शुंग वंश
शुंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र शुंग था । पुष्यमित्र शुंग ने 185 ई.पू. में मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या करके ‘शुंग वंश’ की स्थापना की। बाणभट्ट ने ‘हर्षचरित’ में पुष्यमित्र को ‘अनार्य’ कहा है। पुष्यमित्र कट्टर ब्राम्हणवादी था।
शुंग वंश के इतिहास को जानने के स्रोत
शुंग वंश के इतिहास के बारे में जानकारी साहित्यिक एवं पुरातात्विक दोनों साक्ष्यों से प्राप्त होती है-
साहित्यिक स्रोत
पुराण (वायु और मत्स्य पुराण)- इससे पता चलता है कि शुंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र शुंग था।
हर्षचरित-इसकी रचना बाणभट्ट ने की थी। इसमें अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की चर्चा है। इससे पता चलता है कि पुष्यमित्र ने अंतिम मौर्य नरेश बृहद्रथ की हत्या कर सिंहासन पर अधिकार कर लिया।
पतंजलि का महाभाष्य- पतंजलि पुष्यमित्र के पुरोहित थे। इस ग्रंथ में यवनों के आक्रमण की चर्चा है।
गार्गी संहिता-इसमें भी यवन आक्रमण का उल्लेख है। यह एक ज्योतिष ग्रंथ है।
मालविकाग्निमित्रम्-यह कालिदास का नाटक है, जिससे शुंगकालीन राजनीतिक गतिविधियों का ज्ञान प्राप्त होता है।
दिव्यावदान-इसमें पुष्यमित्र शुंग को अशोक के 84,000 स्तूपों को तोड़ने वाला बताया गया है।
पुरातात्विक स्रोत
अयोध्या अभिलेख-इस अभिलेख को पुष्यमित्र शुंग के उत्तराधिकारी धनदेव ने लिखवाया था। इसमें पुष्यमित्र शुंग द्वारा कराए गए दो अश्वमेध यज्ञों की चर्चा है।
बेसनगर का अभिलेख -यह यवन राजदूत हेलियोडोरस का है जो गरूड़ स्तंभ के ऊपर खुदा है। इससे भागवत धर्म की लोकप्रियता का पता चलता है।
भरहुत का लेख-इससे भी शुंग काल के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
इसके अतिरिक्त सांची, बेसनगर, बोधगया आदि स्थानों से प्राप्त स्तूप एवं स्मारक शुंगकालीन कला एवं स्थापत्य की विशिष्टता का ज्ञान कराते हैं। शुंग काल की कुछ मुद्राएं कौशांबी, अहिच्छत्र, अयोध्या तथा मथुरा से प्राप्त हुई हैं, जिनसे तत्कालीन ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती हैं।
पुष्यमित्र शुंग
- पुष्यमित्र मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहद्रथ का सेनापति था। ‘दिव्यावदान’ से पता चलता है कि वह पुष्यधर्म का पुत्र था।
- धनदेव के अयोध्या अभिलेख के अनुसार, पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान किया। पतंजलि उसके अश्वमेध यज्ञ के पुरोहित थे। पतंजलि पुष्यमित्र के राजपुरोहित थे।
- बौद्ध ग्रंथों के अनुसार पुष्यमित्र बौद्ध धर्म का उत्पीड़क था। पुष्यमित्र ने बौद्ध विहारों को नष्ट किया तथा बौद्ध भिक्षुओं की हत्या की थी।
- संभवतः पुष्यमित्र बौद्ध विरोधी था, लेकिन भरहुत स्तूप बनाने का श्रेय पुष्यमित्र शुंग को ही दिया जाता है।
विजय अभियान
- पुष्यमित्र के शासनकाल में कई विदेशी आक्रमणकारियों के द्वारा भारत पर आक्रमण किये गए।
- पुष्यमित्र के राजा बन जाने पर मगध साम्राज्य को बहुत बल मिला था। जो राज्य मगध की अधीनता त्याग चुके थे, पुष्यमित्र ने उन्हें फिर से अपने अधीन कर लिया था।
- पुष्यमित्र ने अपने विजय अभियानों से सीमा का विस्तार किया।
