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सल्तनतकालीन कला एवं स्थापत्य एवं सल्तनतकालीन साहित्य

सल्तनतकालीन कला एवं स्थापत्य

  • यद्यपि सल्तनत काल में सुल्तानों ने सैनिक अभियानों और विद्रोहों को दबाने में ही अपना अधिकांश समय व्यतीत किया, तथापि इस काल में कला एवं स्थापत्य का भी पर्याप्त विकास हुआ। इस काल में अन्य कलाओं की अपेक्षा स्थापत्य कला ही अधिक विकसित हुई।
  • तुर्क शासकों द्वारा इस काल में अनेक भवनों का निर्माण कराया गया, परन्तु यह कार्य कठिन सिद्ध हुआ। सल्तनत काल के आरंभिक वर्षों में स्थापत्य के विकास में दो बड़ी बाधाएं थीं-
    • स्थापत्य की जिस इस्लामिक शैली से सुल्तान परिचित थे, उससे भारतीय कारीगर अनभिज्ञ थे और
    • भारतीय कारीगर स्थापत्य की जिस शैली से परिचित थे, वह सुल्तानों के लिए उपयुक्त नहीं थी। इसलिए, धीरे-धीरे इस्लामी और भारतीय स्थापत्य शैली के सम्मिश्रण के रूप में ‘इण्डो-इस्लामिक स्थापत्य’ शैली का विकास हुआ
  • इण्डो-इस्लामिक स्थापत्य शैली के क्रमिक विकास की प्रक्रिया 1206 ई. में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के साथ ही शुरू हुई और इसका प्रथम चरण 1296 ई. में समाप्त हुआ सल्तनतकालीन स्थापत्य के विकास के इस प्रथम चरण की शैली को ‘ममलूक शैली’ की संज्ञा दी जाती है।
  • इण्डो-इस्लामिक स्थापत्य के विकास का दूसरा चरण 1296 ई. से आरंभ होकर 1316 ई. तक चला। द्वितीय चरण को खिलजी शैली की संज्ञा दी जाती है। द्वितीय चरण में इस्लामी शैली का प्रभाव स्पष्ट है।
  • इण्डों-इस्लामिक स्थापत्य के विकास का तीसरा चरण 1316 ई. से 1398 ई0 तक चला। 1398 ई. में तैमूर के आक्रमण के साथ ही दिल्ली सल्तनत का विघटन शुरू हो गया और कला एवं स्थापत्य के क्षेत्र में एक केंद्रीय शैली के स्थान पर अनेक क्षेत्रीय शैलियों का विकास आरंभ हुआ।

सल्तनत काल में अनेक मस्जिदों, मकबरों, मीनारों एवं अन्य भवनों का निर्माण हुआ, जिनमें कुछ प्रमुख हैं-

कुव्वत-उल-इस्लाम-मस्जिद

  • सल्तनत काल के सुल्तानों द्वारा बनवायी गयी मस्जिदों में सबसे पहली कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद थी, जिसका निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में करवाया था। मस्जिद का निर्माण कार्य 1195 ई. में शुरू हुआ और 1199 ई. में पूर्ण हुआ। यह मस्जिद एक हिंदू मंदिर के चबूतरे पर तथा अनेक हिंदू मंदिरों की सामग्री से बनी थी। इस मस्जिद में इस्लामिक शैली की केवल एक ही विशेषता है और वह यह कि सामने एक पत्थर की जाली है, जिस पर मुस्लिम पद्धति की डिजाइनें तथा सजावट है और कुरान की आयतें खुदी हुई हैं

           

अढ़ाई दिन का झोपड़ा

  • कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर में अढ़ाई दिन का झोंपड़ा नामक एक मस्जिद बनवायी थी। यह इमारत अपने मूल रूप में एक संस्कृत विद्यालय था, जिसका निर्माण विग्रहराज ने करवाया था। इसके ऊपरी भागों को तोड़कर गुम्बज तथा मेहराबें बना दी गयीं। इस मस्जिद के स्तंभों पर और भीतर कब्रों पर भी असंख्य मानव-चित्र हैं, जिनके चेहरे तथा हाथ पैर मिटे हुए हैं।
  • इस मस्जिद के नामकरण को लेकर विद्वानों में मतभेद है, पर सर जॉन मार्शल और पर्सी ब्राउन की उक्तियां अधिक युक्तिगत प्रतीत होती हैं। मार्शल के अनुसार इस मस्जिद का निर्माण केवल अढ़ाई दिन में हुआ, इसलिए इसका नाम अढ़ाई दिन का झोपड़ा रखा गया। पर्सी ब्राउन का कहना है कि जिस स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया, वहां अढ़ाई दिन का मेला लगता था, इसलिए उसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा कहा गया।

           

