शक्ति सम्प्रदाय का शैव मत के साथ घनिष्ठ संबंध है। इसमें आदि शक्ति या देवी की पूजा का स्पष्ट उल्लेख महाभारत में प्राप्त होता है।
मातृ देवी की उपासना का सूत्र पूर्व वैदिक काल में भी खोजा जा सकता है परन्तु देवी या शक्ति की उपासना का सम्प्रदाय वैदिक काल जितना ही प्राचीन है।
पुराणों के अनुसार शक्ति की उपासना मुख्यतया काली और दुर्गा की उपासना तक ही सीमित है।
वैदिक साहित्य में उमा, पार्वती, अम्बिका, हेमवती, रूद्राणी और भवानी जैसे नाम मिलते हैं।
ऋग्वेद के ‘दशम् मण्डल’ में एक पूरा सूक्त ही शक्ति की उपासना में विवृत है जिसे ‘तांत्रिक देवी सूक्त’ कहते हैं।
चौसठ योगिनी का मंदिर (जबलपुर) शाक्त धर्म के विकास और प्रगति को प्रमाणित करने का साक्ष्य उपलब्ध है।
उपासना पद्धति-शाक्तों के दो वर्ग हैं-कौलमार्गी और समयाचारी।
पूर्ण रूप से अद्वैतवादी साधक कौल कहे जाते हैं, जो कर्दम और चन्दन में, शत्रु और पुत्र में श्मशान और भवन में तथा कांचन और तृण में कोई भेद नहीं समझते।
कौल मार्गी पंचमकार की उपासना करते हैं जिसमें मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन है, जो ‘म’ से प्रारम्भ होते हैं।
आजीवक लोग पौरूष कर्म और उत्थान की अपेक्षा भाग्य या नियति को अधिक बलवान मानते थे।आजीवक या नियतिवादी सम्प्रदाय-संसार में सब बातें पहले से ही नियत हैं ‘‘जो नहीं होना है वह नहीं होगा जो होना है वह कोशिश के बिना हो जायेगा। अगर भाग्य न हो तो आई हुई चीज भी नष्ट हो जाती है।’’