विदर्भ (बरार) की विजय
- विदर्भ का शासक यज्ञसेन था। वह मौर्यां की तरफ से विदर्भ के शासक पद पर नियुक्त हुआ था, परन्तु मगध साम्राज्य की दुर्बलता का लाभ उठाकर उसने स्वयं को विदर्भ का स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया।
- यज्ञसेन को शुंगों का ‘स्वाभाविक शत्रु’ बताया गया है।
- पुष्यमित्र के आदेश से अग्निमित्र ने उस पर आक्रमण किया और उसे परास्त कर विदर्भ को फिर से मगध साम्राज्य के अधीन कर लिया।
- कालिदास के प्रसिद्ध नाटक ‘मालविकाग्निमित्रम्’ में यज्ञसेन की चचेरी बहन मालविका और अग्निमित्र के प्रेम की कथा के साथ-साथ विदर्भ विजय का वृतांत भी उल्लेखित है।
खारवेल से युद्ध
- मौर्य वंश के अंतिम दिनों में कलिंग देश (वर्तमान ओडिशा) भी स्वतंत्र हो गया था।
- कलिंग का राजा खारवेल था। खारवेल ने मगध पर आक्रमण कर पुष्यमित्र शुंग को पराजित किया था। (हाथीगुम्फा अभिलेख से ज्ञात)
यवन आक्रमण
- पुष्यमित्र शुंग के समय में यवन आक्रमण हुआ था। इसका वर्णन ‘मालविकाग्निमित्रम्’ में मिलता है।
- डेमेट्रियस (दिमित्र) नामक यवन राजा पुष्यमित्र का समकालीन था।
- ‘गार्गी संहिता’ के युगपुराण में विवरण मिलता है कि यवन, साकेत और मथुरा पर अधिकार करने के बाद पाटलिपुत्र पहुंच गए थे।
पुष्यमित्र के उत्तराधिकारी
- पुष्यमित्र की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अग्निमित्र साम्राज्य का उत्तराधिकारी हुआ।
- पुष्यमित्र के राजत्व काल में ही अग्निमित्र, विदिशा का गोप्ता (उपराजा) बनाया गया था। कालिदास द्वारा रचित ‘मालविकाग्निमित्रम्’ नाटक में अग्निमित्र और मालविका की प्रेम कथा का वर्णन किया गया है।
- अग्निमित्र के बाद पुराणों में क्रमशः वसुज्येष्ठ, वसुमित्र, आंध्रक, पुलिंदक, घोष, वज्रमित्र, भागभद्र तथा देवभूति नामक राजाओं का वर्णन मिलता है।
- भागवत (भागभद्र) ने भागवत धर्म ग्रहण किया तथा विदिशा (बेसनगर) में गरूड़ स्तंभ की स्थापना कर भागवत विष्णु की पूजा की।
- देवभूति इस वंश का अंतिम शासक था। इसके मंत्री वसुदेव ने इसकी हत्या कर एक नए वंश (कण्व वंश) की स्थापना की।
शुंगकालीन कला
- विदिशा का गरूड़ स्तंभ, भाजा का चैत्य एवं विहार, अजंता का नवां चैत्य मंदिर, नासिक तथा कार्ले के चैत्य, मथुरा की अनेक यक्ष-यक्षणियों की मूर्तियां प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं ।
- शुंग कला के विषय धार्मिक जीवन की अपेक्षा लौकिक जीवन से अधिक संबंधित है। शुंग काल में विदिशा का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक महत्व सर्वाधिक हो गया था। शुंग काल में ही संस्कृत भाषा तथा हिंदू धर्म का पुनरूत्थान हुआ। इनके उत्थान में महर्षि पतंजलि का विशेष योगदान था। ‘मनुस्मृति’ के वर्तमान स्वरूप की रचना इसी युग में हुई।
- इसकाल में ही भागवत धर्म का उदय व विकास हुआ तथा वासुदेव विष्णु की उपासना प्रारंभ हुई।
- मौर्य काल में स्तूप कच्ची ईंटों और मिट्टी की सहायता से बनते थे, परन्तु शुंग काल में उनके निर्माण में पाषाण का प्रयोग किया गया है।
- शुंग राजाओं का काल वैदिक अथवा ब्राम्हण धर्म का पुनर्जागरण काल माना जाता है। पुष्यमित्र शुंग ने ब्राम्हण धर्म का पुनरूत्थान किया।