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मौर्यों के बाद प्राचीन भारत में गुप्तों ने ही विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की। भारतीय इतिहास में गुप्तकाल को स्वर्णयुग कहा जाता है। गुप्तकाल में भारतीय राजनीति और संस्कृति चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई थी। गुप्तवंश के राजनैतिक और सांस्कृतिक इतिहास का स्पष्टीकरण करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं, किन्तु गुप्तों की उत्पत्ति और उनकी जाति के निर्धारण के लिए ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। इनकी जाति विभिन्न इतिहासकारों द्वारा भिन्न-भिन्न बताई गई है। प्रायः ऐसा माना जाता है कि गुप्त वैश्य थे।

गुप्त संभवतः वैष्य थे तथा कुषाणों के सामंत रहे थे। कुषाणों से प्राप्त सैन्य तकनीक एवं वैवाहिक संबंधों ने गुप्त साम्राज्य के प्रसार एवं सुदृढ़ीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गुप्त वंश का आरंभिक राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार था। संभवतः गुप्त शासकों के लिए बिहार की अपेक्षा उत्तर प्रदेश अधिक महत्व वाला प्रांत था, क्योंकि आरंभिक गुप्त मुद्राएं और अभिलेख मुख्यतः उत्तर प्रदेश से ही पाए गए हैं।

गुप्त राजवंश के इतिहास के स्रोत

गुप्त राजवंश का इतिहास जानने के निम्नलिखित तीन महत्वपूर्ण स्रोत हैं-

  1. साहित्यिक स्रोत
  2. पुरातात्विक स्रोत  
  3. विदेशी यात्रियों के विवरण।

साहित्यिक स्रोत

  • विशाखदत्त के नाटक ‘देवीचन्द्रगुप्तम’ से गुप्त शासक रामगुप्त एवं चन्द्रगुप्त द्वितीय के बारे में जानकारी मिलती है ।
  • इसके आलावा कालिदास की रचनाएँ ( ऋतुसंहार, कुमारसंभवम् , मेघदूत, मालाविकाग्निमित्रम् , अभिज्ञान शाकुंतलम् ) तथा शुदक कृत ‘मृच्छकटिकम' और वात्स्यायन  कृत ' कामसूत्र ' से भी गुप्त काल की जानकारी मिली है ।

पुरातात्विक स्रोत

  • पुरातात्विक स्रोतों में अभिलेखों, सिक्कों तथा स्मारकों से गुप्त राजवंश के इतिहास का ज्ञान होता है।
  • समुद्रगुप्त के ‘प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख’ से उसके बारे में जानकारी मिलती है।
  • स्कंदगुप्त के ‘भीतरी स्तंभलेख से हूण आक्रमण के बारे में जानकारी मिलती है, जबकि स्कंदगुप्त के ‘जूनागढ़ अभिलेख’ से इस बात की जानकारी प्राप्त होती है कि उसने सुदर्शन झील का पुननिर्माण करवाया था।
  • गुप्तकालीन राजाओं के सोने, चांदी तथा तांबे के सिक्के प्राप्त हुए हैं। इस काल में सोने के सिक्कों को ‘दीनार’, चांदी के सिक्कों को ‘रूपक’ अथवा ‘रूप्यक तथा तांबे के सिक्कों को ‘माषक’ कहा जाता था।
  • गुप्तकालीन स्वर्ण सिक्कों का सबसे बड़ा ढेर राजस्थान प्रांत के ‘बयाना से प्राप्त हुआ है।
  • मंदिरों में तिगवा का विष्णु मंदिर, (जबलपुर, मध्य प्रदेश), भूमरा का शिव मंदिर (सतना, मध्य प्रदेश), नचना कुठारा का पार्वती मंदिर (पन्ना, मध्य प्रदेश), भीतरगांव का मंदिर (कानपुर, उत्तर प्रदेश), देवगढ़ का दशावतार मंदिर (झांसी, उत्तर प्रदेश) आदि विशेष उल्लेखनीय है।
  • अजंता एवं बाघ की गुफाओं के कुछ चित्र भी गुप्त कालीन माने जाते हैं।

विदेशी यात्रियों के विवरण

  • फाहियान-यह चीनी यात्री था और चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में भारत आया था। इसने मध्य देश का वर्णन किया है।
  • ह्वेनसांग-इसने कुमारगुप्त प्रथम, बुधगुप्त, नरसिंहगुप्त ‘बालादित्य’ आदि गुप्त शासकों का उल्लेख किया है। इसके विवरण से ही यह पता चलता है कि कुमारगुप्त ने ‘नालंदा महाविहार’ की स्थापना करवाई थी।

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