कुतुबमीनार

  • इसके निर्माण की योजना 1199 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनायी थी। सका निर्माण कार्य इल्तुतमिश के शासनकाल में पूर्ण हुआ।
  • मूलतः यह मीनार मुअज्जिन के लिए बनायी गयी थी, जो इस पर चढ़कर मुसलमानों को नमाज के लिए एकत्र करनेकी अजां दिया करता था। सल्तनतकालीन इस इमारत की विशेषता पर्सी ब्राउन के शब्दों में प्रकट होती है-‘किसी भी दृष्टिकोण से देखने  पर कुतुबमीनार एक अत्यधिक प्रभावशाली इमारत है इसके लाल पत्थरों के विभिन्न रंग, उसकी बांसुरीनुमा मंजिलों की बदलती हुई जाली और उस पर एक-दूसरे पर चढ़े हुए उल्लेख साधारण कारीगरी और उत्कृष्ट पत्थरों के कटाव की तुलना छज्जों के नीचे हिलती-डुलती छाया, सभी अत्यंत प्रभावशाली हैं।’ कुल 375 सीढ़ियों, 46 फीट व्यास के आधार और 10 फीट व्यास के शिखरवाला कुतुबमीनार वर्तमान दिल्ली के महरौली में स्थित है। बिजली गिरने से ध्वस्त हो जाने के कारण इसकी पांचवी मंजिल का निर्माण फ़िरोज़ तुगलक ने कराया था |

           

सुल्तानगढ़ी का मकबरा

  • इल्तुतमिश ने अपने ज्येष्ठ पुत्र नासिरूद्दीन महमूद के लिए जिस मकबरे का निर्माण कराया था, वह स्थापत्य की दृष्टि से अत्यंत उल्लेखनीय है।
  • नासिरूद्दीन महमूद का मकबरा भारत में तुर्कों द्वारा निर्मित पहला मकबरा था, इसलिए यह इमारत हिंदू शैली के अधिक निकट है। इसका निर्माण 1231 ई. में मलकापुर में कराया गया था।

           

इल्तुतमिश का मकबरा

  • इल्तुतमिश को सल्तनत काल में मकबराओं के निर्माण का जन्मदाता माना जाता है। उसने पहले अपने पुत्र के लिए मकबरे का निर्माण करवाया और फिर 1235 ई. के पूर्व अपने लिए भी मकबरा का निर्माण करवाया।
  • कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के निकट स्थित इल्तुतमिश के मकबरे पर कुरान की आयतें सुन्दर  ढंग से उत्कीर्ण की गई हैं। इस मकबरे के गुम्बद में घुमावदार पत्थरों का उपयोग किया गया है। इल्तुतमिश के मकबरे में सर्वप्रथम हिंदू शैली को हटाने की कोशिश की गई थी।

 

मोइनुद्दीन चिश्ती का दरगाह

  • सल्तनत काल में सूफी संतों के लिए खानकाह या दरगाह का निर्माण किया जाता था।
  • इल्तुतमिश ने चिश्ती सम्प्रदाय के आरंभिक संतों में प्रमुख मोइनुद्दीन चिश्ती के लिए दरगाह का निर्माण करवाया बाद में अलाउद्दीन खिलजी ने इस मकबरे का विस्तार किया।

           

बलबन का मकबरा

बलबन ने अपने लिए लालमहल नामक एक भवन का निर्माण करवाया। दिल्ली में स्थित बलबन का मकबरा पूर्णतः इस्लामी शैली का है। मकबरे के द्वार की मेहराब भारत में निर्मित तुर्की मेहराबों में सर्वोत्तम है।

           

अलाई दरवाजा

  • अलाउद्दीन खिलजी जिस प्रकार अपनी आक्रामकता के लिए प्रसिद्ध है, ठीक उसी प्रकार उसके काल का स्थापत्य भी सल्तनत काल के इतिहास में अद्वितीय है।
  • अलाई दरवाजा अलाउद्दीन खिलजी द्वारा निर्मित सर्वश्रेष्ठ इमारत है। इस इमारत का निर्माण कार्य 1311 ई. में पूर्ण हुआ।
  • कुतुबमीनार के चारों ओर के दरवाजों मे से एक है अलाई दरवाजा। यह दरवाजा ऊँचे चबूतरे पर निर्मित एक चौकोर इमारत है।
  • सर जॉन मार्शल ने अलाई दरवाजा को इस्लामी वास्तुकला की अमूल्य निधि कहा है।

           

जमातखाना मस्जिद

सल्तनत काल में पूर्णतः इस्लामिक शैली में निर्मित यह पहली मस्जिद है इस मस्जिद का निर्माण अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में खिज्र खां द्वारा करवाया गया।

           

