पंचायतों की संरचना
पंचायतों की संरचना के लिए निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं-
- ग्राम पंचायत का अध्यक्ष मध्यवर्ती (क्षेत्र) पंचायत का सदस्य होता है। यदि किसी राज्य में मध्यवर्ती स्तर नहीं हो तो वह ज़िला पंचायत का सदस्य होगा।
- मध्यवर्ती (क्षेत्र) स्तर का अध्यक्ष ज़िला पंचायत का सदस्य होता है।
- उस राज्य के लोकसभा के सदस्य और विधान सभा के सदस्य अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में ज़िला और मध्यवर्ती पंचायत के सदस्य होते हैं।
- राज्य के राज्यसभा के सदस्य विधान परिषद् (यदि हो) उस क्षेत्र की ज़िला और मध्यवर्ती पंचायत के सदस्य होते हैं। अध्यक्ष, संसद सदस्य और विधानसभा के सदस्यों को पंचायत की बैठकों में मत देने का अधिकार है।
- प्रमुख अनुच्छेद एवं सम्बन्धित विषय-
अनुच्छेद
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विवरण
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अनुच्छेद 243
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परिभाषाएँ
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अनुच्छेद 243 क
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ग्रामसभा
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अनुच्छेद 243 ख
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ग्राम पंचायतों का गठन
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अनुच्छेद 243 ग
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पंचायतों की संरचना
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अनुच्छेद 243 घ
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स्थानों का आरक्षण
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अनुच्छेद 243 ङ
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पंचायतों की अवधि
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अनुच्छेद 243 च
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सदस्यता के लिए अयोग्यताएँ
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अनुच्छेद243छ
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पंचायतों की शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तरदायित्व
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अनुच्छेद243ज
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पंचायतों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियाँ और उनकी निधियाँ
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अनुच्छेद 243 झ
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वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन
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अनुच्छेद 243 ञ
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पंचायतों की लेखाओं की संपरीक्षा
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अनुच्छेद 243 ट
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पंचायतों के लिए निर्वाचन
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अनुच्छेद 243 ठ
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संघ राज्यों क्षेत्रों को लागू होना
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अनुच्छेद 243 ड
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इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना
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अनुच्छेद 243 ढ
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विद्यमान विधियों और पंचायतों का बना रहना
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अनुच्छेद 243 ण
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निर्वाचन सम्बन्धी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्णन
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ग्रामसभा-किसी ग्राम की निर्वाचन नियमावली में जो नाम दर्ज होते हैं उन व्यक्तियों को सामूहिक रूप से ग्राम सभा कहा जाता है ।
सदस्यता के लिए अर्हता- मुख्य अर्हताएं निम्नलिखित हैं-
- वह राज्य विधानमंडल का सदस्य चुने जाने योग्य होना चाहिए,
- वह राज्य विधान मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा निर्हरित नहीं होना चाहिए,
- उसकी उम्र 21 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
पंचायतों के वित्तीय स्रोत- मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं-
- राज्य अधिनियम द्वारा अनुज्ञात कर अधिक्षेपित करके,
- राज्य सरकार द्वारा संग्रहित कर, पथकर, शुल्क आदि जो पंचायतों को सौंपे जाते हैं,
- राज्य सरकार द्वारा सहायता अनुदान तथा
- केंद्रीय राज्य सरकारों द्वारा विकास कार्यक्रमों हेतु आवंटित निधि।
पंचायतों के लिए निर्वाचन प्रणाली
- स्वतंत्र एवं निष्पक्ष निर्वाचन सुनिश्चित करने के लिए अनुच्छेद 243 (ट) के अनुसार निर्वाचकों के लिए निर्वाचन नियमावली तैयार कराने और सभी निर्वाचकों के संचालन, अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण का दायित्व एक राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा,
- निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से कदाचार या असमर्थता के आधार पर ही हटाया जाएगा और हटाने की वही रीति होगी जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की होती है,
- नियुक्ति के बाद या कार्यकाल के दौरान उसकी सेवा शर्तों में अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा,
- पंचायतों के निर्वाचन को निर्वाचन अर्जी द्वारा प्रश्नगत किया जा सकता है यह अर्जी ऐसे प्राधिकरण को ऐसी रीति से प्रस्तुत की जाएगी जो राज्य विधान मंडल द्वारा बनाई गई विधि में उपबंधित की जाए।
पंचायत वित्त आयोग
राज्यपाल प्रत्येक 5 वर्ष बाद पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन करने के लिए वित्त आयोग गठित करेगा यह आयोग निम्नलिखित विषयों पर सिफारिश करेगा-
- राज्य द्वारा अधिग्रहित करो,शुल्कों,पथकरों आदि के शुद्ध आगमों का राज्य एवं पंचायत के बीच वितरण कैसे हो और किस प्रकार पंचायत के विभिन्न स्तरों पर विधियां आवंटित की जाएं,
- कौन से कर, शुल्क, पथकर आदि पंचायतों को समनुदेशित किए जाएं,
- पंचायतों के लिए सहायता अनुदान तथा
- पंचायतों की वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए आवश्यक कदम आदि।
पंचायती राज प्रणाली का महत्व
- त्रिस्तरीय लोकतांत्रिक मूल्यों के स्थिरीकरण द्वारा यह लोकतंत्र का संरक्षण करती है,
- विकास कार्यक्रमों को स्थानीय क्षमता व संसाधन के परिपेक्ष्य में निर्धारित और क्रियान्वित करने का कार्य करती है,
- राजनीतिक तौर पर जनता को जागृत करने का कार्य करती है,
- पंचायती राज प्रणाली के अंतर्गत स्थानीय निगरानी होने से किसी भी कार्यक्रम की गुणवत्ता में बढ़ोतरी होती है साथ ही भ्रष्टाचार पर शिकंजा कसने में भी सफलता मिलती है,
- समाज के पिछड़े वर्गों, महिलाओं, शोषितों को भी लोकतंत्र में भागीदारी के परिणामस्वरूप राजनीति में सक्रियता का अवसर मिलता है,
- ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता आदि कार्यक्रम को लागू करने में इसकी महती भूमिका है तथा
- ग्रामीण अवसंरचना, उद्योग, कृषि आदि के विकास में पंचायतें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं |
पंचायती राज प्रणाली की असफलता के कारण
- वर्तमान समय में पंचायतें जाति, धर्म, भाषा आदि के आधार पर खंडित हो गई हैं,
- राज्य सरकारों का अनावश्यक हस्तक्षेप व नियंत्रण इन्हें कमजोर बनाता है,
- नियमित ऑडिटिंग की कमी, भ्रष्टाचार के लिए अवसर प्रदान करती है,
- आजादी के इतने वर्षों के बाद भी साक्षरता का भाव इसकी महत्ता के प्रति लोगों की जागरूकता तथा
- कभी-कभी चुनाव में मतों की खरीद-फरोख्त के कारण योग्य और पसंदीदा उम्मीदवार के स्थान पर अनुपयुक्त व्यक्ति का चुनाव हो जाता है।