एक ऐसा समय जहां एक ओर लड़खड़ाता मौर्य साम्राज्य भारत में साम्राज्यवादी प्रयोग के पहले चरण को समाप्त कर रहा था । मौर्य साम्राज्य का अंत होने से भारत की राजनीतिक एकता छिन्न-भिन्न लगी थी । भारत की उत्तरी-पश्चिमी मार्गों से अनेक विदेशी आक्रमणकारी अनेक स्थानों पर अलग-अलग राज्य स्थापित करने लगे। दक्षिण भारत के भी कई सामंतों ने अपनी स्वतंत्र स्थिति की घोषणा कर दी । मध्य प्रदेश का संबंध गोदावरी तथा सिंधु घाटी क्षेत्र से टूट गया । अब मगध के वैभव का स्थान साकल, विदिशा, प्रतिष्ठान आदि कई नगरों ने ले लिया । इस काल को मौर्योत्तर काल कहा जाता है ।
यह काल 200 ईसा पूर्व से लेकर 300 ई.तक की ऐतिहासिक घटनाओं का काल था । जिसमें इतनी विविधता थी कि उनकी राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्यों के बीच तारतम्य बैठाना बहुत मुश्किल है । मौर्योत्तर काल में शासन करने वाले शासकों को हम दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं-
देशी शासक विदेशी शासक |
शुंग वंश इंडो-ग्रीक |
कण्व वंश शक |
सातवाहन वंश पार्थियन |
चेदि वंश/ महामेघवाहन वंश कुषाण वंश |
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