तुगलकाबाद

  • तुगलक वंश के संस्थापक गियासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली की सीमा पर ऊँची पहाड़ियों पर तुगलकाबाद नगर का निर्माण करवाया।
  • इस नगर में दुर्ग ‘छप्पन कोट’ का निर्माण भी करवाया गया         

 

विजय मण्डल

  • इतिहास में पागल सुल्तान के नाम से प्रसिद्ध मुहम्मद बिन तुगलक कला एवं स्थापत्य का महान संरक्षक था।
  • उसने एक ऊँची पहाड़ी पर स्तंभनुमा इमारत का निर्माण करवाया, जिसे विजयमण्डल के नाम से जाना जाता है। इस इमारत के ऊपरी भाग में अष्टभुजाकार छत है।

           

आदिलशाह का किला

  • तुगलकाबाद के समीप इस किले का निर्माण मुहम्मद बिन तुगलक ने करवाया था।

           

जहांपनाह नगर

  • इस नगर का निर्माण मुहम्मद बिन तुगलक ने रायपिथौरा एव सीरी के बीच किया था।
  • इस नगर के अवशेषों में सात मेहराबों का पुल आज भी द्रष्टव्य है विजयमण्डल, जहांपनाह नगर में ही निर्मित था।

           

दौलताबाद

  • गोदावरी नदी की घाटी में स्थित भारत के केंद्रीय स्थल देवगिरि को जब मुहम्मद बिन तुगलक ने अपनी राजधानी बनाया, तब उसका नाम दौलताबाद रखा।
  • उसने इस गर में बड़े-बड़े भवन तथा सड़कें बनवायीं। एक सड़क दौलताबाद से दिल्ली तक बनायी गयी। मुहम्मद बिन तुगलक ने 1327 ई. में दौलताबाद को दिल्ली सल्तनत की राजधानी बनाया।
  • दिल्ली सल्तनत की पुरानी राजधानी दिल्ली से नागरिकों के दौलताबाद नहीं जाने के कारण फिर से दिल्ली ही राजधानी बना दी गयी।

           

निजामुद्दीन औलिया का मकबरा

  • दिल्ली में स्थित यह मकबरा सल्तनतकालीन स्थापत्य की तुगलक शैली में अपना विशिष्ट महत्व रखता है।
  • यह मकबरा सफेद और काले संगमरमर के एक साथ प्रयोग में लाए जाने के कारण अत्यधिक उत्कृष्ट है। मकबरे के चारों कोनों पर गुम्बद निर्मित है। इसमें एक दरवाजा तथा कुछ खिड़कियां भी हैं, जो लाल पत्थरों से जुड़ी है।

           

बारहखंभा

सल्तनत काल में तुगलक शैली की धर्मनिरपेक्ष इमारतों में बारहखंभा अपना विशिष्ट स्थान रखता है। यह काफी सुरक्षित स्थान था और इसका उपयोग आवास के रूप में होता था।

           

फिरोजशाह कोटला

  • दिल्ली में एक दुर्ग का निर्माण फिरोजशाह तुगलक द्वारा करवाया गया था, जो फिरोजशाह कोटला के नाम से जाना जाता है। अम्बाला जिले के टोपरा गांव से अशोक स्तंभ लाकर इस दुर्ग में स्थापित किया गया था।
  • इस दुर्ग में एक बड़ी जामा मस्जिद भी थी। दुर्ग में कुछ अन्य इमारतें-काली मस्जिद, बेगमपुरी मस्जिद, दरगाह-ए-शाह आलम, खिड़की मस्जिद आदि भी थीं।

           

फिरोजशाह तुगलक का मकबरा

  • फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली में हौज-खास के समीप यह मकबरा बनवाया था। यह मकबरा वर्गाकार है और इसका मुख्य द्वार दक्षिण की ओर है।
  • मकबरे की दीवारें सफेद सीमेंट की बनी हैं। बाद में सिकंदर लोदी ने इस मकबरे में कुछ सुधार का कार्य करवाया।

           

खान--जहां तेलंगानी का मकबरा

खान-ए-जहां तेलंगानी फिरोजशाह तुगलक का प्रधानमंत्री था। उसकी स्मृति में उसके पुत्र जूना शाह ने, यह मकबरा बनवाया था। इसे लाल गुम्बद के नाम से भी जाना जाता है।

           

कबीरउद्दीन औलिया का मकबरा

  • मकबरे का निर्माण कार्य गियासुद्दीन द्वितीय के समय में शुरू हुआ और नसीरुद्दीन मुहम्मद के समय में पूर्ण हुआ।

           

बहलोल लोदी का मकबरा

1448 ई0 में सिकंदर लोदी ने बहलोल लोदी के मकबरे का निर्माण करवाया था। इस मकबरे में तीन मेहराब तथा पांच गुम्बद हैं। मध्य भाग में स्थित गुम्बद सबसे ऊँचा है। बहलोल लोदी का मकबरा लाल पत्थरों से बना है।

