पुष्यमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या कर जिस तरह शुंग वंश की स्थापना की थी, ठीक उसी प्रकार वसुदेव ने अंतिम शुंग शासक देवभूति की हत्या कर 75 ई.पू. में कण्व वंश की स्थापना की।
कण्व वंश की जानकारी के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत बाणभट्ट रचित हर्षचरित है। ‘हर्षचरित’ में वसुदेव द्वारा कण्व वंश की स्थापना का वर्णन इस प्रकार है-‘शुंगों के अमात्य वसुदेव ने रानी के वेश में देवभूति के दास की पुत्री द्वारा स्त्री-प्रसंग में अति आशक्त एवं कामदेव के वशीभूत देवभूति की हत्या कर दी।कण्व भी शुंगों के समान ही ब्राम्हण थे।
वसुदेव ने 9 वर्षों तक शासन किया। उसके बाद कण्व वंश के तीन शासकों ने शासन किया। भूमिमित्र (14 वर्ष), नारायण (12 वर्ष) तथा सुशर्मा (10 वर्ष)
सुशर्मा की मृत्यु के साथ ही कण्व राजवंश तथा शासन की समाप्ति हो गई। वायुपुराण से ज्ञात होता है कि सुशर्मा की हत्या उसके आंध्रजातीत भृत्य सिमुक ने कर दी। इस प्रकार 30 ई.पू. में कण्वों का अंत हो गया।