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क्रांति का संगठन, उद्देश्य और समय

संगठन 

  • 1857 की क्रान्ति के संबंध में यह कहा जाता है कि इसमें संगठन का अभाव था। इस क्रान्ति के लिए उद्देश्य, निश्चित समय, प्रचार, तैयारी, एकता, नेतृत्व आदि संगठन के सभी आवश्यक तत्वों का दर्शन होता है। क्रान्ति का संदेश नगरों से लेकर गांवें तक सम्प्रेषित किया गया था। संवाद प्रेषण के लिए कमल आदि प्रतीकों का प्रयोग किया गया था।

उद्देश्य

  • 1857 की क्रान्ति का उद्देश्य निश्चित और स्पष्ट था। अंग्रेजों को देश से निकालना और भारत को स्वाधीन कराना क्रान्तिकारियों का अंतिम लक्ष्य था। यह कहना कि इस क्रान्ति में भाग लेने वाले सैनिकों, जमींदारों या छोटे-मोटे शासकों के निजी हित थे, क्रान्ति के महत्व को कम करने की कोशिश है। वस्तुतः यह विद्रोह एकता पर आधारित और अंग्रेजी हुकूमत के विरूद्ध था।

समय 

  • सम्पूर्ण देश में क्रान्ति की शुरूआत का एक ही समय निर्धारित किया गया था और वह था 31 मई, 1857 का दिन। जे.सी. विल्सन ने इस तथ्य को स्वीकार किया था और कहा था कि प्राप्य प्रमाणों से मुझे पूर्ण विश्वास हो चुका है कि एक साथ विद्रोह करने के लिए 31 मई, 1857 का दिन चुना गया था। यह संभव है कि कुछ क्षेत्रों में विद्रोह का सूत्रपात निश्चित समय के बाद हुआ हो। किन्तु, इस आधार पर यह आक्षेप नहीं किया जा सकता कि 1857 की क्रान्ति के सूत्रपात के लिए कोई निश्चित समय निर्धारित नहीं किया गया था।

क्रान्ति की शुरूआत

  • 1857 की क्रान्ति का सूत्रपात मेरठ छावनी के स्वतंत्रता प्रेमी सैनिक मंगल पाण्डेय ने किया। 29 मार्च, 1857 को नए कारतूसों के प्रयोग के विरूद्ध मंगल पाण्डेय ने आवाज उठायी।  ध्यातव्य है कि अंग्रेजी सरकार ने भारतीय सेना के उपयोग के लिए जिन नए कारतूसों को उपलब्ध कराया था, उनमें सूअर और गाय की चर्बी का प्रयोग किया गया था। छावनी के भीतर मंगल पाण्डेय को पकड़ने के लिए जो अंग्रेज अधिकारी आगे बढ़े, उसे मौत के घाट उतार दिया। 8 अप्रैल, 1857 को मंगल पाण्डेय को फांसी की सजा दी गई। उसे दी गई फांसी की सजा की खबर सुनकर सम्पूर्ण देश में क्रान्ति का माहौल स्थापित हो गया।
  • 6 मई, 1857 को भारतीय सैनिकों ने फिर नए कारतूसों के प्रयोग का विरोध किया। विरोध करने वाले सैनिकों को दस वर्षों के कैद की सजा मिली। सैनिकों से हथियार छीन लिए गए। हथियार छीने जाने को मेरठ में पुरूषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी अपमान का विषय समझा। ऐसी स्थिति में सैनिकों के लिए अंग्रेजों से बदला लेना परम कर्तव्य हो गया। मेरठ के सैनिकों ने 10 मई, 1857 को ही जेलखानों को तोड़ना, भारतीय सैनिकों को मुक्त करना और अंग्रेजों को मारना शुरू कर दिया।
  • मेरठ में मिली सफलता से उत्साहित सैनिक दिल्ली की ओर बढ़े। दिल्ली आकर क्रान्तिकारी सैनिकों ने कर्नल रिप्ले की हत्या कर दी और दिल्ली पर अपना अधिकार जमा लिया। इसी समय अलीगढ़, इटावा, आजमगढ़, गोरखपुर, बुलंदशहर आदि में भी स्वतंत्रता की घोषणा की जा चुकी थी।

एकता का प्रदर्शन

  • 1857 की क्रान्ति में हिंदू और मुसलमानों ने एक साथ मिलकर भाग लिया। क्रान्ति का मसविदा तैयार करने से लेकर क्रान्ति के क्रियान्वयन तक दोनों सम्प्रदाय के लोगों ने एक-दूसरे का पूरा साथ दिया।
  • स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेजों के विरोध में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच वैसी एकता फिर कभी दिखाई नहीं पड़ी। इसका कारण यह था कि अंग्रेजों ने ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति को हिन्दुओं और मुसलमानों को तोड़ने में लागू नहीं किया था। फिर, अंग्रेजी सरकार ने जिस नए कारतूस को भारतीय सैनिकों के प्रयोग के लिए दिया था, उसमें गाय और सूअर की चर्बी का उपयोग किया गया था। इससे दोनों धर्मों के सैनिकों ने अंग्रेजी सरकार का विरोध किया।

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