           

सिकंदर लोदी का मकबरा

  • इब्राहिम लोदी ने सिकंदर लोदी के मकबरे का निर्माण करवाया था।
  • इसी गार्डन में सैयद और लोदी काल के स्मारक स्थापित किए गए है। इनमें गुम्बद, मस्जिदें और पुल शामिल है। मुहम्मद शाह और सिकंदर लोधी के मकबरे अष्टभुजाकार मकबरे का शानदार उदाहरण है। यह लोदी गार्डन में स्थित है।

           

बड़े खां तथा छोटे खां का मकबरा

  • इन मकबरों का निर्माण सिकंदर लोदी के द्वारा करवाया गया था। सिकंदर लोदी ने मोती मस्जिद का भी निर्माण करवाया।

           

मोठ की मस्जिद

  • इस मस्जिद का निर्माण सिकंदर लोदी के शासन काल में हुआ था। सल्तनत काल में लोदी शासकों द्वारा निर्मित इमारतों में मोठ की मस्जिद का अन्यतम स्थान है।
  • सर जॉन मार्शल ने कहा कि 'मोठ की मस्जिद लोदियों की स्थापत्य कला का सुंदरतम नमूना है।'

 

सल्तनतकालीन साहित्य

दिल्ली सल्तनत पूर्ण रूप से सैनिक शक्ति पर आधारित था,फिर भी इसके सुल्तानों ने साहित्य को पर्याप्त संरक्षण एवं प्रोत्साहन प्रदान किया। इस काल मे ऐतिहासिक साहित्य का सृजन ही अधिक हुआ, किंतु  ऐसा नहीं है कि लौकिक एवं धार्मिक साहित्य की रचना नहीं हुई। सल्तनत काल में जिन प्रमुख ऐतिहासिक ग्रंथों की रचना हुई, उनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

 

तबाकत--नासिरी

  • इस ग्रंथ की रचना मिनहाज-उस-सिराज ने की थी।
  • इस पुस्तक में पहली बार दिल्ली सल्तनत का क्रमिक विकास प्रस्तुत किया गया है। बाद में बरनी ने दिल्ली सल्तनत के इतिहास को वहां से लिखा, जहां मिनहाज ने अपना काम छोड़ा था।

 

तारीख--फिरोजशाही

  • इस ग्रंथ की रचना जियाउद्दीन बरनी ने की थी। बरनी ने ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’ की रचना को 1357-58 ई. में पूर्णता प्रदान की।

 

फतवा--जहांदारी-इस ग्रंथ की रचना जियाउद्दीन बरनी ने की थी।

 

फुतूह-उस-सलातीन- इस ग्रंथ की रचना ख्वाजा अबू वक्र इसामी ने की थी।

 

किताब-उल-रहला- यह एक यात्रा वृत्तांत है, जिसकी रचना मोरक्को निवासी इब्नबतूता ने की थी।

 

फुतूहात--फिरोजशाही

  • यह फिरोजशाह तुगलक की आत्मकथा है। इस पुस्तक को लिखने का फिरोजशाह का मुख्य उद्देश्य स्वयं को एक आदर्श मुसलिम शासक सिद्ध करना था।
  • इस किताब से उसके प्रशासन सम्बंधित कुछ जानकारियां मिलती हैं |

 

तारीख--मुबारकशाही

  • इस ग्रंथ की रचना याहिया बिन अहमद सरहिंदी ने की थी।
  • सल्तनत काल में सैयद वंश के इतिहास को जानने के लिए यही एकमात्र तत्कालीन प्रामाणिक ग्रंथ है।

 

तारीख--सलातीन--अफगाना

  • इस ग्रंथ की चना मुगल काल में अहमद यादगार ने की थी ।
  • परन्तु इसमें दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाले लोदियों का वर्णन मिलता है।

 

ताज-उल-मासिर-इस ग्रंथ की रचना हसन निजामी ने की थी।

 

तारीख-उल-हिंद

  • इस ग्रंथ की रचना अलबरूनी ने की थी, जो महमूद गजनवी के साथ भारत की यात्रा पर आया था।
  • इस ग्रंथ में 11वीं शताब्दी के आरंभ के हिंदुओं के साहित्य, विज्ञान तथा धर्म का वर्णन है।
  • महमूद गजनवी के आक्रमण के समय के भारत की दशा की जानकारी के लिए ‘तारीख-उल-हिंद’ प्रमाणिक ग्रंथ है।

किताब-उल-यामीनी

  • इस ग्रंथ की रचना अबू नस्र बिन मुहम्मद अल जबरूल उतबी ने की थी।
  • यह ग्रंथ सुबुक्तगीन तथा महमूद गजनवी के शासनकाल का 1020 ई. तक का इतिहास प्रस्तुत करता है।

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