण झीलों एवं तालाबों के तटों को अवरुद्ध कर देती है और जलीय-प्रजातियों के लिये संकट उत्पन्न करती है । इसकी वजह से तालाबों एवं झीलों में रहने वाली वनस्पतियों एवं जीव-जंतुओं तक प्रकाश नहीं पहुँच पाता है । वनस्पतियाँ प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाशसंश्लेषण क्रिया द्वारा अपना भोजन बनाती हैं और अन्य जीव-जंतु इन्हीं प्राथमिक उत्पादक वनस्पतियों पर निर्भर होते हैं । वनस्पतियों के संकटग्रस्त होने के साथ ही इन पर निर्भर अन्य प्रजातियाँ भी संकटग्रस्त हो जाती हैं ।

प्रदूषण

मानव द्वारा उत्पन्न की गई बाधाओं एवं प्रकृति जनित बाधाओं के मध्य तीव्रता दर एवं क्षेत्र विस्तार संबंधी अत्यधिक भिन्नता पाई जाती है । मानव द्वारा वनों को नष्ट करने से प्रजातियाँ दूसरे आवास में प्रवास करके भी अपने अस्तित्व को बचा सकती हैं किन्तु प्रदूषण के कारण वायु एवं जल दोनों ही दूषित होने के कारण एक बड़ा क्षेत्र प्रभावित होता है । प्रदूषित वायु एवं अम्लीय वर्षा के कारण संवेदनशील प्रजातियाँ तेज़ी से लुप्त हो रही हैं । प्रदूषण प्रजातियों के पूरे आवास, क्षेत्र एवं समष्टि को प्रभावित करता है जिसके कारण प्रजातियों के नष्ट होने की दर तीव्र हो जाती है । उदाहरण के लिये, छोटी मछलियों पर आश्रित जीव-जंतुओं का तेज़ी से लुप्त होना प्रदूषण के प्रभाव को दिखाता है । समुद्र में तेल के गिरने एवं फैलने के कारण समुद्री जीवों की अत्यधिक प्रजातियाँ प्रभावित होती हैं तथा संवदेनशील प्रजातियाँ समाप्त हो जाती हैं ।

जनसंख्या वृद्धि एवं गरीबी

वर्तमान में विश्व की कुल जनसंख्या लगभग 7 अरब से अधिक और प्रतिवर्ष 8 से 9 करोड़ लोग और शामिल हो रहे हैं । जनसंख्या के बढ़ने के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव भी बढ़ रहा है । विश्व में अभी भी लगभग 40% जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करती है जो मूल रूप से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है । मानव द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये अन्य प्रजातियों के क्षेत्रों में अतिक्रमण के कारण जैव विविधता नष्ट हो रही है ।

प्राकृतिक कारण

प्राकृतिक आपदाओं में तीव्र वृद्धि के कारण भी जैव विविधता के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है । बाढ़, भूकम्प, ज्वालामुखी, भूस्खलन, वनाग्नि एवं बीमारियों के कारण जीवों एवं वनस्पतियों की कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं । प्राकृतिक आपदाएँ, प्राकृतिक आवासों के विखंडन में भूमिका निभाती हैं जिससे उस क्षेत्र विशेष की प्रजातियाँ संकट में आ जाती हैं जिसका प्रभाव जैव विविधता की उत्पादन दर पर पड़ता है ।

अन्य प्रमुख कारण

  1. जानवरों का अवैध शिकार और उनकी तस्करी के कारण जैव विविधता प्रभावित होती   है ।
  2. स्थलीय जल-भूमि को जल से भरने व उस पानी को निकालने की प्रक्रिया में अनेक प्रजातियाँ विस्थापित हो जाती हैं ।
  3. कृषि क्षेत्रों का विस्तार । 
  4. तटीय क्षेत्र का नष्ट होना ।
  5. जलवायु परिवर्तन ।                                                                                                                                                                                                                         

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