संविधान सभा
जब किसी प्रभुता सम्पन्न लोकतांत्रिक राष्ट्र द्वारा संविधान की रचना का कार्य उसकी जनता के प्रतिनिधि निकाय द्वारा किया जाता है, तो संविधान पर विचार करने तथा उसे स्वीकार करने के लिए जनता द्वारा चुने गये इस प्रकार के निकाय को 'संविधान सभा कहा जाता है।
संविधान सभा की परिकल्पना, भारत में सदैव राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास के साथ जुड़ी रही। भारत की संविधान सभा का निश्चित उल्लेख भले ही इन शब्दों में न किया गया हो किंतु भारत शासन अधिनियम 1919 के लागू होने के पश्चात 1922 में महात्मा गाँधी ने इस तथ्य का उल्लेख किया था।
जनवरी 1925 में दिल्ली में हुए सर्वदलीय सम्मेलन के समक्ष कॉमनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल को प्रस्तुत किया गया, जिसकी अध्यक्षता महात्मा गाँधी ने की थी। उल्लेखनीय है कि भारत के लिए एक संवैधानिक प्रणाली की रूपरेखा प्रस्तुत करने का यह प्रथम प्रमुख प्रयास था ।
19 मई, 1928 को बंबई में आयोजित सर्वदलीय सम्मेलन में भारत के संविधान के सिद्वान्त निर्धारित करने के लिए मोतीलाल नेहरू के सभापतित्व में एक समित गठित की गयी। 10 अगस्त 1928 को प्रस्तुत की गयी इस समिति की रिपोर्ट को 'नेहरू रिपोर्ट’ के नाम से जाना जाता है।
जून 1934 में कांग्रेस कार्यकारिणी ने घोषणा की कि श्वेत-पत्र का एक मात्र विकल्प यह है कि वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित संविधान सभा द्वारा एक संविधान तैयार किया जाए। यह पहला अवसर था जब संविधान सभा के लिए औपचारिक रूप से एक निश्चित मांग प्रस्तुत की गयी।
1940 के 'अगस्त प्रस्ताव’ में ब्रिटिश सरकार ने संविधान सभा की मांग को पहली बार अधिकारिक रूप से स्वीकार किया, भले ही स्वीकृति अप्रत्यक्ष तथा महत्वपूर्ण शर्तो के साथ थी।1942 का क्रिप्स मिशन पूर्णतः असफल सिद्व हुआ, यद्यपि फिर भी उसमें संविधान सभा बनाने की बात को स्वीकार कर लिया गया था ।
अंततः कैबिनेट मिशन, 1946 द्वारा संविधान निर्माण के लिए एक बुनियादी ढांचे का प्रारूप प्रस्तुत किया गया । कैबिनेट मिशन ने संविधान निर्माण निकाय द्वारा अपनायी जाने वाली प्रक्रिया को कुछ विस्तारपूर्वक निर्धारित किया गया जो इस प्रकार हैः
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